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आज से छठ महापर्व का आगाज! जानें खरना, संघ्या अर्घ्य की तारीख, मुहूर्त और पूजा के चार दिनों के नियम

पटना। छठ पूजा एक कठिन और पवित्र पर्व है, जिसके नियम और परंपराएं बेहद महत्वपूर्ण होते हैं। यह चार दिनों तक चलने वाला अनुष्ठान है, जिसमें व्रती (व्रत रखने वाले) कठोरता से नियमों का पालन करते हैं। इसे विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल में मनाया जाता है। छठ पूजा को प्रतिहार, डाला छठ, छठी और सूर्य षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। छठ पूजा का व्रत महिलाएं अपने परिवार और पुत्र की दीर्घायु के लिए करती हैं। इस बार छठ के पर्व की शुरुआत 25 अक्टूबर, शनिवार से होने जा रही है और इसका समापन 28 अक्टूबर, मंगलवार को होगा।
छठ पर्व 2025 कैलेंडर
पहला दिन- नहाय खाय, जो कि 25 अक्टूबर 2025 को है.
दूसरा दिन- खरना, जो कि 26 अक्टूबर को है.
तीसरा दिन- संध्या अर्घ्य, जो कि 27 अक्टूबर को किया जाएगा.
चौथा दिन- ऊषा अर्घ्य, जो कि 28 अक्टूबर को किया जाएगा.
छठ पूजा के चार दिन और उनके नियम
पहला दिन: नहाय-खाय
पवित्रता: इस दिन व्रती नदी या तालाब में स्नान करके खुद को शुद्ध करते हैं। अगर यह संभव न हो, तो पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान किया जा सकता है।
भोजन: स्नान के बाद, केवल शुद्ध और सात्विक भोजन ग्रहण किया जाता है, जिसमें कद्दू-भात, चने की दाल और सेंधा नमक का उपयोग किया जाता है।
सात्विक आहार: इस दिन से पूरे चार दिनों तक लहसुन, प्याज और मांसाहारी भोजन वर्जित होता है।
घर की सफाई: घर को अच्छी तरह से साफ किया जाता है, ताकि पूजा के लिए शुद्धता बनी रहे।
दूसरा दिन: खरना
निर्जला व्रत: व्रती पूरे दिन निर्जला (बिना पानी) व्रत रखते हैं।
प्रसाद: शाम को, मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी की आग से गुड़ और चावल की खीर बनाई जाती है।
प्रसाद ग्रहण: सूर्यास्त के बाद व्रती छठी मैया का भोग लगाकर प्रसाद ग्रहण करते हैं। इसके बाद 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है।
शोर-शराबे से परहेज: प्रसाद खाते समय शोर-शराबा नहीं होना चाहिए और कुछ प्रसाद घर के अन्य सदस्यों के लिए छोड़ देना चाहिए।
तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य
घाट पर जाना: शाम को, व्रती और परिवार के लोग छठ घाट पर इकट्ठा होते हैं।
सूप और टोकरी: बांस के सूप और टोकरी में फल, गन्ना, ठेकुआ और अन्य पूजा सामग्री सजाई जाती है।
सूर्य को अर्घ्य: डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और छठी मैया की पूजा की जाती है।
जमीन पर सोना: व्रत रखने वाली महिला को बिस्तर की बजाय जमीन पर कंबल बिछाकर सोना चाहिए।
चौथा दिन: उषा अर्घ्य और पारण
घाट पर पहुंचना: सुबह व्रती सूर्योदय से पहले घाट पर पहुंचते हैं।
सूर्य को अर्घ्य: उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।
पारण: अर्घ्य के बाद व्रती प्रसाद खाकर 36 घंटे के कठोर निर्जला व्रत का पारण करते हैं।
अन्य महत्वपूर्ण नियम
स्वच्छता: पूरे पर्व के दौरान पवित्रता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। व्रती को साफ और नए वस्त्र ही पहनने चाहिए।
तामसिक भोजन: जिस घर में छठ का व्रत होता है, वहां किसी भी तामसिक वस्तु (लहसुन, प्याज, मांस, मदिरा) का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए।
मासिक धर्म: मासिक धर्म के दौरान व्रती को पूजा सामग्री या प्रसाद को छूने से बचना चाहिए। हालांकि, व्रत रखा जा सकता है, पर पूजा किसी और से करवानी चाहिए।
दंडवत प्रणाम: कुछ भक्त दंडवत करते हुए घाट तक जाते हैं, जो कठिन नियमों में से एक है।
नए सूप: हर साल पूजा के लिए नई टोकरी और सूप खरीदने चाहिए। पीतल के सूप को शुद्ध करके दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है।
व्रती का सम्मान: परिवार के सदस्यों को यह ध्यान रखना चाहिए कि व्रती के भोजन करने के बाद ही वे भोजन करें।




