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Antim Sanskar: आखिर रात में क्यों नहीं किया जाता है अंतिम संस्कार? गरुड़ पुराण में छिपी है सच्चाई, जानें क्या

नई दिल्ली। गरुड़ पुराण में जन्म से मृत्यु तक सोलह संस्कारों के बारे में विस्तार से बताया गया है। इसमें सोलहवां और अंतिम संस्कार दाह संस्कार है, जिनको लेकर कई तरह के नियम बताए गए हैं। इस पुराण को महर्षि वेदव्यास ने लिखा है, इसमें भगवान विष्णु ने पक्षीराज गरुड़ का संवाद है। हिंदू धर्म में जब कभी भी किसी की मृत्यु होती है, तो उसका दाह संस्कार हमेशा सूर्यास्त से पहले ही किया जाता है। लेकिन सूर्यास्त के बाद दाह संस्कार करने की मनाही क्यों होती है?
बंद हो जाते हैं स्वर्ग के द्वार
गरुड़ पुराण के अनुसार, सूर्यास्त के बाद शव का अंतिम संस्कार नहीं करना चाहिए। इसमें कहा गया है कि ऐसा करने से व्यक्ति की आत्मा को शांति नहीं मिलती है। साथ ही मान्यता है यह है कि सूर्यास्त के बाद स्वर्ग के द्वार बंद हो जाते हैं। इसकी वजह से आत्मा अपने गंतव्य तक नहीं पहुंच पाती है।
सूर्यास्त के बाद नर्क के द्वार खुल जाते हैं। ऐसे में अगर मृतका का दाह संस्कार रात में किया जाए, तो आत्मा को नर्क के कष्ट भोगने पड़ते हैं। अगले जन्म में ऐसे व्यक्ति के किसी अंग में भी दोष हो सकता है। इसलिए जब भी किसी व्यक्ति की रात्रि में मृत्यु हो जाती है, तो उसका अंतिम संस्कार रात में नहीं किया जाता है।
रात के समय अंतिम संस्कार करने से क्या होगा?
ऐसी स्थिति में जब वह आत्मा अगली योनि में जाती है तो उसके किसी अंग पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। यही कारण है कि रात के समय या सूर्यास्त के बाद किसी भी शव का अंतिम संस्कार नहीं किया जाता। ऐसा करने से उसकी आत्मा को प्रताड़ना मिलती है।
मुखाग्रि देने का अधिकार स्त्री को क्यों नहीं?
गरुड़ पुराण के मुताबिक किसी स्त्री को मुखाग्नि देने का अधिकार नहीं होता है। किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसको मुखाग्नि उसका बेटा, भतीजा, पति या पिता ही दे सकता है। स्त्रियों को मुखाग्नि देने का अधिकार इसलिए नहीं है, क्योंकि स्त्री पराया धन होती है और वंशवृद्धि के जिम्मा पुत्र पर ही होता है, इसलिए स्त्री मुखाग्नि नहीं दे सकती है।