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Unique Wedding: हिमाचल में 'जोड़ीदार प्रथा' के तहत फिर से जीवित हुई कलयुग की 'द्रौपदी', प्रॉपर्टी के विभाजन से बचाव या वजह कुछ और...

शिमला। हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के गिरिपार हाटी क्षेत्र में एक अनोखी शादी हुई है। यहां की सदियों पुरानी जोड़ीदार प्रथा ने एकबार फिर से लोगों का ध्यान खींचा है।
हाटी समुदाय की यह पौराणिक परंपरा चर्चा का विषय बनी
हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले का गिरिपार हाटी क्षेत्र एक बार फिर सुर्खियों में छाया हुआ है। सदियों पुरानी जोड़ीदार प्रथा फिर से जीवंत हो गई है। जानकारी के मुताबिक शिलाई गांव के दो भाइयों ने एक ही दुल्हन के साथ पारंपरिक हिंदू रीति-रिवाजों के तहत एक मंडप में विवाह रचाया है। इस अनूठी शादी का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया उसके बाद हाटी समुदाय की यह पौराणिक परंपरा चर्चा का विषय बन गई है।
महाभारत कालीन पांडव संस्कृति से प्रेरित प्रथा
हाटी समुदाय में प्रचलित जोड़ीदार प्रथा में एक पत्नी को दो या उससे अधिक भाई बंटवारा करते हुए अपनाते हैं। यह परंपरा महाभारत कालीन पांडव संस्कृति से प्रेरित मानी जाती है।
गिरिपार क्षेत्र के महासचिव कुंदन सिंह शास्त्री ने कहा
केंद्रीय हाटी समिति, गिरिपार क्षेत्र के महासचिव कुंदन सिंह शास्त्री कहते हैं, इस प्रथा को पांडव संस्कृति से लिया गया है, जो विश्वास, साझेदारी और पारिवारिक एकता पर आधारित है। सिरमौर, किन्नौर और उत्तराखंड के जौंसार बावर जैसे क्षेत्रों में यह प्रथा लंबे समय से प्रचलित रही है।
प्रदीप और कपिल की अनूठी शादी
शिलाई गांव के भाई प्रदीप सिंह और कपिल नेगी ने कुन्हाट गांव की सुनीता के साथ जोड़ीदार प्रथा के तहत विवाह किया। इस विवाह में हजारों लोग शामिल हुए और पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ समारोह संपन्न हुआ। दोनों भाइयों ने बताया कि आपसी सहमति से हमलोगों ने निर्णय लिया है। यह विश्वास, देखभाल और साझी जिम्मेदारी का रिश्ता है।
दुल्हन सुनीता का बयान
दुल्हन सुनीता ने कहा कि यह मेरा स्वतंत्र निर्णय था, इसमें किसी का कोई दबाव नहीं था। तीन दिनों तक चले इस विवाह समारोह में पारंपरिक व्यंजनों का आनंद लिया गया, जिसमें सैकड़ों गांववाले और रिश्तेदार शामिल हुए।
जोड़ीदार प्रथा के जीवंत होने के कारण
जोड़ीदार प्रथा के पीछे कई सामाजिक कारण हैं। इस प्रथा को पुश्तैनी संपत्ति के विभाजन को रोकने, महिलाओं को विधवा होने से बचाने और परिवार में एकता बनाए रखने के लिए अपनाई जाती है। इस परंपरा से सामाजिक संरचना को होती है, बल्कि पारिवारिक मूल्यों का भी संरक्षण करती है।