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एक ऐसा मंदिर जिसकी ताजमहल से की जाती है तुलना! जानें कैसे मंदिर बनाने वाले मजदूर हो गए करोड़पति

माउंट आबू। दिलवाड़ा जैन मंदिर, माउंट आबू (राजस्थान) में स्थित, अपनी आश्चर्यजनक संगमरमर की नक्काशी और वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध हैं, जो 11वीं-13वीं सदी के बीच निर्मित हुए; ये पांच मंदिरों का समूह है, जहां बाहर से सामान्य दिखने वाले मंदिर के अंदर की छत, खंभों और दीवारों पर इतनी सूक्ष्म और सजीव नक्काशी है कि आधुनिक तकनीक भी उसकी बराबरी नहीं कर सकती,। जहां मजदूरों को 2 घंटे लंच मिलता था पर वे 1.5 घंटे काम करते थे और आज भी इसके निर्माण की विधि और मजदूरों की मजदूरी (सोना-चांदी) के रहस्य बरकरार हैं, जो इसे शिल्प और आस्था का अद्भुत संगम बनाते हैं। यह मंदिर अपनी असाधारण वास्तुकला और संगमरमर पर की गई बारीक नक्काशी के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। कई विशेषज्ञ इसे वास्तुकला की दृष्टि से ताजमहल से भी श्रेष्ठ मानते हैं। यह जैनियों का एक पवित्र तीर्थ स्थल है।
माउंट आबू में स्थित दिलवाड़ा जैन मंदिर अपनी अद्वितीय संगमरमर की वास्तुकला और जटिल नक्काशी के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध हैं। यहां 10 ऐसी बातें बताई गई हैं जो शायद आप नहीं जानते होंगे:
1. बाहरी सादगी, आंतरिक भव्यता: बाहर से देखने पर मंदिर काफी सामान्य लगते हैं, लेकिन अंदर कदम रखते ही सफेद संगमरमर पर की गई असाधारण, बारीक नक्काशी की भव्यता किसी को भी मंत्रमुग्ध कर देती है।
2. ताजमहल से तुलना: कुछ कला विशेषज्ञ दिलवाड़ा मंदिरों की स्थापत्य कला को ताजमहल से भी बेहतर मानते हैं, खासकर इसकी जटिल और सूक्ष्म नक्काशी के मामले में।
3. मजदूरी का अनोखा तरीका: किंवदंतियों के अनुसार, उन कारीगरों को उनके द्वारा तराशे गए संगमरमर के पाउडर के वजन के बराबर सोना देकर भुगतान किया जाता था।
4. पांच मंदिरों का समूह: यह वास्तव में पांच मंदिरों का एक परिसर है, जिनमें से प्रत्येक जैन धर्म के विभिन्न तीर्थंकरों को समर्पित है: विमल वसाही, लूना वसाही, पीतलहार, पार्श्वनाथ और महावीर स्वामी।
5. 1500 कारीगर और 14 साल: सबसे पुराने 'विमल वसाही' मंदिर के निर्माण में लगभग 1,500 कुशल कारीगरों और 1,200 मजदूरों ने 14 वर्षों तक काम किया था।
6. अद्वितीय गुंबद: 'रंग मंडप' (मुख्य हॉल) की गुंबददार छत एक झूमर जैसी संरचना है, जिसके चारों ओर ज्ञान की देवी 'विद्या देवी' की 16 मूर्तियां हैं।
7. नारी शक्ति का महत्व: कई नक्काशीदार पैनलों और स्तंभों में देवियों और नृत्यांगनाओं की आकृतियां प्रमुखता से दर्शाई गई हैं, जो मंदिर के निर्माण और दर्शन में नारी शक्ति के महत्व को उजागर करता है।
8. अम्बाजी से लाया गया संगमरमर: इन मंदिरों के निर्माण में उपयोग किया गया शुद्ध सफेद संगमरमर गुजरात में अम्बाजी के पास की खदानों से लाया गया था।
9. जटिल 'फिलीग्री' (जाली) का काम: नक्काशी इतनी महीन है कि इसे अक्सर 'फिलीग्री' या संगमरमर में की गई फीते जैसी जाली का काम कहा जाता है, जिसे आज की आधुनिक 3डी मशीनें भी दोहरा नहीं सकतीं।
10. शांति का प्रतीक: अपनी भव्यता के अलावा, ये मंदिर जैन धर्म के सिद्धांतों, जैसे अहिंसा और तपस्या को दर्शाते हुए, शांति और ध्यान के लिए एक शांत वातावरण प्रदान करते हैं।
⦁ दिलवाड़ा जैन मंदिर 1100 साल पहले बना जिसका निर्माण गुजरात के वडनगर के बेहद कुशल इंजीनियरों और कारीगरों ने किया था।
⦁ इस मंदिर के निर्माण में उस वक्त 18,53,00,000/- यानी कुल 18 करोड़ 53 लाख रुपए खर्च हुए।
⦁ इसके निर्माण में जो भी मजदूर लगे थे उन्हें मजदूरी के रूप में सोना और चांदी दिया गया था। फिर 14 साल के बाद हर मजदूर करोड़पति हो चुका था ।
⦁ दिलवाड़ा जैन मंदिर में मजदूरों को लंच के लिए दो घंटे का समय दिया जाता था। लेकिन मजदूरों ने सिर्फ आधे घंटे को ही लंच में इस्तेमाल किया बाकी समय यानी डेढ़ घंटा उन्होंने मंदिर के निर्माण में लगाया।




