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मेजबान शायरा नीना सहर की टैरेस में सजी हल्क़ा-ए- तश्नागान-ए-अदब की 579वीं गोष्ठी, पढ़ें चुनिंदा शायरी

गुरुग्राम। किसी का आशियाना यदि फूलों से सजे तो बहार आ जाती है वहीं जब वो अजीम शायरों से गुलिस्तां बने तो वाकई ईश्वर की समस्त खूबियां मूर्त रूप में बयां होने लगती हैं । यही दृश्य विगत दिवस गुरुग्राम के सेक्टर 27 में घटित हुआ।
इस 579 वीं निशस्त की अध्यक्षता जनाब केके ॠषि ने और संयोजन जनाब सीमाब सुल्तानपुरी ने तथा मेज़बानी शायरा नीना सहर रहीं।
इस निशस्त में केके ॠषि, सीमाब सुल्तानपुरी, नीना सहर, आशीष सिन्हा’ क़ासिद’, अनिल वर्मा ‘मीत’, पंडित प्रेम बरेलवी अरविन्द ‘ असर’ साज़ देहलवी, असरार राज़ी, शरफ़ नानपारबी, वसुधा कनुप्रिया, महेन्द्र शर्मा ‘ मधुकर’, अवधेश सिंह, नागेश चन्द्र, कर्नल संजय चतुर्वेदी, गोल्डी गीतकार, जगदीश प्रसाद अजय ‘ अक्स’, प्रदीप तिवारी ‘ दीप’, अमित ‘ ज़ैफ’, संजय शुक्ला ‘ तल्ख़’, अजय ‘अज्ञात’, पवन कुमार तोमर, नईम बदायूंनी, डॉ एम आर क़ासमी, आरिफ़ देहलवी, शाक़िर देहलवी, रंजना अग्रवाल, मीनाक्षी जिजीविषा, विजय शर्मा ‘ शिकन’, राजेन्द्र कलकल, प्रमोद शर्मा असर, विशन लाल, संजीव नादान, शुभ्रा पालीवाल, ऐन मीम ‘ क़ौसर’, ज़ैफ़, अशोक, सीमा शर्मा ‘ मेरठी’, राजेश प्रभाकर, सैयद गुफ़रान अहमद ‘ राशिद, ‘शिव कुमार बिलगिरामी, अहमद अल्वी, अब्दुल रहमान’ मन्सूर’, आसिम कीरतपुरी, शहादत अली निज़ामी, सोनिया रूह, पूनम मीरा और,अन्य ने अपने कलाम पढ़े।
आज भी कोई 40 के करीब कवि और कवयित्रियों ने रचना पाठ किया । शायरों की संख्या ज्यादा होने की वजह से पढ़ने की सीमा तहत में 5 शेर और तरन्नुम में सिर्फ एक ग़ज़ल यानी तीन से चार मिनट ही सबको मिले लेकिन जिन ख्याति प्राप्त शायरों का सानिध्य और उनके श्रेष्ठ रचना कर्म को सुनने का अवसर मिला यह अपने आप में एक अजूबा है । इसका अंदाज सहज ही लगाया जा सकता है कि ऐसे शायरों की संख्या सबसे ज्यादा थी जिन्होंने 2 से तीन घंटे का एक तरफ का रास्ता इसमें शिरकत करने के लिए तय किया लेकिन उन्हें पढ़ने का समय मात्र तीन मिनट ही मिल सका था ।
इस निशस्त की समाप्ति पर अवधेश सिंह ने दोहा संग्रह अंतस की अनुभूति को मेजबान नीना सहर को संयोजक जनाब सीमाब सुल्तानपुरी साहब के करकमलों द्वारा भेंट किया ।
कार्यक्रम के अंत में बुजुर्ग कवि एवं बांसुरी वादक विशन लाल जी की कविता "मोची" ने तथा उनके बांसुरी वादन ने सबका मन मोह लिया ।
कुछ चुनिंदा शायरी
रूह मिल जाएगी एक दिन हुस्न-ए- नूरानी के साथ,
जैसे मिसरा-ए-उल मिले मिसरा- ए-सानी के साथ।
इस जहां की हाउ हू में खो न जाऊं मैं कहीं,
पास रहना तुम मेरे अपनी निगेहबानी के साथ ।
नीना सहर
जब समझदारी की बातें न समझ करने लगे,
तब ए लाज़िम है कि हम तुम वक्त से डरने लगें।
दुआ लबों पे आंखों में बंदगी रखना,
नए अमीर हो तुम खुद को आदमी रखना।
शिवकुमार बिलग्रामी
दिल में मौजूद गर मुहब्बत है। जिंदगी की ये अस्ल दौलत है।।
सब रखी हैं सहेज कर यादें,
दिल में अब भी वही मुहब्बत है।।
अवधेश सिंह बंधुवर
इतने हसीन ख्वाब दिखा कर चला गया,
कोई दीवाना अपना बना कर चला गया।
मैं खुद न उनसे पूंछ सका बेरुखी का राज,
अश्कों से पलकें मेरी सजा कर चला गया।
आसिम खेतपुरी बिजनौर
मुझको अक्सर मुंह की खानी पड़ती है
सच कहने पर जान गवानी पड़ती है
अपनो के बंटवारे के जिद के आगे
घर में ही दीवार उठानी पड़ती है।
पंडित प्रेम बरेलवी




