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श्राद्ध तर्पण का वैदिक स्वरूप विषय पर गोष्ठी सम्पन्न, जीवित माता पिता की सेवा सच्चा श्राद्ध है: सुधीर बंसल

Anjali Tyagi
26 Sept 2025 4:52 PM IST
श्राद्ध तर्पण का वैदिक स्वरूप विषय पर गोष्ठी सम्पन्न, जीवित माता पिता की सेवा सच्चा श्राद्ध है: सुधीर बंसल
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पितरों का सम्मान प्राचीन परंपरा है-ओम सपरा

गाजियाबाद। केन्द्रीय आर्य युवक परिषद् के तत्वावधान में श्राद्ध तर्पण का वैदिक स्वरूप विषय पर आज ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन किया गया। य़ह कोरोना काल से 740 वांं वेबिनार था।

मुख्य वक्ता सुधीर बंसल ने कहा कि श्राद्ध शब्द की व्युत्पत्ति श्रत् शब्द से अड्. प्रत्यय की युति होने पर बताया है जिसका सीधा सा अर्थ है आस्तिक बुद्धि और इसका वर्णन छान्दोग्य उपनिषद की कण्डिकाओं में भी सर्वत्र दिया गया है।उन्होंने स्पष्टतः समाज में फैली इस दूषित परम्परा का खण्डन करते हुए ये ज्ञात करवाने की कोशिश की कि अपने जीवित माता-पिता या वृद्ध बुजुर्गों की तो उनकी इच्छा आवश्यकताएं पूरी करनी नहीं होतीं,उनकी भावनाओं का सम्मान नहीं किया जाता तो यही मानना चाहिए कि तथाकथित श्राद्ध के नाम पर घोर पाखण्ड और तमाशा किया जाता है वर्षों से हर वर्ष इस पितृपक्ष के 15 दिनों में और वर्षों पूर्व जो मृत्यु प्राप्त कर चिता की भेंट चढ़ चुके पूर्वज, उनको उनके इच्छित पदार्थ और व्यञ्जनों को बना-पका कर स्वार्थी ब्राह्मणों की उदर पूर्ति करवाकर इस मंशा से कि ये हमारे परलोक में विराजे पितरों को पहुँच जायेंगे इन लोभियों के पेट से निकलकर या छत पर चढ़कर कौओं को आवाज देकर बुलाना और खीर,हलवा,पूड़ी खिलाना,ये सब कृत्य करके मनुष्य अपने आप को तो धोखा दे ही रहा है,अपनी आत्मा के साथ भी खिलवाड़ करता है। उन्होंने अपनी स्वरचित आशु-कविता के माध्यम से समाज में फैले इस रोग पर चोट करते हुए बताया कि-पापा-माता तो जा चुके,ऊपर दोनों साथ।आया अश्विन मास तो,बने खीर,घी और भात॥ सुनाकर श्रोताओं को भावविभोर कर दिया।

मुख्य अतिथि ओम सपरा (पूर्व मेट्रो पोलटन मजिस्ट्रेट) ने कहा कि भारतीय संस्कृति में पितरों का सम्मान और स्मरण अत्यंत प्राचीन परंपरा है।संस्कृत शब्द श्राद्ध का अर्थ है—श्रद्धा और विश्वासपूर्वक किया गया कर्म।यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं,बल्कि अपने पूर्वजों के प्रति आभार,कृतज्ञता और श्रद्धा का भाव है।वैदिक दृष्टि से श्राद्ध पितृयज्ञ है,जो पंचमहायज्ञों में से एक है।मनुष्य पर तीन ऋण बताए गए हैं—देवऋण,ऋषिऋण और पितृऋण।पितृऋण से मुक्त होने का साधन ही श्राद्ध है।

कार्यक्रम अध्यक्ष ओम प्रकाश यजुर्वेदी ने अपने विचार व्यक्त किए,परिषद अध्यक्ष अनिल आर्य ने कुशल संचालन किया व प्रदेश अध्यक्ष प्रवीण आर्य ने धन्यवाद ज्ञापन किया।


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