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पदयात्रा के बीच धीरेंद्र शास्त्री का ऐलान! बोले - 'हम तब रुकेंगे जब भारत हिंदू राष्ट्र होगा'

Anjali Tyagi
8 Nov 2025 12:14 PM IST
पदयात्रा के बीच धीरेंद्र शास्त्री का ऐलान! बोले - हम तब रुकेंगे जब भारत हिंदू राष्ट्र होगा
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दिल्ली में निकली इस पदयात्रा में दूसरे दिन 8 नवंबर को हजारों की संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए।

नई दिल्ली। बागेश्वर धाम सरकार आचार्य धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री इन दिनों सनातन हिंदू एकता पदयात्रा के लिए निकलें है। पदयात्रा के दूसरे दिन धीरेंद्र शास्त्री ने दिल्ली में बड़ा बयान दे दिया। उन्होंने कहा कि जब तक भारत हिंदू राष्ट्र नहीं बनेगा, तब तक वे पदयात्राएं जारी रखेंगे। उन्होंने कहा, "हम रुकेंगे तब जब भारत हिंदू राष्ट्र होगा।"

पदयात्रा में उमड़े भारी संख्या में भीड़

जानकारी के मुताबिक दिल्ली में निकली इस पदयात्रा में दूसरे दिन 8 नवंबर को हजारों की संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए। लोगों ने हाथों में भगवा ध्वज लिए लोगों ने ‘जय श्रीराम’ और ‘हर हर महादेव’ के नारे लगाए। आयोजन के दौरान मीडिया से बातचीत में धीरेंद्र शास्त्री ने कहा कि हिंदुओं में एकता और गर्व की भावना जागृत करना इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य है।

पदयात्रा का उद्देश्य हिंदू समाज को एकजुट करना...

शास्त्री ने कहा कि इस पदयात्रा का उद्देश्य किसी राजनीतिक दल का समर्थन या विरोध नहीं है, बल्कि यह हिंदू समाज को एकजुट करने की मुहिम है। उन्होंने कहा, “हम चाहते हैं कि हिंदू जातिगत भेदभाव से ऊपर उठकर एक हों यह यात्रा सामाजिक समरसता का प्रतीक है।” पदयात्रा में शामिल लोगों को संबोधित करते हुए शास्त्री ने भावनात्मक लहजे में कहा, “यह सब बागेश्वर धाम के पागल हैं। हम कोई नेता नहीं और ये जनता नहीं, बल्कि हमारे परिवार के सदस्य हैं।”

हिंदू राष्ट्र को लेकर क्या बोले धीरेंद्र शास्त्री

धीरेंद्र शास्त्री ने पदयात्रा के दौरान कहा कि यह केवल एक शुरुआत है। उनका कहना है कि यह यात्रा लगातार जारी रहेगी जब तक भारत हिंदू राष्ट्र नहीं बनता। उन्होंने कहा, "हमारा उद्देश्य स्पष्ट है हिंदू समाज में एकता स्थापित करना और सनातन संस्कृति की रक्षा करना।"

उन्होंने यह भी जोड़ा कि देश में विभाजन और जातिगत दीवारें अभी भी मौजूद हैं। ऐसे में हिंदू समाज के लिए एकजुट रहना और अपने मूल्यों की रक्षा करना आवश्यक है। शास्त्री ने श्रद्धालुओं से आग्रह किया कि वे इस पदयात्रा को आंदोलन के रूप में न देखें, बल्कि इसे सांस्कृतिक जागरण और सामाजिक एकता का प्रतीक मानें।

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