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एक ऐसा ज्योतिर्लिंग जहां भगवान शिव और माता पार्वती नाग-नागिन के रूप में हुए थे प्रकट! जानें क्यों अर्पित किए जाते हैं धातु से बने नाग-नागिन

Anjali Tyagi
31 Dec 2025 8:00 AM IST
एक ऐसा ज्योतिर्लिंग जहां भगवान शिव और माता पार्वती नाग-नागिन के रूप में हुए थे प्रकट! जानें क्यों अर्पित किए जाते हैं धातु से बने नाग-नागिन
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द्वारका। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात के द्वारका के पास स्थित भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जिसे नागनाथ या नागेश भी कहते हैं, जो सर्प (नागों) के देवता के रूप में पूजे जाते हैं, जहां एक विशाल शिव प्रतिमा और शांत वातावरण है और यह भक्तों को पाप मुक्ति और आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है, साथ ही यहाँ नाग-नागिन रूप में शिव-पार्वती की पूजा होती है।

पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन समय में दारूका नाम की एक राक्षस कन्या थी। उसने तपस्या के द्वारा माता पार्वती को प्रसन्न वरदान प्राप्त किया था। दारुका ने कहा कि मैं वन नहीं जा सकती हूं। वहां पर कई तरह की दैवीय औषधियां हैं। सत्कर्म के लिए हम राक्षसों को उस वन में जाने की अनुमति दें। माता पार्वती ने यह वरदान दे दिया। इसके बाद दारूका ने वन में बहुत उत्पात मचाया और वन को देवी-देवताओं से छीन लिया। साथ ही सुप्रिया को बंदी बना लिया। वह शिवभक्त थीं। ऐसी स्थिति में सुप्रिया ने भगवान शिव की तपस्या शुरू की और प्रभु से खुद के बचाव के लिए वरदान मांगा। महादेव उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर प्रकट हुए और उनके साथ ही चार दरवाजों का एक बेहद सुंदर मंदिर प्रकट हुआ। मंदिर के बीच में ज्योतिर्लिंग प्रकाशित हुआ। सुप्रिया ने सच्चे मन से महादेव की पूजा-अर्चना की और शिव जी वरदान में राक्षसों का नाश मांग लिया। इसके अलावा महादेव से इसी जगह पर स्थित होने के लिए कहा। शिव जी ने इस बात को स्वीकार कर उसी स्थल पर विराजमान हो गए। इसी तरह यह ज्योतिर्लिंग स्वरूप भगवान शिव ‘नागेश्वर’ कहलाए।

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग क्यों प्रसिद्ध है

गुजरात के द्वारका धाम से 17 किलोमीटर बाहरी क्षेत्र की ओर यह मंदिर स्थित है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, नागेश्वर मंदिर में भगवान शिव और माता पार्वती नाग-नागिन के रूप में प्रकट हुए थे। इसलिए इसे नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है। देशभर में शिव जी के बारह ज्योतिर्लिंग हैं। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का दसवां स्थान है।

मुख्य विशेषताएं

महत्व: शिव पुराण के अनुसार, यह 12 ज्योतिर्लिंगों की सूची में आता है और इसे पृथ्वी पर पहला ज्योतिर्लिंग भी माना जाता है।

विशाल प्रतिमा: मंदिर परिसर में भगवान शिव की 82 फीट (25 मीटर) ऊंची बैठी हुई मुद्रा में एक भव्य मूर्ति है, जो दूर से ही दिखाई देती है।

स्थान: यह द्वारका मुख्य शहर (द्वारकाधीश मंदिर) से लगभग 15 से 18 किमी की दूरी पर स्थित है।

अनोखी विशेषता: यहां का शिवलिंग दक्षिण की ओर उन्मुख (facing south) है, जो अन्य मंदिरों से भिन्न है।

महत्व

- यहां दर्शन करने से नाग दोष और सभी पापों से मुक्ति मिलती है।

- यह स्थान आध्यात्मिक शांति और भक्ति के लिए जाना जाता है।

- भगवान श्रीकृष्ण ने भी इस ज्योतिर्लिंग की पूजा की थी।

यात्रा जानकारी

मंदिर दर्शन के लिए सुबह 6:00 बजे से रात 9:00 बजे तक खुला रहता है। दर्शन के लिए कोई शुल्क नहीं है (निशुल्क)। द्वारका रेलवे स्टेशन या बस स्टैंड से आप ऑटो या टैक्सी के जरिए 30-40 मिनट में यहां पहुंच सकते हैं। गोपी तालाब और बेट द्वारका भी इसी मार्ग पर स्थित हैं, जिन्हें आप एक ही दिन में देख सकते हैं।

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