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श्राद्ध-पितृपक्ष ही क्यों मातृपक्ष क्यों नहीं...जानें कवि चेतन आनंद ने क्यों उठाया यह सवाल

गाजियाबाद। “पितृपक्ष” का महत्व भारतीय संस्कृति, परंपरा और शास्त्रों से जुड़ा हुआ है। इसके पीछे कई ऐतिहासिक, धार्मिक और सामाजिक कारण बताए जाते हैं। पहली, वंश और गोत्र की परंपरा। इसके अनुसार प्राचीन भारतीय समाज में वंशावली पितृकुल (पिता के गोत्र) से जुड़ी मानी जाती थी। श्राद्ध और तर्पण में गोत्र, प्रवर आदि का उल्लेख होता है, जो पिता की ओर से चलता है।
इसलिए पितरों की स्मृति में विशेष पक्ष रखा गया। दूसरी, श्राद्ध का आधार। गरुड़ पुराण और महाभारत में पितरों के तर्पण का उल्लेख है। माना गया कि पितृ देवताओं को संतुष्ट करने से देवता भी प्रसन्न होते हैं। “पितृयान देवयानस्य मूलम”। तीसरी, सामाजिक संरचना। प्राचीन समय में पुरुष को परिवार का कुलपति और वंश वाहक माना जाता था। समाज पितृसत्तात्मक था। इसलिए धार्मिक कर्मकांड पिता और पितरों के नाम से स्थापित हुए। चौथी, मातृशक्ति का महत्व। यह कहना गलत होगा कि मातृपक्ष का आदर नहीं होता। नवरात्र में मां शक्ति की पूजा, अठवासा (कहीं-कहीं मातृपक्षीय श्राद्ध), और अन्नपूर्णा, लक्ष्मी, दुर्गा जैसी देवियों की आराधना मातृपक्ष का ही रूप है। कुछ परंपराओं में माँ के नाम से भी तर्पण करने की अनुमति है, विशेषकर अगर संतान मातृवंश को मान्यता देना चाहे।
आधुनिक दृष्टि-
आज बहुत लोग मानते हैं कि केवल पितृपक्ष ही क्यों? माँ, नानी-नाना, मामा, मौसी जैसे मातृपक्षीय पूर्वजों को भी श्राद्ध व स्मरण करना चाहिए। शास्त्रों में भी “यः यं स्मरति तस्य तर्पणं फलति” कहा गया है। अर्थात जिसे आप श्रद्धा से स्मरण करेंगे, वह तृप्त होगा। इसलिए पितृपक्ष ऐतिहासिक और धार्मिक परंपरा से चला आया, पर इसका मतलब यह नहीं कि मातृपक्ष का महत्व नहीं है। आजकल बहुत से परिवार पितृपक्ष में दोनों ओर के पूर्वजों को श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं। आप मातृपक्ष (नानी-नाना, मामा-मौसी आदि) के श्राद्ध/स्मरण को भी कर सकते हैं। शास्त्रों में इस पर सीधी मनाही नहीं है, बल्कि “जिसे श्रद्धा से तर्पण करेंगे वह तृप्त होगा” कहा गया है।
मातृपक्षीय श्राद्ध का सरल तरीका-
1. संकल्प करें। गंगाजल या शुद्ध जल से आचमन करके संकल्प लें। “मैं अपने मातृपक्षीय पूर्वजों (नानी-नाना, परनानी-परनाना...) को स्मरण करता/करती हूँ और उनका तर्पण करता/करती हूं।”
2. तर्पण (जल अर्पण)। एक लोटे में जल, तिल, पुष्प और थोड़े अक्षत (चावल) डालें। पीपल या तुलसी के समीप तीन बार दक्षिणाभिमुख होकर जल अर्पण करें। हर बार मन ही मन मातृपक्ष के पूर्वजों के नाम लें (यदि न जानते हों तो “मातृपक्षीय पितृगण” कहें)।
3. पिंडदान (यदि संभव हो)। आटे या चावल के गोल पिंड बनाकर तिल और घी मिलाकर उन्हें भी अर्पित कर सकते हैं।
4. भोजन और दान। ब्राह्मण या जरूरतमंद को भोजन कराना सबसे श्रेष्ठ माना गया है। घर में बने सात्विक भोजन (खीर, पूरी, दाल, सब्जी) का अर्पण करें। पशु-पक्षियों को भी अन्न या जल देना पुण्यकारी है।
5. श्रद्धा और स्मरण। किसी भी श्राद्ध में सबसे महत्त्वपूर्ण है “श्रद्धा”। मातृपक्ष के सभी पूर्वजों को याद करके, उनके लिए प्रार्थना करें कि वे सुखी हों, तृप्त हों और हमें आशीर्वाद दें।
मातृपक्षीय श्राद्ध/तर्पण का घरेलू विधि-पत्रक-
1. तैयारी। स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। एक लोटे में शुद्ध जल भरें, उसमें काले तिल, पुष्प और चावल (अक्षत) डालें। ताम्बूल (पान पत्ता) या पत्तल भी पास रखें। पूजा स्थान पर दीपक जलाएं।
2. संकल्प। हाथ में जल और पुष्प लेकर संकल्प करें-मम मातृपक्षीय पितृपुरुषाणां तृप्त्यर्थं, श्राद्धतर्पणं करिष्ये। यानी-मैं अपने मातृपक्षीय पूर्वजों की तृप्ति के लिए श्राद्ध-तर्पण करता या करती हूँ।
3. तर्पण (जल अर्पण)। दक्षिण दिशा की ओर मुख करके, तीन बार जल अर्पित करें और मंत्र बोलें-ॐ मातृपक्षीय पितृभ्यः स्वधा नमः।
ॐ मातामहाय स्वधा नमः। ॐ मातामहीभ्यां स्वधा नमः। ॐ प्रपितामहाय स्वधा नमः। ॐ प्रमातामहीभ्यां स्वधा नमः। ॐ सर्वेभ्यो मातृपक्षीय पितृभ्यः स्वधा नमः। अर्थात् नाना-नानी, परनाना-परनानी तथा मातृकुल के सभी पूर्वजों को स्वधा सहित नमस्कार।
4. पिंड अर्पण (यदि संभव हो)। आटे या चावल से छोटे-छोटे गोले (पिंड) बनाइए। उन पर तिल, घी व पुष्प रखकर उन्हें भी अर्पित करें।
5. भोजन और दान। घर में सात्विक भोजन (खीर, पूरी, दाल, सब्जी) बनाकर अर्पण करें। किसी ब्राह्मण, बुजुर्ग, साधु या जरूरतमंद को भोजन कराएँ। गौ, कौवे, चींटियों और पक्षियों को भी अन्न दें।
6. प्रार्थना। अंत में हाथ जोड़कर प्रार्थना करें-येषां जन्मकृतं पापं मयि वा मम मातृपक्षे वा। तत्सर्वं क्षम्यतां देवाः पितरश्च नमोऽस्तु ते॥
(हे देवताओं और मातृपक्षीय पितरों! यदि हमसे कोई त्रुटि हुई हो तो क्षमा करें और हमें आशीर्वाद दें।)
7. अंत में दीपक और अगरबत्ती बुझाएँ नहीं, स्वयं शान्त होने दें। मन में मातृपक्षीय पूर्वजों का स्मरण करते हुए दिन भर सात्विकता बनाए रखें। यह विधि साधारण गृहस्थ भी सहजता से कर सकते हैं। इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण है श्रद्धा और स्मरण, मंत्र न आ पाए तो हिंदी में भावपूर्वक बोलें।