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तारीख पर तारीख का अजब केस; 50 साल से लड़ रहीं विधवा को नहीं मिला हक, 33 रुपए की पेंशन ही सहारा

DeskNoida
31 Oct 2025 1:00 AM IST
तारीख पर तारीख का अजब केस; 50 साल से लड़ रहीं विधवा को नहीं मिला हक, 33 रुपए की पेंशन ही सहारा
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79 साल की बुजुर्ग विधवा मिथिलेश श्रीवास्तव पिछले 50 सालों से अपने हक की लड़ाई लड़ रही हैं। आधी सदी बीत जाने के बाद भी उन्हें न्याय नहीं मिल पाया है।

मध्य प्रदेश के ग्वालियर से एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है, जिसने "तारीख पर तारीख" जैसी कहावत को हकीकत बना दिया है। 79 साल की बुजुर्ग विधवा मिथिलेश श्रीवास्तव पिछले 50 सालों से अपने हक की लड़ाई लड़ रही हैं। आधी सदी बीत जाने के बाद भी उन्हें न्याय नहीं मिल पाया है।

मिथिलेश श्रीवास्तव, जिनके पति शंकरलाल श्रीवास्तव ने मध्य प्रदेश पुलिस में 23 साल तक सेवा दी थी, नवंबर 1971 में नौकरी से इस्तीफा देने के बाद 1985 में दुनिया छोड़ गए। पति के निधन के बाद मिथिलेश ने अपने पति की पेंशन, ग्रेच्युटी और रिटायरमेंट लाभ पाने के लिए आवेदन किया, लेकिन विभाग ने उनके साथ ऐसा व्यवहार किया मानो उनका कोई अस्तित्व ही न हो।

अदालतों के चक्कर, तारीखों की लंबी कतार

विभाग की चुप्पी और लापरवाही से तंग आकर मिथिलेश ने अदालत का दरवाजा खटखटाया। लंबे इंतजार के बाद 2005 में सिविल कोर्ट से उन्हें फैसला अपने पक्ष में मिला। लेकिन इसके बाद भी उनकी परेशानी खत्म नहीं हुई। विभाग ने पेचीदगियों और गायब दस्तावेजों का हवाला देकर मामला वर्षों तक लटकाए रखा।

हर तारीख के साथ मिथिलेश की उम्मीदें कमजोर पड़ती गईं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। वह अब भी न्याय की आस लगाए बैठी हैं।

हाईकोर्ट ने जताई नाराजगी

जब मामला आखिरकार मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच के सामने पहुंचा, तो न्यायमूर्ति भी हैरान रह गए। कोर्ट ने सरकारी वकील से कहा, “ये केस तो हमारी और आपकी उम्र से बड़ा है।”

अदालत ने सरकार को सख्त निर्देश दिए कि नवंबर के दूसरे हफ्ते तक मामले में कार्रवाई पूरी की जाए। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो श्योपुर के पुलिस अधीक्षक को कोर्ट में स्पष्टीकरण देने के लिए उपस्थित होना पड़ेगा।

33 रुपए की पेंशन पर गुजारा

इतने लंबे संघर्ष के बीच मिथिलेश श्रीवास्तव के पास केवल ₹33 की अस्थायी पेंशन ही एकमात्र सहारा है। अदालत ने अपने आदेश में इस स्थिति पर गहरी नाराजगी जताई और कहा कि यह मामला प्रशासनिक लापरवाही की एक शर्मनाक मिसाल है।

आधी सदी की न्याय यात्रा

50 सालों से जारी इस लड़ाई में कई सरकारें आईं और गईं, अधिकारियों की पीढ़ियां बदलीं, लेकिन मिथिलेश के जीवन में न्याय नहीं आया। उन्होंने अपने जीवन का सबसे लंबा दौर अदालतों और विभागीय दफ्तरों के चक्कर काटते हुए बिता दिया।

यह कहानी सिर्फ एक महिला की नहीं, बल्कि उस व्यवस्था की भी है जहां न्याय की डगर इतनी लंबी और कठिन हो गई है कि कई बार इंसान की उम्र ही खत्म हो जाती है, लेकिन न्याय नहीं मिलता।

मिथिलेश श्रीवास्तव की यह जंग आज भी जारी है — उम्मीद है कि इस बार अदालत का आदेश उनकी दशकों पुरानी पीड़ा को आखिरकार खत्म करेगा।

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