संतान की लंबी आयु के लिए रखें पुत्रदा एकादशी व्रत, जानें पूजा विधि और सही समय

Update: 2025-12-30 02:30 GMT

पुत्रदा एकादशी व्रत 

पुत्रदा एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित है। यह व्रत संतान-सुख और परिवार की मंगलकामना के लिए किया जाता है। पौष मास के शुक्ल पक्ष की यह एकादशी तिथि बहुत पवित्र मानी जाती है और संतान की प्राप्ति कराने के साथ ही जीवन में सौभाग्य भी लाती है। आज यानी 30 दिसंबर को एकादशी तिथि का आरंभ सुबह 07:50 से हो रहा है। वहीं एकादशी तिथि का समापन 31 दिसंबर की सुबह 5.00 बजे होगा।

व्रत के दिन

मन, वाणी और कर्म से संयम रखें।

अगले दिन व्रत का संकल्प लें।

प्रातःकाल

स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।

व्रत का संकल्प लें (मन में या जल लेकर)।

पूजा विधि

घर के मंदिर में भगवान विष्णु या श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।

गंगाजल से शुद्धि करें।

दीप, धूप, तुलसी पत्र, फूल, फल अर्पित करें।

विष्णु सहस्रनाम पढ़ें या ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का 108 बार जाप करें।

व्रत नियम

निर्जल या फलाहार—अपनी क्षमता अनुसार।

दिनभर भजन-कीर्तन, विष्णु कथा का श्रवण/पाठ।

क्रोध, असत्य, निंदा से बचें।

सायंकाल

पुनः दीप-धूप से आरती करें।

कथा या भजन करें।

पारण (द्वादशी)

द्वादशी तिथि में शुभ मुहूर्त पर व्रत खोलें।

पहले जल/फल लें, फिर सात्विक भोजन।

ब्राह्मण/जरूरतमंद को दान करें (अन्न, वस्त्र, दक्षिणा)।

विशेष बातें

तुलसी का विशेष महत्व है। इसे पूजा में अवश्य रखें।

दंपत्ति साथ में व्रत करें तो फल अधिक माना जाता है।

व्रत का मुख्य भाव भक्ति, संयम और श्रद्धा है।

व्रत कथा

एक नगर में सुकेतुमान नाम के राजा रहते थे। उनकी पत्नी का नाम शैव्या था। राजा के कोई संतान नहीं थी, इसलिए वे दोनों बहुत दुखी रहते थे। राजा को चिंता रहती थी कि उनके बाद राज्य कौन संभालेगा और उनके जाने के बाद उनका अंतिम संस्कार और मोक्ष कैसे होगा। एक दिन राजा जंगल घूमने गए। वहां उन्होंने देखा कि पशु-पक्षी अपनी पत्नी और बच्चों के साथ खुशी से रह रहे हैं। यह देखकर राजा और भी दुखी हो गए और सोचने लगे कि इतने अच्छे कर्म करने के बाद भी उन्हें संतान क्यों नहीं मिली।

कुछ समय बाद राजा को प्यास लगी। पानी की तलाश में वे नदी के किनारे बने ऋषियों के आश्रम पहुंचे। राजा ने सभी ऋषियों को प्रणाम किया। राजा की नम्रता से ऋषि बहुत प्रसन्न हुए और बोले कि वह कोई वर मांग सकते हैं। राजा ने कहा कि उनके पास सब कुछ है, लेकिन संतान नहीं है, इसी कारण वे दुखी हैं। ऋषियों ने राजा को पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने की सलाह दी। कुछ समय बाद रानी गर्भवती हुईं और उन्हें एक तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति हुई।

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