Begin typing your search above and press return to search.
India News

चीन पर निर्भरता भारतीय सुरक्षा एवं संप्रभुता को चुनौती? पढ़ें मेवाड़ विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डॉ. अशोक गदिया के विचार

Shilpi Narayan
12 Sept 2025 2:10 PM IST
चीन पर निर्भरता भारतीय सुरक्षा एवं संप्रभुता को चुनौती? पढ़ें मेवाड़ विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डॉ. अशोक गदिया के विचार
x

नई दिल्ली। भारत एवं चीन के सामाजिक, सांस्कृतिक एवं भौगोलिक रिश्ते बहुत पुराने हैं। भारत एवं चीन के बीच सिर्फ एक देश है, जिसका नाम है तिब्बत। लेकिन तिब्बत का अस्तित्व अब सिर्फ कागजों एवं खयालों में है। क्योंकि वास्तविक रूप से तिब्बत पर पूर्ण कब्जा चीन कर चुका है। भारत ने अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर यह स्वीकार किया हुआ है कि तिब्बत अब चीन का अंग है। जोकि हमारी सबसे बड़ी सामरिक एवं राजनैतिक भूल या कमजोरी है।

तिब्बत चीन का हिस्सा

चीन के साथ सीमा विवाद की जड़ में हमारा यह मानना कि तिब्बत चीन का हिस्सा है। यदि हम आज भी यह कह दें कि तिब्बत एक स्वतंत्र राष्ट्र है और चीन ने उस पर अनाधिकृत कब्जा कर रखा है, तो हमारा चीन के साथ कोई सीमा विवाद नहीं है। क्योंकि हमारी कोई भी सीमा चीन से लगती ही नहीं है। तिब्बत और हमारे बीच कोई सीमा विवाद है ही नहीं। क्योंकि हम सांस्कृतिक रूप से एक राष्ट्र हैं।

सीमा विवाद एवं तिब्बत की संप्रभुता की बहाली

जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम आदि का हिस्सा या तो तिब्बत से लगा हुआ है या भूटान या नेपाल से लगा हुआ है। चीन बिना बात इन हिस्सों को अपना बताकर अनाधिकार घुसपैठ की चेष्टा करता है। सन् 1962, 1967, 1987, 2017, 2020-21 में हुए चीन के साथ छोटे-बड़े संघर्ष इस बात के गवाह हैं। वर्तमान में भारत की अधिकारिक रूप से लगभग 45000 वर्ग किलोमीटर भूमि चीन के पास है जबकि अनाधिकारिक रूप से यह इससे भी ज्यादा है।

हम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर और आपसी बातचीत में चीन के साथ सीमा विवाद एवं तिब्बत की संप्रभुता की बहाली पर जोरदार तरीके से बात क्यों नहीं कर पाते। इसके पीछे हमारे व्यापारिक कारण या हमारी व्यापारिक मजबूरियां हैं। इसका विश्लेषण इस प्रकार किया जा सकता है-

आज के समय में हमारा सारा व्यापार एवं उद्योग अधिकांश रूप से चीन पर आश्रित हो गया है। भारत में चीन से मुख्य रूप से निम्न उत्पाद आयातित किये जाते हैं-

1. इलेक्ट्रॉनिक्स और विद्युत उपकरण

2. मशीनरी और यांत्रिक उपकरण

3. कार्बनिक रसायन दवाइयां बनने के लिए

4. प्लास्टिक एवं इस्पात

5. दवा उत्पाद

6. उर्वरक

7. ऑप्टिकल एवं अन्य चिकित्सा उपकरण

8. अन्य उपभोक्ता उत्पाद यानी रोजमर्रा के काम आने वाली वस्तुएं।

सन् 1990-91 में भारत का चीन के साथ आयात एवं निर्यात इस प्रकार था-

भारत-चीन द्विपक्षीय व्यापार (1990-91)

एक शोध लेख ;रिसर्च जर्नल ऑफ ह्यूमेनिटीज एंड सोशल साइंसेजद्ध के अनुसार-

भारत से चीन को निर्यातः 5225 करोड़ रुपये

जो उस समय भारत के कुल निर्यात 1ए54ए234 करोड़ रुपये का लगभग 3ण्39 प्रतिशत था।

चीन से भारत को आयातः 1671 करोड़ रुपये

जो भारत के कुल आयात 2,04,516 करोड़ रुपये का लगभग 0.82 प्रतिशत था।

सन् 2014 में भारत का चीन के साथ आयात एवं निर्यात इस प्रकार था-

निर्यात-भारत से चीन के लिए निर्यात लगभग 1,01,575 करोड़ रुपये था।

आयात-भारत द्वारा चीन से आयात लगभग 5,13,315 करोड़ रुपये से 5,13,485 करोड़ रुपये के बीच था।

व्यापार घाटा दोनों आंकड़ों के आधार पर व्यापार घाटा लगभग 4,08,000 करोड़ रुपये था। कुछ स्रोतों में इसे 4,11,995 करोड़ रुपये तक दर्शाया गया है।

सन् 2024 में भारत का चीन के साथ आयात एवं निर्यात इस प्रकार था-

आयात- वित्त वर्ष 2024-25 (अप्रैल 2024-मार्च 2025)

भारत से चीन निर्यातः 1,21,125 करोड़ रुपये

चीन से भारत आयातः 9,64,325 करोड़ रुपये

व्यापार घाटाः लगभग 8,43,200 करोड़ रुपये

कुल द्विपक्षीय व्यापारः लगभग 10,85,535 करोड़ रुपये

सुरक्षा एवं संप्रभुता पर बड़ा खतरा

उपरोक्त आंकड़ों से यह स्पष्ट हो जाता है कि भारत चीन पर व्यापारिक रूप से पूर्णतया निर्भर हो गया है। भारत की नस-नस में चीन की वस्तुएं समा गयी हैं। इस स्थिति में यदि चीन के साथ हमारा कोई भी सीमा विवाद या युद्ध जैसी स्थिति आती है तो चीन हमारा सारा व्यापार, व्यवसाय, उद्योग, कृषि एवं स्वास्थ्य सेवाएं बाधित कर हमें घुटनों पर ला सकता है। इस स्थिति में भारत की प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि हमें सरकार एवं समाज दोनों को मिलकर दीर्घकालीन योजनाबद्ध तरीके से कार्य करते हुए चीन पर निर्भरता खत्म करनी चाहिए। इस ओर हमें ध्यान लगाना चाहिये कि समय रहते यदि हमने इस पर ध्यान नहीं दिया तो यह आने वाले समय में भारत की सामरिक सुरक्षा एवं संप्रभुता पर बड़ा खतरा बन सकती है।

कई देशों के साथ सीमा विवाद

इतिहास बताता है कि चीन एक विस्तारवादी देश है, उसका कई देशों के साथ सीमा विवाद है। वह जमीनी एवं समुद्री क्षेत्र में हर ओर अपना साम्राज्य बढ़ाना चाहता है। चीन का भारत, भूटान, नेपाल, लाओस, बर्मा, ताइवान, श्रीलंका, फिलीपीन्स, वियतनाम, मलेशिया, बरुनी, रूस, मंगोलिया, उत्तर कोरिया, किर्गिस्तान, तजाकिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल आदि देशों से सीमा विवाद है। भारत के उत्तर दक्षिण एवं पूर्वी भाग में चीन ने एक तरह से कब्जा कर रखा है। ऐसे देखा जाय तो चीन ने हमें हर तरह से घेर रखा है। चीन की सैन्य क्षमता भारत से कई गुना ज्यादा है। चीन कभी हमारा मित्रराष्ट्र नहीं रहा। उसने हमेशा हमारे शत्रु देशों का ही साथ दिया है।

निम्न आंकड़ों से यह पूर्णतया स्पष्ट होता है कि चीन की सैन्यशक्ति भारत की सैन्यशक्ति से कई गुना ज्यादा है तथा चीन का प्रतिवर्ष रक्षा बजट भी भारत से कई गुना ज्यादा है।

भारत-चीन की सैन्यशक्ति

देश का नाम वर्ष 1990-91 वर्ष 2014-15 वर्ष 2024-25

भारत 1.21 लाख 13.5 लाख 14.4 लाख

चीन 3 लाख 23 लाख 20.3 लाख

भारत-चीन का रक्षा बजट

देश का नाम वर्ष 190-91 वर्ष 2014-15 वर्ष 2024-25

भारत 15,750 करोड़ 2,24,000 करोड़ 6,21,941 करोड़

चीन 17,0,10 करोड़ 7,98,550 करोड 26,84,300 करोड़

भारत एवं चीन के विदेशी मुद्रा भण्डार के आंकड़े भी चौंकाने वाले हैं। जो इस प्रकार हैं-

भारत के विदेशी मुद्रा भंडार (2025)

हफ्ते समाप्तिः 29 अगस्त 2025-भारत के विदेशी मुद्रा भंडार लगभग 59,00,955 करोड़ रुपये थे।

हफ्ते समाप्तिः 15 अगस्त 2025-यह आंकड़ा बढ़कर लगभग 59,08,350 करोड़ रुपये हो गया।

27 सितंबर 2024 (सभी समय उच्च)-सरकारी आंकड़ों के अनुसार, तब भंडार का स्तर 59,91,565 करोड़ रुपये था।

चीन के विदेशी मुद्रा भंडार (2025)

जून 2025 में-चीन का विदेशी मुद्रा भंडार 2,81,97,900 करोड़ रुपये था।

जुलाई 2025 में यह घटकर 2,79,83,700 करोड़ रुपये हो गया।

अगस्त 2025 के अंत तक भंडार पुनः बढ़कर 2,82,38,700 करोड़ रुपये हो गया, जो फिर से उच्च स्तर पर लौटने का संकेत है।

संप्रभुता एवं खुशहाली को अक्षुण्ण रखने का मूलमंत्र

इन सब परिस्थितियों के मद्देनजर भारत को अभी विश्व पटल पर एक सशक्त राष्ट्र बनने के लिये बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। हमें विश्व के सभी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध रखते हुए अपने आपको मजबूत करने की जरूरत है। हमें हर तरह से आत्मनिर्भर होना ही होगा। हमें अपने व्यापार, व्यवसाय, उद्योग, शिक्षा, स्वास्थ्य कृषि-विज्ञान, यांत्रिकी अपनी आंतरिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए विकसित करनी होगी। हमें अपने नौजवानों को पहला पाठ भारत को आत्मनिर्भर बनाने का सिखाना होगा। भारत का आत्मनिर्भर बनना भारत की संप्रभुता एवं खुशहाली को अक्षुण्ण रखने का मूलमंत्र है।

Next Story