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एक ऐसी दरगाह जो अपनी खूबसूरत वास्तुकला, कव्वाली और सांप्रदायिक सद्भाव के लिए जानी जाती है, जानें किन हस्तियों की है यहां कब्रें, क्या है विशेषता

नई दिल्ली। निज़ामुद्दीन दरगाह दिल्ली में स्थित एक प्रसिद्ध सूफी दरगाह है, जो सूफी संत हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया को समर्पित है। यह दरगाह 1325 में उनके निधन के बाद बनाई गई थी और इसमें संत के साथ-साथ अमीर खुसरो, जियाउद्दीन बरनी और शाहजहां की बेटी जहांआरा बेगम सहित कई अन्य महत्वपूर्ण हस्तियों की कब्रें भी हैं। यह दरगाह अपनी खूबसूरत वास्तुकला, कव्वाली और सांप्रदायिक सद्भाव के लिए जानी जाती है, जहां हर धर्म के लोग आते हैं।
दरगाह की मुख्य विशेषताएं
धार्मिक सद्भाव: हजरत निज़ामुद्दीन औलिया ने प्रेम, करुणा और आंतरिक आध्यात्मिक ज्ञान की खोज पर जोर दिया, जो धर्म, जाति और पंथ की बाधाओं को पार करता था। इसी कारण, यह दरगाह अंतर-धार्मिक आस्था का प्रतीक है और सभी समुदायों के लोगों को आकर्षित करती है।
इतिहास: इस दरगाह का निर्माण 14वीं शताब्दी (1325 ईस्वी में हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया के निधन के बाद) में शुरू हुआ था, हालांकि वर्तमान गुंबददार संरचना 1562 में बनाई गई थी। यह दिल्ली के निज़ामुद्दीन पश्चिम क्षेत्र में स्थित सबसे पुराने लगातार बसे हुए इलाकों में से एक है।
वास्तुकला: दरगाह परिसर में जटिल संगमरमर का काम, मेहराबदार प्रवेश द्वार और एक शांत आंगन है। परिसर के भीतर, प्रसिद्ध कवि और संत के शिष्य अमीर खुसरो, मुगल राजकुमारी जहांआरा बेगम और इनायत खान की कब्रें भी देखी जा सकती हैं।
आध्यात्मिक माहौल: यह स्थल अपनी शाम की कव्वाली (भक्ति संगीत) सभाओं के लिए जाना जाता है, जो एक अनूठा और आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करती हैं।
सांस्कृतिक महत्व
कव्वाली: दरगाह कव्वाली के लिए प्रसिद्ध है और यहां के कई सूफी गायक कव्वाली गाते हैं।
लंगर: यहां आने वाले सभी आगंतुकों को मुफ्त में खाना (लंगर) परोसा जाता है, जो जरूरतमंदों की मदद करने की परंपरा को दर्शाता है।
आस-पास: दरगाह हुमायूं के मकबरे के पास स्थित है और आसपास फूलों और इत्र के बाजार हैं।
परिवहन: दिल्ली मेट्रो की ब्लू लाइन पर प्रगति मैदान मेट्रो स्टेशन सबसे नज़दीकी मेट्रो स्टेशन है।
खुला रहने का समय: दरगाह पूरे दिन और सप्ताह के सभी दिनों में खुली रहती है।
दिल्ली में कई जगहों पर रहे
कहा जाता है कि निजामुद्दीन जब तीसरी बार अजोधन गए तो बाबा फरीद ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाया। हालांकि, उनकी यात्रा के तुरंत बाद निजामुद्दीन को खबर मिली कि बाबा फरीद की मृत्यु हो गई है। निजामुद्दीन दिल्ली में कई जगहों पर रहे और अंत में वह उत्तर प्रदेश के गियासपुर में बस गए। उन्होंने अपना खानकाह (पूजा स्थल और सूफी अनुष्ठान आयोजित करने का स्थान) बनाया, जिसमें अमीर और गरीब सभी तरह के लोगों की भीड़ रहती थी।




