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भारत का एक ऐसा मंदिर जो 14 घंटे समुद्र में डूबा रहता है, कहा जाता है गुप्त तीर्थ, जानें नाम और इतिहास

भावनगर। गुजरात के भावनगर जिले में कोलियाक तट के पास स्थित निष्कलंका महादेव मंदिर अपने अनूठे रहस्य के लिए जाना जाता है, जिसके तहत यह मंदिर दिन में लगभग 14 घंटे समुद्र के पानी में डूबा रहता है और केवल कम ज्वार (low tide) के दौरान ही दिखाई देता है। भारत में ऐसे बहुत कम मंदिर हैं जो समुद्र के भीतर बने हों। इसलिए यह जगह भक्तों के लिए बेहद खास मानी जाती है। निष्कलंक मंदिर सामान्य दिनों में पूरी तरह पानी में डूबा रहता है और केवल इसके ऊपर लहराती ध्वज-पताका ही दिखाई देती है। इसी कारण इसे गुप्त तीर्थ भी कहा जाता है।
निष्कलंक महादेव मंदिर का रहस्य
मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता इसका समुद्र के बीच स्थित होना है, जहां पानी उतरने पर ही भक्तों को महादेव के दर्शन करने का अवसर मिलता है।
1. ज्वार-भाटे का चमत्कार: उच्च ज्वार (high tide) के समय, मंदिर पूरी तरह से समुद्र के पानी में डूब जाता है, और उस समय केवल मंदिर के शीर्ष पर लगी ध्वज-पताका ही पानी के ऊपर दिखाई देती है। यह प्राकृतिक घटना प्रतिदिन होती है, जिससे मंदिर की रहस्यमयता और दिव्यता और भी बढ़ जाती है।
2. पहुंचने का समय: भक्त केवल कम ज्वार के घंटों के दौरान ही समुद्र में लगभग 1 किलोमीटर पैदल चलकर मंदिर तक पहुंच सकते हैं। ज्वार का समय रोज़ाना चंद्रमा की गति के अनुसार बदलता रहता है, इसलिए दर्शन के लिए जाने से पहले स्थानीय ज्वार-भाटे का समय पता करना ज़रूरी होता है।
3. पांच स्वयंभू शिवलिंग: मंदिर के वर्गाकार चबूतरे पर पांच अलग-अलग स्वयंभू शिवलिंग हैं, प्रत्येक के सामने नंदी की एक मूर्ति है।
4. अखंड ज्योति और ध्वज: समुद्र की तेज़ लहरों के बावजूद, मंदिर की ध्वज-पताका कभी नहीं गिरती और मंदिर की आंतरिक संरचना को भी कोई नुकसान नहीं पहुँचता है, जिसे आधुनिक इंजीनियरों के लिए भी एक रहस्य माना जाता है।
पौराणिक कथा (महाभारत काल)
मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। महाभारत युद्ध में अपने चचेरे भाइयों और रिश्तेदारों को मारने के बाद पांडवों को बहुत ग्लानि हुई। पांडवों ने भगवान कृष्ण से अपने पापों से मुक्ति (निष्कलंक होने) का मार्ग पूछा। कृष्ण ने उन्हें एक काली गाय और एक काला झंडा दिया और कहा कि जहां गाय और झंडे का रंग सफेद हो जाए, वहां वे तपस्या करें। कई स्थानों पर भटकने के बाद, अंत में कोलियाक तट पर पहुंचने पर गाय और झंडे का रंग सफेद हो गया। तब पांडवों ने यहां भगवान शिव की घोर तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव पांच अलग-अलग शिवलिंगों के रूप में प्रकट हुए और उन्हें पापों से मुक्त कर दिया। तभी से इस स्थान का नाम "निष्कलंका महादेव" (निष्कलंक का अर्थ है बेदाग या शुद्ध) पड़ा। यह मंदिर भक्तों को पापों से मुक्ति दिलाने और मन की शांति प्रदान करने के लिए एक पवित्र तीर्थस्थल माना जाता है।




