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एक ऐसा मंदिर जहां भगवान भोलेनाथ बर्फ से प्राकृतिक शिवलिंग के रूप में हुए थे प्रकट? जानें कैसे कहलाए 'बाबा बर्फानी'

Anjali Tyagi
6 Dec 2025 8:00 AM IST
एक ऐसा मंदिर जहां भगवान भोलेनाथ बर्फ से प्राकृतिक शिवलिंग के रूप में हुए थे प्रकट? जानें कैसे कहलाए बाबा बर्फानी
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जम्मू कश्मीर। अमरनाथ धाम श्रद्धालुओं के लिए धार्मिक महत्व और पुण्य की यात्रा है। जिसने भी इस यात्रा के बारे में जाना या सुना है, वह कम से कम एक बार जाने की इच्छा जरूर रखता है। आषाढ़ पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षाबंधन तक पूरे सावन महीने में पवित्र हिमलिंग दर्शन के लिए श्रद्धालु यहां आते हैं। अमरनाथ यात्रा का नाम सुनते ही भोले बाबा शिव शंकर के बर्फ से बने विशाल शिवलिंग की छवि आंखों के सामने आ जाती है। इस पवित्र यात्रा के लिए हिन्दू ही नहीं सिख और अन्य धर्म के लोग भी आते हैं। हिन्दू धर्म में तो इस धार्मिक यात्रा का कुछ खास ही महत्त्व है।

अमरनाथ मंदिर का स्थान

श्री अमरनाथ गुफा मंदिर भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य के अनंतनाग जिले में स्थित है। यह विशाल हिमालय की गोद में समुद्र तल से लगभग 12,756 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदिर श्रीनगर से लगभग 140 किलोमीटर और पहलगाम से लगभग 46 किलोमीटर दूर है, जो बालटाल के साथ इस तीर्थयात्रा के आरंभिक बिंदुओं और प्रमुख मार्गों में से एक है।

पौराणिक कथा के अनुसार

देवी पार्वती ने शिव से अमरत्व का रहस्य पूछा, जिसे शिव किसी एकांत स्थान पर ही बताना चाहते थे। कैलाश पर्वत से निकलकर शिव और पार्वती ने हिमालय की इस गुफा में प्रवेश किया, जहां कोई और न हो। शिव ने अमरकथा सुनाने से पहले नंदी (पहलगाम), चंद्रमा (चंदनवाड़ी), नाग (शेषनाग), और पंचतत्व (पंजतरणी) को त्याग दिया, ताकि कोई अन्य सुन न सके। गुफा के अंदर शिव, पार्वती और उनके पुत्रों (गणेश, कार्तिकेय) के रूप में बर्फ के दो छोटे स्तंभ भी बने, जो बाद में बर्फ के शिवलिंग और उनके परिवार के प्रतीक बन गए। यहीं शिव ने अमरकथा सुनाई, जिससे यह स्थान अमरनाथ कहलाया और देवताओं ने इस बर्फानी लिंगम को प्रणाम किया, जिससे उन्हें अमरत्व मिला। इसे भक्त 'बाबा बर्फानी' कहते हैं और यह चंद्रमा के साथ बढ़ता-घटता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण

गुफा की छत से टपकने वाली पानी की बूंदें जम जाती हैं और गुफा के तल से ऊपर की ओर बढ़ते हुए स्टैलेग्माइट (stalaagmite) का रूप ले लेती हैं, जो प्राकृतिक रूप से शिवलिंग जैसा दिखता है। इस प्राकृतिक हिम शिवलिंग (स्वयंभू हिमानी शिवलिंग) की ऊंचाई चंद्रमा की कलाओं के साथ घटती-बढ़ती है और श्रावण पूर्णिमा पर यह अपने चरम पर होता है.

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