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150 Years of Vande Mataram: भारत की शक्ति, एकता का प्रतीक वंदे मातरम! उड़ा दी थी अंग्रेजों की नींद, जानें कैसे बना राष्ट्रीय गीत एक शक्तिशाली नारा

Anjali Tyagi
7 Nov 2025 11:37 AM IST
150 Years of Vande Mataram: भारत की शक्ति, एकता का प्रतीक वंदे मातरम! उड़ा दी थी अंग्रेजों की नींद, जानें कैसे बना राष्ट्रीय गीत एक शक्तिशाली नारा
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इस वर्ष 7 नवंबर 2025 को भारत के राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है।

नई दिल्ली। आज देश के राष्ट्रगीत वंदे मातरम के 150 साल पूरे हो गए हैं। "वंदे मातरम" का इतिहास भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रवाद से गहराई से जुड़ा हुआ है। यह गीत मूल रूप से बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखा गया था और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान देशभक्ति और एकता का एक शक्तिशाली प्रतीक बन गया।

प्रमुख ऐतिहासिक तथ्य

इस गीत की रचना प्रसिद्ध बंगाली लेखक बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने 1870 के दशक में (लगभग 1876 में) की थी। यह गीत पहली बार 1882 में प्रकाशित उनके राजनीतिक उपन्यास 'आनंदमठ' का हिस्सा बना। उपन्यास में, यह गीत एक संन्यासी सेना द्वारा ब्रिटिश सैनिकों से लड़ने के संदर्भ में इस्तेमाल किया गया था।

रवींद्रनाथ टैगोर ने गाया पहली बार "वंदे मातरम"

इस गीत को पहली बार सार्वजनिक रूप से रवींद्रनाथ टैगोर ने 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गाया था। ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम के दौरान "वंदे मातरम" एक शक्तिशाली नारा बन गया। यह स्वतंत्रता सेनानियों के लिए प्रेरणा का एक प्रमुख स्रोत था, जो लोगों में जोश और साहस भरता था। इस नारे की लोकप्रियता को देखते हुए, अंग्रेजों ने कई बार इसके उच्चारण पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की।

150वीं वर्षगांठ में देशव्यापी गूंज

इस 150वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में, देश भर में कई कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। आज, 7 नवंबर 2025 को, राष्ट्रव्यापी सामूहिक गायन के साथ इन समारोहों की शुरुआत हुई, जिससे हर कोने में एक ही सुर गूंज उठा और हर दिल भावनाओं से भर गया। प्रधानमंत्री ने इस अवसर को चिह्नित करने के लिए एक स्मारक डाक टिकट और सिक्का भी जारी किया। ये समारोह 7 नवंबर, 2025 से शुरू होकर अगले एक साल तक चलेंगे (7 नवंबर, 2026 तक), जिसमें 'वंदे मातरम' के इतिहास और महत्व को विभिन्न सांस्कृतिक और शैक्षिक कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों तक पहुंचाया जाएगा।

स्कूलों में गाने पर भी लगी थी रोक, लेकिन नहीं रुकी गूंज

वंदे मातरम् ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ भारतीय एकता पहचान बन गया। सरकार ने स्कूलों में इसे गाने पर रोक लगाई और छात्रों को दंड भी दिया पर गीत की गूंज नहीं रुकी। यह स्वदेशी आंदोलन से पूरे देश में फैल गया। इससे अंग्रेजों की नींद उड़ गई थी क्योंकि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान यह गीत क्रांतिकारियों की शक्ति और उत्साह का प्रतीक बन गया।

अंग्रेजों ने मुसलमानों को उकसाया

“बांटो और राज करो” की नीति लेकर चलने वाले अंग्रेजों को हमेशा हिंदुओं-मुसलमानों के बीच दूरियां बढ़ाने के मौके की तलाश रहती थी। “वंदे मातरम” गीत भी इसका जरिया बना। मुस्लिम लीग को उकसाने में अंग्रेज कामयाब रहे। लीग के 1909 के अमृतसर अधिवेशन में “वंदे मातरम” का खुला विरोध हुआ। अध्यक्ष सैयद अली इमाम ने ‘वंदे मातरम’ को सांप्रदायिक और इस्लाम विरोधी करार देते हुए इसे अस्वीकार किया।

कुछ लोगों ने इसकी आलोचना यह कहकर की है कि इसके कुछ अंश या इसका मूल संदर्भ उनकी धार्मिक मान्यताओं के अनुकूल नहीं है। दरअसल इस्लाम में केवल एक ईश्वर (अल्लाह) की पूजा की जाती है। कुछ मुसलमानों ने महसूस किया कि गीत में भारत माता को देवी के रूप में वर्णित करना उनकी एकेश्वरवादी मान्यताओं के विपरीत है। उनके लिए 'वंदना' शब्द का अर्थ पूजा के समान है, जो केवल ईश्वर के लिए है। यह गीत बंकिम चंद्र चटर्जी के उपन्यास 'आनंदमठ' का हिस्सा है। इस उपन्यास के कथानक में कुछ ऐसे हिस्से हैं जिन्हें कुछ मुसलमानों ने आपत्तिजनक माना। यह महत्वपूर्ण है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सभी समुदायों ने भाग लिया, और "वंदे मातरम" कई लोगों के लिए देशभक्ति और प्रेरणा का प्रतीक रहा। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने बाद में गीत के केवल पहले दो छंदों को अपनाया ताकि विभिन्न समुदायों की भावनाओं का सम्मान किया जा सके और राष्ट्रीय आंदोलन को एकजुट रखा जा सके।

जन गण मन राष्ट्रगान और वंदे मातरम को बराबरी का सम्मान

"जन गण मन" (राष्ट्रगान) और "वंदे मातरम" (राष्ट्रीय गीत) को बराबर का सम्मान दिया जाना चाहिए। 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने यह घोषणा की थी कि इन दोनों गीतों को समान दर्जा और सम्मान प्राप्त होगा। केंद्र सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक हलफनामे में स्पष्ट किया है कि "जन गण मन" और "वंदे मातरम" दोनों का दर्जा बराबर है। देश के प्रत्येक नागरिक को दोनों के प्रति समान सम्मान और आदर दिखाना चाहिए, क्योंकि दोनों ही देश की राष्ट्रीय पहचान और स्वतंत्रता संग्राम से गहराई से जुड़े हैं। डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने इस बात पर जोर दिया था कि "वंदे मातरम" ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है, इसलिए इसे राष्ट्रगान के समान ही सम्मान मिलना चाहिए।

राष्ट्रगान और वंदे मातरम के उपयोग में थोड़ा अंतर है

हालांकि दोनों का दर्जा समान है, लेकिन इनके उपयोग में थोड़ा अंतर है। राष्ट्रगान ("जन गण मन") आमतौर पर आधिकारिक सरकारी समारोहों, अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों और संवैधानिक कार्यों में गाया जाता है। इसके गायन की समय सीमा (लगभग 52 सेकंड) निर्धारित है। राष्ट्रीय गीत ("वंदे मातरम") सांस्कृतिक और देशभक्ति के अवसरों पर अधिक गाया जाता है, और इसके गायन के लिए राष्ट्रगान के समान सख्त नियम या समय सीमा नहीं है।

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