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इन आम दवाओं से हो सकता है मस्तिष्क को नुकसान, बढ़ता है डिमेंशिया और याददाश्त कमजोर होने का खतरा

DeskNoida
14 July 2025 3:00 AM IST
इन आम दवाओं से हो सकता है मस्तिष्क को नुकसान, बढ़ता है डिमेंशिया और याददाश्त कमजोर होने का खतरा
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भले ही आप दिमाग को स्वस्थ रखने वाले भोजन और जीवनशैली पर ध्यान दे रहे हों, लेकिन आपकी दवा की अलमारी में रखी कुछ आम दवाएं चुपचाप आपकी संज्ञानात्मक क्षमता को कमजोर कर रही हो सकती हैं।

भले ही आप दिमाग को स्वस्थ रखने वाले भोजन और जीवनशैली पर ध्यान दे रहे हों, लेकिन आपकी दवा की अलमारी में रखी कुछ आम दवाएं चुपचाप आपकी संज्ञानात्मक क्षमता को कमजोर कर रही हो सकती हैं। वैज्ञानिक शोधों ने दो प्रकार की दवाओं को मस्तिष्क के लिए खतरनाक बताया है, जो दीर्घकालिक रूप से याददाश्त और सोचनेसमझने की शक्ति को नुकसान पहुँचा सकती हैं।

ये दवाएं इतनी सामान्य हैं कि अमेरिका में लाखों लोग इन्हें रोज़ाना ले रहे हैं — बिना इसके संभावित प्रभावों को जाने। चिंता की बात यह है कि जो दवा आज आपकी नींद या चिंता को नियंत्रित कर रही है, वही भविष्य में मानसिक स्पष्टता को कमजोर कर सकती है।

पहला खतरा: एंटीकोलीनर्जिक दवाएं

एंटीकोलीनर्जिक दवाएं मस्तिष्क स्वास्थ्य के लिए पहला बड़ा खतरा मानी जा रही हैं। ये दवाएं ‘एसिटाइलकोलीन’ नामक रासायनिक संदेशवाहक (neurotransmitter) को ब्लॉक कर देती हैं, जो सीखने और याद रखने की प्रक्रियाओं में अहम भूमिका निभाता है। इसके रुकने से स्मृति और मानसिक कार्यप्रणाली पर प्रभाव पड़ता है।

इन दवाओं में कई प्रकार की एंटीएलर्जी दवाएं, अवसाद रोधी दवाएं, मूत्र नियंत्रण की दवाएं और कुछ सर्दीजुकाम की दवाएं शामिल हैं। ये दवाएं न केवल डॉक्टर की पर्ची पर मिलती हैं, बल्कि ओवरदकाउंटर यानी बिना नुस्खे के भी आसानी से उपलब्ध हैं।

एक अध्ययन में 65 वर्ष से अधिक उम्र के लगभग 3,500 लोगों पर निगरानी की गई। जो लोग तीन साल या उससे अधिक समय तक एंटीकोलीनर्जिक दवाएं लेते रहे, उनमें डिमेंशिया का जोखिम 54% अधिक पाया गया, बनिस्बत उन लोगों के जिन्होंने तीन महीने या उससे कम समय तक इनका उपयोग किया।

चौंकाने वाली बात यह रही कि यह खतरा सिर्फ पर्ची वाली दवाओं से नहीं, बल्कि ओटीसी (Over the Counter) दवाओं से भी उतना ही था — चाहे वो ब्लैडर की दवा हो या साधारण एंटीहिस्टामीन।

दूसरा खतरा: बेंज़ोडायजेपाइन दवाएं

बेंज़ोडायजेपाइन श्रेणी की दवाएं मस्तिष्क को धीमा करने वाले जीएबीए (GABA) नामक रसायन की क्रिया को तेज करती हैं। इससे नींद और तनाव कम करने में मदद मिलती है, लेकिन लम्बे समय तक इनका सेवन मस्तिष्क की सामान्य कार्यप्रणाली को बिगाड़ सकता है।

यह दवाएं आमतौर पर चिंता, घबराहट, और नींद की समस्याओं के इलाज के लिए दी जाती हैं। हालांकि इनका उपयोग अल्पकालिक होना चाहिए, लेकिन कई मामलों में मरीज इन्हें लम्बे समय तक लेते रहते हैं।

66 वर्ष से अधिक आयु के हज़ारों लोगों पर किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि जो लोग 3 से 6 महीने तक बेंज़ोडायजेपाइन लेते रहे, उनमें मेमोरी समस्याओं का जोखिम 32% अधिक था, जबकि 6 महीने से अधिक उपयोग करने वालों में यह खतरा 84% तक बढ़ गया।

इस अध्ययन में यह भी पाया गया कि लंबी अवधि तक असर करने वाली बेंज़ोडायजेपाइन दवाएं छोटे अवधि की दवाओं की तुलना में अधिक खतरनाक हैं।

बुजुर्गों में अधिक खतरा क्यों होता है?

उम्र के साथ शरीर में दवाओं के चयापचय (metabolism) की गति धीमी हो जाती है। लिवर और किडनी की कार्यक्षमता घटती है जिससे दवाएं शरीर में अधिक समय तक बनी रहती हैं और इनकी मात्रा अधिक हो जाती है।

इसके अलावा, शरीर में वसा बढ़ने और मांसपेशियां घटने से दवाओं का वितरण भी प्रभावित होता है। चूंकि इन दोनों श्रेणियों की दवाएं वसा ऊतकों में जमा होती हैं, इसलिए इनका असर कई दिन तक बना रह सकता है।

अधिक उम्र के लोग अक्सर एक साथ कई बीमारियों के लिए अलगअलग दवाएं लेते हैं, जिससे दवाओं के बीच आपसी प्रभाव और भी खतरनाक हो सकता है।

कैसे प्रभावित करते हैं ये दिमाग को?

एंटीकोलीनर्जिक दवाएं मस्तिष्क में ‘एसिटाइलकोलीन’ की क्रिया को रोक देती हैं, जिससे नई यादें बनना और पुरानी यादों तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है। इससे उलझन, भ्रम और धीरेधीरे स्मृति हानि हो सकती है।

बेंज़ोडायजेपाइन दवाएं मस्तिष्क की गतिविधियों को शांत करने वाले रसायन GABA को अत्यधिक सक्रिय कर देती हैं, जिससे मस्तिष्क की संरचना और कार्यप्रणाली पर नकारात्मक असर पड़ता है।

मस्तिष्क को सुरक्षित रखने के उपाय

अगर आप इन दवाओं का सेवन कर रहे हैं तो इन्हें अचानक बंद न करें। बिना डॉक्टर की सलाह के दवा रोकना खतरनाक हो सकता है।

इसके बजाय, डॉक्टर से बात कर सुरक्षित विकल्प खोजें। कई बार ऐसे रोगों के इलाज के लिए अन्य वैकल्पिक उपाय मौजूद होते हैं जो मस्तिष्क को नुकसान नहीं पहुँचाते।

नींद की समस्याओं के लिए: व्यवहारिक थेरेपी (CBT) और नींद स्वच्छता जैसे उपाय अधिक कारगर हो सकते हैं।

चिंता और घबराहट: लाइफस्टाइल सुधार, काउंसलिंग और अन्य सुरक्षित दवाएं बेहतर विकल्प हो सकती हैं।

दवाओं पर निर्भरता को धीरेधीरे कम करते हुए सुरक्षित और असरदार विकल्प अपनाने से मस्तिष्क की कार्यक्षमता को लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

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