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फिर कैसे हो वायु प्रदूषण पर नियंत्रण, अन्य देशों की तुलना में भारत का बजट सबसे कम

डॉ. चेतन आनंद (कवि-पत्रकार)
नई दिल्ली। वायु प्रदूषण आज दुनिया के सामने खड़ी सबसे गंभीर चुनौतियों में से एक है। दक्षिण एशिया, खासकर भारत, इस संकट का केंद्र बन गया है। दुनिया के कई देश प्रदूषण से लड़ने के लिए बड़े आर्थिक संसाधन, आधुनिक तकनीक और दीर्घकालिक योजनाएं लागू कर रहे हैं। लेकिन जब भारत की स्थिति की तुलना इन देशों से की जाती है, तो यह स्पष्ट होता है कि हमारा बजट, संसाधन और क्रियान्वयन दुनिया के कई विकसित देशों की तुलना में काफ़ी कम है। यह अंतर न सिर्फ संख्या में दिखता है, बल्कि योजनाओं के प्रभाव और जमीन पर बदलाव में भी साफ झलकता है।
भारत का प्रदूषण-नियंत्रण बजटः कितना और कैसे
भारत में प्रदूषण नियंत्रण के लिए बजट मुख्य रूप से पर्यावरण मंत्रालय और नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के माध्यम से जारी होता है। नवीनतम उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार-वर्ष 2025-26 के लिए पर्यावरण मंत्रालय का कुल बजट 3,413 करोड़ रुपए है। इसमें प्रदूषण नियंत्रण योजना के लिए 854 करोड़ है। 2019 से 2025 तक राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के लिए कुल आवंटन 19,711 करोड़ रुपए है। अगर इसे भारत की विशाल आबादी 142 करोड़ 132 से अधिक प्रदूषण-प्रभावित शहरों और देश की औद्योगिक-कृषि गतिविधियों के पैमाने से तुलना करें, तो यह खर्च अपर्याप्त माना जाता है। कई संसदीय रिपोर्टें बताती हैं कि आवंटित धन का भी पूर्ण उपयोग नहीं हो पाता, कुछ वर्ष तो ऐसे रहे जब गतिविधियों, योजनाओं या प्रशासनिक प्रक्रियाओं की धीमी गति के कारण एक प्रतिशत से भी कम धन उपयोग हुआ। भारत का बजट यह संकेत देता है कि देश ने प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई की शुरुआत तो कर दी है, लेकिन आवश्यक आर्थिक शक्ति और निरंतरता की दृष्टि से यह अभी भी काफी कम है।
दुनिया के प्रमुख देशों का बजटः भारत से कितनी दूरी
अब देखते हैं कि दुनिया के वे देश, जो प्रदूषण से जूझ चुके हैं और अब सफलतापूर्वक निपट रहे हैं, वे इस पर कितना खर्च कर रहे हैं।
1. चीन-सबसे बड़ा मजबूत उदाहरण- चीन एक समय दुनिया के सबसे प्रदूषित देशों में शामिल था, लेकिन 2013 के बाद उसने अभूतपूर्व बजट जारी किया। चीन ने वायु प्रदूषण एक्शन प्लान (2013-2017) के लिए लगभग $270 बिलियन यानी 22 लाख करोड़ खर्च किए। सिर्फ बीजिंग शहर ने ही प्रदूषण नियंत्रण, स्वच्छ ईंधन, उद्योग परिवर्तन और मॉनिटरिंग के लिए $120 बिलियन से अधिक निवेश किया। यह भारत के मुकाबले कई गुना अधिक है, न सिर्फ संख्या में बल्कि कार्यान्वयन की गति में भी। चीन की सफलता का बड़ा कारण यही भारी आर्थिक निवेश माना जाता है।
2. संयुक्त राज्य अमेरिका- अमेरिका में प्रदूषण नियंत्रण र्प्यावरण संरक्षण एजेंसी के माध्यम से होता है। इसका वार्षिक बजटः $9-10 बिलियन यानी 75,000-80,000 करोड़ रुपए रहा। क्लीन एयर एक्ट कार्यक्रमों पर हर साल अरबों डॉलर खर्च किए जाते हैं। बड़े शहरों की वायु गुणवत्ता सुधार के लिए स्थानीय फ़ंडिंग भी समानांतर चलती है। यूएसए की तुलना में भारत का बजट बेहद कम नजर आता है।
3. यूरोपीय संघ- प्रदूषण नियंत्रण के लिए ग्रीन डील और जीरो पॉल्यूशन एक्शन प्लान पर विशाल निवेश किया जा रहा है। यूरोपीय ग्रीन डील के तहत कई वर्षों में कुल निवेश एक ट्रिलियन यानी 90 लाख करोड़ रुपए, वायु-गुणवत्ता सुधार के लिए केवल एक वर्ष में ही भारत के पूरे पर्यावरण बजट से कई गुना अधिक धन यूरोपीय संघ जारी करता है। स्थानीय निकाय, नगर निगम और सिविल समाज भी बड़े स्तर पर निवेश करते हैं।
4. दक्षिण कोरिया- सियोल दुनिया के प्रदूषित शहरों में शामिल था, लेकिन देश ने बड़े पैमाने पर निवेश बढ़ाया। पीएम 2.5 से निपटने के लिए वार्षिक खर्चः $2-3 बिलियन यानी 17,000-25,000 करोड़ रुपए, वायु शोधन, मॉनिटरिंग, इलेक्ट्रिक सार्वजनिक परिवहन और सरकारी हस्तक्षेप में भारी खर्च। इन देशों की तुलना दर्शाती है कि भारत प्रदूषण-नियंत्रण पर बहुत कम निवेश कर रहा है, जबकि समस्या का पैमाना कहीं अधिक बड़ा है।
भारत की कम फ़ंडिंग चिंता का विषय
1. भारत दुनिया के सबसे प्रदूषित देशों में शामिल है, इसलिए बजट “समस्या के अनुपात” में होना चाहिए।
2. भारत में 40 से अधिक शहर अक्सर दुनिया की प्रदूषण सूची में आते हैं, इसलिए बड़े क्षेत्र के लिए बड़े बजट की ज़रूरत है।
3. विशेषज्ञ कहते हैं कि प्रदूषण से भारत में हर साल 10-12 लाख मौतें जुड़ी मानी जाती हैं, लेकिन स्वास्थ्य-जोखिम के अनुपात में खर्च बेहद कम है।
4. बड़े देशों की तुलना में भारत में आबादी बहुत अधिक है; प्रति व्यक्ति खर्च भी काफी कम है।
अंतरराष्ट्रीय तुलना
- देश प्रदूषण नियंत्रण वार्षिक/प्रधान खर्च भारत की तुलना
- चीन $270 बिलियन$ (4-5 वर्षों में) भारत से दर्जनों गुना अधिक
- यूएसए $10 बिलियन प्रति वर्ष भारत से 10 गुना अधिक
- यूएई 1 ट्रिलियन मल्टी-ईयर भारत से बहुत विशाल अंतर
- दक्षिण कोरिया $2-3 बिलियन प्रति वर्ष भारत से 20-30 गुना अधिक
- भारत 854 करोड़ रुपए पदूषण नियंत्रण आवश्यकता की तुलना में अत्यल्प
भारत के पास योजनाएं हैं, कार्यक्रम हैं और नीतियाँ भी हैं, लेकिन समस्या इतनी बड़ी है कि वर्तमान बजट उसके सामने बहुत छोटा पड़ता है। अन्य विकसित देशों ने प्रदूषण से लड़ने के लिए न सिर्फ भारी धन खर्च किया बल्कि मजबूत संस्थागत व्यवस्था, वैज्ञानिक मॉनिटरिंग और निवेश की निरंतरता बनाए रखी। भारत का बजट, आबादी के अनुपात, भूगोल और प्रदूषण स्तर की तुलना में अभी भी बहुत कम है। इसलिए जब भारत की तुलना चीन, यूरोप या अमेरिका जैसे देशों से की जाती है, तो स्पष्ट रूप से दिखाई देता है कि हमारा निवेश “समस्या के आकार” के अनुरूप नहीं है। यह स्थिति बताती है कि यदि भारत को वायु प्रदूषण जैसी बड़ी चुनौती से वास्तव में निपटना है तो आर्थिक निवेश को भी उसी स्तर पर बढ़ाना होगा जैसा दुनिया के प्रमुख देशों ने किया, तभी भारत अपने नागरिकों को स्वच्छ हवा और स्वस्थ जीवन का भरोसा दे सकेगा।




