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Buddha Purnima 2025: बुद्ध पूर्णिमा कब? जानें सही तिथि, शुभ मुहूर्त और क्यों मनाई जाती है बुद्ध पूर्णिमा

Aryan
4 May 2025 11:00 AM IST
Buddha Purnima 2025: बुद्ध पूर्णिमा कब? जानें सही तिथि, शुभ मुहूर्त और क्यों मनाई जाती है बुद्ध पूर्णिमा
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बुद्ध पूर्णिमा को ज्ञान प्राप्ति का दिन भी माना जाता है।

नई दिल्ली। बुद्ध पूर्णिमा हिंदू और बौद्ध दोनों ही धर्मों के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान बुद्ध के रूप में भगवान विष्णु के नौवें अवतार का जन्म हुआ था। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह हर साल वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान बुद्ध का सिर्फ जन्म ही नहीं बल्कि इसी तिथि को वर्षों वन में भटकने व कठोर तपस्या करने के पश्चात बोधगया में बोधिवृक्ष नीचे बुद्ध को सत्य का ज्ञान हुआ।

कब है बुद्ध पूर्णिमा?

बुद्ध पूर्णिमा 2025 का पर्व 11 मई 2025 को रात 8 बजकर 1 मिनट से प्रारंभ होगा और 12 मई 2025 को रात 10 बजकर 25 मिनट तक समाप्त होगा। उदया तिथि के अनुसार, बुद्ध पूर्णिमा का पर्व 12 मई ,सोमवार को मनाया जाएगा। इस दिन भगवान गौतम बुद्ध की 2587वीं जयंती मनाई जाएगी, जो बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म दोनों के अनुयायियों के लिए अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण है।

बुद्ध पूर्णिमा का महत्व

बुद्ध पूर्णिमा केवल महात्मा बुद्ध के जन्म का दिन ही नहीं है बल्कि बुद्ध पूर्णिमा को ज्ञान प्राप्ति का दिन भी माना जाता है। बुद्ध पूर्णिमा का दिन ज्ञान के लिए भी बहुत महत्व रखता है। अपने पाप या बुरे कर्मों को छोड़कर एक नया जीवन शुरू करने की चाह रखने वाले लोग इस दिन संकल्प ले सकते हैं। वैशाख पूर्णिमा के दिन ही कुशीनगर में उनका गौतम बुद्ध का महापरिनिर्वाण भी हुआ। बुद्ध पूर्णिमा को एक त्योहार के तरह ही मनाया जाता है। महात्मा बुद्ध को ना सिर्फ अपने सच्चे विचारों के लिए जाता है, बल्कि कठोर तपस्वी के लिए जाना जाता है।

शुभ योग और मुहूर्त

बुद्ध पूर्णिमा के दिन वरियान और रवि योग का संयोग बन रहा है। वहीं इस दिन रवि योग सुबह 5 बजकर 32 मिनट से लेकर 06 बजकर 17 मिनट तक है। इसके अलावा भद्रावास का भी संयोग है जो सुबह 09 बजकर 14 मिनट तक है।

मान्यता है कि इस योग में पवित्र नदियों में स्नान कर भगवान विष्णु और भगवान बुद्ध की पूजा करने से अमोघ फल की प्राप्ति होती है।

कौन थे महात्मा बुद्ध

पौराणिक कहानी के अनुसार भगवान बुद्ध का नाम पहले सिद्धार्थ था। सिद्धार्थ राजकुमार थे। गृहस्थ और संपूर्ण वैभव होने के बाद भी सिद्धार्थ को जीवन बहुत ही उद्देश्यहीन लगता था। सिद्धार्थ ने सत्य की खोज में सात वर्ष बिताए। अंत में वैशाख पूर्णिमा के दिन बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन को राजकुमार सिद्धार्थ को बुद्ध के रूप में ज्ञान की प्राप्ति हुई, इसलिए इस वैशाख पूर्णिमा को उनके नए जन्म की तरह माना जाता है। तभी से यह दिन बुद्ध पूर्णिमा कहलाता है। बुद्ध पूर्णिमा पर भगवान बुद्ध ने खीर खाकर व्रत तोड़ा था इसलिए इस दिन खीर बनती है और बुद्ध को प्रसाद चढ़ाया जाता है।

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