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बेरी वाली माता भीमेश्वरी देवी भक्तों की खाली झोली देती हैं भर! जानें इस मंदिर का रहस्य और पढ़ें दिलचस्प कथा

Aryan
13 Oct 2025 8:00 AM IST
बेरी वाली माता भीमेश्वरी देवी भक्तों की खाली झोली देती हैं भर! जानें इस मंदिर का रहस्य और पढ़ें दिलचस्प कथा
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आज भी ऋषि दुर्वासा वाली आरती से माता की पूजा की जाती है।

आज हम एक ऐसी देवी के बारे मे आपको बताने जा रहे हैं जिनका इतिहास महाभारत की एक छुपी हुई घटना से है। दरअसल छोटी काशी के नाम से प्रसिद्ध बेरी में स्थित मां भीमेश्वरी देवी मंदिर का निर्माण धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी ने करवाया था। बेरी वाली माता का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है, जब पांडवपुत्र भीम ने अपनी कुलदेवी को हिंगलाज पर्वत से कुरुक्षेत्र युद्ध के लिए लाया था। जब भीम ने लघुशंका के लिए देवी की मूर्ति नीचे रख दी, तो वह दोबारा उठा नहीं पाए और मूर्ति वहीं स्थापित हो गई। भीमेश्वरी मंदिर हरियाणा के झज्जर जिले के बेरी कस्बे में स्थित है।

पौराणिक कथा

मंदिर के निर्माण और देवी की स्थापना को लेकर दिलचस्प पौराणिक कथा है। ऐसा कहते है जिस वक्त कौरवों और पांडवों के बीच महाभारत का ऐतिहासिक युद्ध लड़ा जा रहा था, तो इसी बीच भीम विजयी होने के लिए कुलदेवी को लाने के लिए हिंगलाज पर्वत पर गए थे। देवी चलने के लिए तो राजी हो गईं, पर उन्होंने भीम के समक्ष एक शर्त रखी थी कि अगर भीम देवी को अपने कंधे पर बैठाकर रणभूमि तक ले जाएंगे तभी वे उनके साथ जाएंगी। इस बीच भीम ने देवी को कंधे से उतारा तो वे वहीं विराजमान हो जाएंगी। भीम को अपनी शक्ति पर गर्व था, उन्होंने देवी का यह प्रस्ताव मान लिया।

देवी को जहां रखा वहीं विराजमान हो गई

भीम देवी को अपने कंधे पर बैठाकर आगे बढ़ते जा रहे थे, लेकिन तभी उन्हें लघुशंका लगा। उन्होंने देवी को एक पेड़ के नीचे उतार दिया और लघुशंका के लिए चले गए। लेकिन, जैसे ही वापस आकर देवी को दोबारा से उठाने की कोशिश की, तभी देवी ने भीम को अपनी शर्त याद दिलाई और वे उसी जगह विराजमान हो गईं। लघुशंका के कारण भीम अपना दिया हुआ वचन भूल गए थे। उस घटना के बाद देवी हमेशा के लिए इसी स्थान पर विराजमान हो गईं। महाभारत युद्ध के बाद धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी ने यहां देवी के मंदिर की स्थापना की थी। यहां साल में दो बार मेले लगते हैं, जिसमें शामिल होने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।

मंदिर की खासियत मां की मूर्ति एक, मंदिर दो

सदियों से चली आ रही परंपरा के मुताबिक मां भीमेश्वरी देवी की प्रतिमा को बाहर वाले मंदिर में सुबह लाया जाता है। दोपहर के समय में मां की मूर्ति को पुजारी अपनी गोद में उठाकर शहर के अंदर वाले मंदिर में लेकर जाते हैं। मां रात भर अंदर वाले मंदिर में आराम करती हैं। मान्यता है कि मां का मंदिर पुराने समय में जंगलों में था। तब ऋषि दुर्वासा ने मां से विनती की थी कि वे उनके आश्रम में आकर भी रहे। तभी से दो मंदिरों की परंपरा चल रही है। आज भी ऋषि दुर्वासा वाली आरती से माता की पूजा की जाती है।


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