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माता का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी! तपस्वी जैसे गुणों के लिए की जाती है माता के इस रूप की पूजा, जानें क्या है कथा

नई दिल्ली। नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है, जो माता पार्वती का अविवाहित रूप माना जाता है। मां का यह स्वरूप तप से जुड़ा हुआ है और उनके इस स्वरूप की पूजा करने वाले में तपस्वी जैसे गुणों की ही वृद्धि होती है। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा के साथ-साथ उनकी व्रत कथा भी पढ़ना पूजा की सफलता के लिए जरूरी माना गया है। उनकी तपस्या की यह कहानी त्याग, तपस्या और अटूट आस्था का प्रतीक है।
मां ब्रह्मचारिणी की कथा
पूर्वजन्म में देवी सती ने अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ में अपने पति भगवान शिव का अपमान होने पर आत्मदाह कर लिया था। अगले जन्म में उन्होंने पर्वतराज हिमालय और मैना के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया। बचपन से ही, पार्वती के मन में भगवान शिव के प्रति गहरा प्रेम था और उन्होंने उन्हें अपने पति के रूप में पाने का संकल्प लिया था। जब वह विवाह योग्य हुईं, तो देवर्षि नारद ने उन्हें भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या करने का उपदेश दिया। इसके बाद, पार्वती ने घोर तपस्या करने का निश्चय किया।
कठोर तपस्या
- हजारों वर्षों तक उन्होंने केवल फल-फूल खाकर तपस्या की।
- फिर, सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक-सब्जियों का सेवन किया।
- उन्होंने कई दिनों तक बिना पानी और भोजन के उपवास रखा और खुले आसमान के नीचे धूप और बारिश में तपस्या की।
- कई हजार वर्षों तक उन्होंने सिर्फ टूटे हुए बिल्व पत्र खाकर भगवान शिव की आराधना की।
- जब उन्होंने यह भी छोड़ दिया, तो उनका नाम अपर्णा पड़ा।
तपस्या का फल
उनकी इस कठोर तपस्या से देवता, ऋषि और मुनि सभी हैरान थे। उनकी तपस्या से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। आखिर में, उनकी दृढ़ता और त्याग से प्रसन्न होकर, ऋषि-मुनियों ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि उनकी मनोकामना अवश्य पूरी होगी और भगवान शिव उन्हें पति के रूप में प्राप्त होंगे।
भगवान शिव ने भी पार्वती की निष्ठा देखकर उनकी परीक्षा ली। एक दिन वे एक वृद्ध साधु के वेश में उनके पास आए और शिव की निंदा करने लगे। पार्वती ने उनका विरोध किया और भगवान शिव के प्रति अपनी अटूट श्रद्धा दिखाई। इससे प्रसन्न होकर शिव अपने असली रूप में आए और उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया।
अपनी इसी कठोर तपस्या और ब्रह्मचर्य के आचरण के कारण, वह देवी ब्रह्मचारिणी के नाम से प्रसिद्ध हुईं। यह कथा भक्तों को यह संदेश देती है कि जीवन के संघर्षों में भी मन को विचलित नहीं करना चाहिए और सच्चे मन से की गई तपस्या का फल अवश्य मिलता है।
मां ब्रह्मचारिणी देवी का पूजा मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
दधाना कपाभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।