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एक ऐसा मंदिर जो बना है एक विशाल रथ के आकार में, यूनेस्को ने किया है विश्व धरोहर स्थल घोषित, जानें नाम और इतिहास

Anjali Tyagi
5 Dec 2025 8:00 AM IST
एक ऐसा मंदिर जो बना है एक विशाल रथ के आकार में, यूनेस्को ने किया है विश्व धरोहर स्थल घोषित, जानें नाम और इतिहास
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भुवनेश्वर। ओडिशा के तट पर स्थित कोणार्क सूर्य मंदिर भारतीय वास्तुकला का एक अद्भुत है, जिसे 1984 में यूनेस्को (UNESCO) विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था. यह मंदिर सूर्य देव को समर्पित है और एक विशाल रथ के आकार में बनाया गया है। इसे भारत की मध्यकालीन वास्तुकला और शिल्पकला का अद्भुत उदाहरण माना जाता है। यह मंदिर ओडिशा के पुरी जिले में स्थित है और अपनी भव्यता, नक्काशी और रथ के आकार के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। मंदिर का निर्माण 13वीं शताब्दी में राजा नरसिंह देव ने करवाया था और इसे सूर्य देव को समर्पित किया गया था। इस मंदिर को बनाने में 1200 कारीगरों ने 12 साल तक काम किया था।

कोणार्क मंदिर की अद्भुत शिल्पकला के बारे में कुछ मुख्य बातें

1. विशाल रथ संरचना: पूरा मंदिर एक विशाल रथ के आकार में बनाया गया है। इसमें पत्थर के 24 बड़े पहिये (प्रत्येक का व्यास लगभग 10 फीट) लगे हुए हैं, और इसे खींचने के लिए 7 घोड़ों की मूर्तियां (जिनमें से अधिकांश अब खंडहर हो चुकी हैं) बनाई गई हैं।

2. सूर्य घड़ी के पहिये: ये 24 पहिये सिर्फ सजावट के लिए नहीं हैं। ये वास्तव में धूपघड़ी (Sundial) का काम करते थे। इन पहियों की छाया को देखकर सटीक समय का पता लगाया जा सकता था।

3. जटिल नक्काशी: मंदिर की दीवारों, चबूतरों और स्तंभों पर अत्यंत जटिल और बारीक नक्काशी की गई है। यहां देवी-देवताओं, संगीतकारों, नर्तकियों, हाथियों, घोड़ों और पौराणिक कथाओं के दृश्यों को दर्शाया गया है।

4. कामुक मूर्तियां : खजुराहो की तरह, कोणार्क मंदिर में भी कामुक मूर्तियां हैं, जो उस समय की सामाजिक और सांस्कृतिक मान्यताओं को दर्शाती हैं और जीवन के सभी पहलुओं को स्वीकार करने का प्रतीक हैं।

5. कलिंग वास्तुकला: यह मंदिर कलिंग वास्तुकला शैली में बनाया गया है, जो इस क्षेत्र की विशेषता है। इसमें मुख्य रूप से लाल बलुआ पत्थर और काला क्लोराइट पत्थर का उपयोग किया गया है।

6. काला पैगोडा : नाविकों द्वारा इस मंदिर को "काला पैगोडा" कहा जाता था क्योंकि इसका रंग गहरा दिखता था और यह समुद्र में एक महत्वपूर्ण स्थलचिह्न (landmark) के रूप में काम करता था।

आज, मंदिर का एक बड़ा हिस्सा खंडहर में तब्दील हो चुका है, लेकिन बचा हुआ हिस्सा भी इसकी भव्यता और ऐतिहासिक महत्व को स्पष्ट रूप से दर्शाता है। यह यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है।

शिल्पकला की मुख्य विशेषताएं

रथ का आकार: पूरा मंदिर भगवान सूर्य के रथ के रूप में बनाया गया है, जिसकी अगुवाई छह घोड़े करते हैं और इसमें 24 पहिये हैं।

पहिए और समय: 12 जोड़ी पहियों में से प्रत्येक लगभग 3 मीटर व्यास का है, जिन्हें 'धूप घड़ी' भी कहा जाता है क्योंकि ये समय बताने का काम करते हैं।

घोड़े: सात घोड़े, जो सप्ताह के सात दिनों का प्रतीक हैं, रथ को खींचते हुए प्रतीत होते हैं, और उनकी नक्काशी बहुत सजीव है।

नक्काशी और मूर्तियां: मंदिर की दीवारों पर फूल, बेल, ज्यामितीय नमूनों के साथ-साथ मानव, देव, गंधर्व और किन्नर आदि की सुंदर नक्काशी की गई है।

नट मंदिर: मंदिर के सामने एक नट मंदिर है, जहां मंदिर की नर्तकियां सूर्यदेव को प्रसन्न करने के लिए नृत्य करती थीं।

पिरामिडनुमा छत: मंदिर की छत (गांडी) पर संगीतकारों को चित्रित करने वाली मूर्तियां हैं।

चुंबकीय रहस्‍य: किंवदंतियों के अनुसार, मंदिर के शीर्ष पर एक बड़ा चुंबक था, जिसके कारण समुद्र से गुजरने वाले जहाज भटक जाते थे, लेकिन बाद में उसे हटा दिया गया।

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