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युवाशक्ति और आज का युगधर्म: क्रांतिकारी बदलाव सिर्फ युवा पीढ़ी ही ला सकती है-डॉ. अशोक कुमार गदिया

Shilpi Narayan
26 Sept 2025 5:39 PM IST
युवाशक्ति और आज का युगधर्म: क्रांतिकारी बदलाव सिर्फ युवा पीढ़ी ही ला सकती है-डॉ. अशोक कुमार गदिया
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गाजियाबाद। किसी भी मुल्क का युवा जब संगठित होकर तय कर लेता है कि कुछ विशेष करना है तो वह कुछ ही समय में कर गुजरता है। युवा शक्ति के आगे सारी सरकारी मशीनरी फेल हो जाती हैं। युवा आक्रोश के सामने सरकारी मशीनरी बेबश एवं मजबूर दिखाई देती है। अभी हाल ही में नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, बर्मा, अफगानिस्तान आदि देशों के अलावा भारत के लेह-लद्दाख प्रदेश में हमने देखा कि युवाशक्ति कैसे स्थापित सरकारों को मिनटों में उखाड़ फैंकती है। इससे सिद्ध होता है कि क्रांतिकारी बदलाव सिर्फ युवा पीढ़ी ही ला सकती है।

कार्यों में विश्वस्तरीय हमारी पूर्ण निपुणता

हम भारत के संदर्भ में बात करें तो पाएंगे कि भारत में लगभग 60-70 करोड युवा हैं। यह विश्व की सबसे बड़ी आबादी का देश है। एक युवा देश होने के नाते हमारे देश में कुछ स्वाभाविक लक्षण होने चाहिएं, जैसे अत्यधिक शक्ति, जोश, स्फूर्ति, हर समय कुछ नया और विशिष्ट करने का जज्बा, नयी उमंग, खेलकूद, साहसिक कार्य, अध्ययन एवं अनुसंधान, व्यवसाय, रोजगार, कला-संस्कृति, देशभक्ति, समाजसेवा, नई तकनीक, फैशन, साज-सज्जा आदि। क्योंकि जहां युवा पीढ़ी होगी, वहां ये कार्य स्वाभाविक रूप से नित नूतन तरीकों से बढ़िया होंगे। होने भी चाहिएं। परन्तु जब वास्तविकता पर दृष्टिपात करेंगे तो पाएंगे कि हमारे यहां इन सबमें जिस अनुपात में प्रगति होनी चाहिए, उतनी नहीं हुई है। इन सब कार्यों में विश्वस्तरीय हमारी पूर्ण निपुणता, गुणवत्ता एवं जनसंख्या बहुत कम है।

युवाओं का स्वाभाविक विकास नहीं हुआ

हमारी युवा जनसंख्या के अनुपात में तो यह बिल्कुल नगण्य है। इस पिछड़ेपन का मूल कारण क्या है? बहुत सोचने पर जो समझ आता है, वह यह कि हमारे नौजवानों को घर से लेकर विद्यालय, महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय तक में न तो उचित शिक्षा मिली, न उचित प्रशिक्षण मिला और न ही उचित सलाह एवं प्रोत्साहन मिला। कहने का मतलब यह कि युवाओं का स्वाभाविक विकास नहीं हुआ। उनका विकास व्याप्त रीति-रिवाजों, परिस्थितियों, देखा-देखी, दुष्प्रचार, गलतफहमी, गलत सरकारी नीतियों, राजनैतिक दलों की साजिशों और असामाजिक तत्वों के प्रलोभन से हुआ।

समाज की स्थिरता पर असर डालती

इसी का नतीजा है कि हर तरफ अफरातफरी, आतंक, हिंसा, असंतोष, भ्रष्टाचार, शोषण, साम्प्रदायकिता, जातिवाद, बेरोजगारी, सरकारी नौकरी का लालच, सरकार पर पूर्ण निर्भरता, कामचोरी, हरामखोरी, अनुशासनहीनता, चोरी, डकैती, लूट, झूठ, हेराफेरी, मिलावट, कम तौल, हत्या, बलात्कार, आत्महत्या, बेवजह तनाव, नशाखोरी, सामाजिक असमानता आदि से हम ग्रसित हैं। हमारी युवा पीढ़ी और इसमें यह मानसिकता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। लद्दाख घटना का ही संदर्भ लें। ऐसी घटनाएं सिर्फ सुरक्षा का ही सवाल नहीं खड़ा करतीं, बल्कि युवाओं के भविष्य, रोजगार और समाज की स्थिरता पर भी असर डालती हैं।

तनाव या घटना के कारण पर्यटन ठप हो सकता है

जब किसी क्षेत्र में राजनीतिक या सामाजिक अस्थिरता होती है, तो वहां के युवाओं के सामने शिक्षा और करियर के अवसर सीमित हो जाते हैं। असंतोष और बेरोजगारी उन्हें गलत दिशा (हिंसा, नशा, उग्रवाद) की ओर धकेल सकती है। सोशल मीडिया और बाहरी ताकतें भी भटके हुए युवाओं को भड़काकर अस्थिरता फैला सकती हैं। लद्दाख जैसे क्षेत्रों में पर्यटन, स्थानीय व्यापार और सुरक्षा पर आधारित रोजगार के अवसर अधिक हैं। तनाव या घटना के कारण पर्यटन ठप हो सकता है। निवेश और विकास योजनाएं रुक सकती हैं, जिससे युवाओं की नौकरियां प्रभावित होंगी। लंबे समय तक हालात बिगड़े तो प्रवासन बढ़ेगा और क्षेत्र खालीपन का शिकार हो सकता है।

समाज प्रगतिशील एवं सभ्य नहीं हो सकता

ऐसे में अगर किसी भी राष्ट्र एवं समाज को यदि उन्नति के शिखर पर पहुंचना है और खुशहाल होना है तो उस देश का युवा जब तक आत्मविश्वास से भरपूर, आत्मनिर्भर, अपने अधिकारों-दायित्वों के प्रति पूर्ण रूप से सजग, सामाजिक रूप से संवेदनशील, देशभक्त, अपनी संस्कृति, सभ्यता, महापुरुषों का आदर करने वाला, मानसिक एवं शारीरिक रूप से पूर्णतया विकसित और सुदृढ़ नहीं होगा, तब तक देश उन्नति के शिखर पर नहीं पहुंच सकता। वहां का समाज प्रगतिशील एवं सभ्य नहीं हो सकता।

युवा पीढ़ी के बीच काम करना

अतः इस कालखण्ड में सबसे महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय एवं सामाजिक कार्य यदि कोई है तो वह है युवा पीढ़ी के बीच काम करना, उसको अच्छे से पढ़ाना-लिखाना, प्रशिक्षण देना, सामाजिक एवं राष्ट्रीय विषयों की पूर्ण प्रमाणिक जानकारी देना, उनमें सामाजिक व राष्ट्रीय चेतना जागृत करना। उनको इस देश की कला-संस्कृति, संस्कार एवं महापुरुषों के साथ जोड़ना और उनके प्रति गौरव का भाव पैदा करना। उनमें हर परिस्थिति में देश एवं समाज के हित में कुछ करते रहने का जज्बा पैदा करना।

उपेक्षित तबके के प्रति दया या घृणा का भाव नहीं

समाज के पिछड़े एवं दबे हुए उपेक्षित तबके के प्रति दया या घृणा का भाव नहीं, अपनेपन का भाव जगाना और लगातार उनके विकास के लिये कुछ करते रहने का भाव पैदा करना। नौजवानों की अच्छी नौकरी लगवाना। जो अच्छी नौकरी नहीं कर सकते, उन्हें अच्छा उद्यमी बनने के लिए प्रेरित करना। हर नवयुवक को अपने व्यक्तित्व को निखारने का सुअवसर प्रदान करना। उसको एक जिम्मेदार नागरिक बनाना और अंततः उसको अपनी विद्या में एक कामयाब पेशेवर बनाकर सामाजिक जीवन में भेजना। यह है आज के समय का युग धर्म।

इसलिए यह नितान्त आवश्यक है कि हम अपनी युवा पीढ़ी को ठीक से सम्भालें। इसके लिए हमें निम्न काम करने होंगे-

1. युवाओं को आज के जमाने की शिक्षा देना।

2. युवाओं को व्यावहारिक प्रशिक्षण देना।

3. युवाओं में उद्यमशीलता एवं नवाचार की भावना विकसित करना।

4. युवाओं का हर स्तर पर उत्साहवर्द्धन करना।

5. युवाओं में छिपी प्रतिभा को बाहर लाना और उसके प्रदर्शन का उचित अवसर देना।

6. युवाओं के मानसिक, शारीरिक एवं बौद्धिक विकास के उपक्रम हर समय करते रहना।

7. युवाओं को अपनी सभ्यता, संस्कृति, संस्कार, राष्ट्रीय महापुरुष, राष्ट्रभक्ति एवं सामाजिक संवेदना के साथ जोड़ना।

8. युवाओं को जातिविहीन समाज की रचना की ओर अग्रसर करना।

9. सामाजिक बुराइयों, रुढ़िवादियों, कुरीतियों की ओर जागरूक करवाना एवं धीरे-धीरे उनके उन्मूलन का प्रयास करना।

10. नशाखोरी निषेध के लिये हर समय प्रयास करना।

ये प्रयास हर स्तर पर सरकार एवं समाज द्वारा किये जाने चाहिएं। इसके लिए समाज एवं सरकार के हर समृद्ध एवं प्रतिभावान व्यक्ति को युवाओं के बीच जाना चाहिए। अपना तन, मन, धन, युवाओं के विकास में लगाना चाहिए। यही है आज का युग धर्म। जय हिन्द!

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