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क्या मुनीर-शरीफ ने बेच दिया बलूचिस्तान? अमेरिका से 1.25 अरब डॉलर की डील पर उठे सवाल

पाकिस्तान एक बार फिर वैश्विक राजनीति के केंद्र में है। इस बार मामला देश के संवेदनशील और अशांत प्रांत बलूचिस्तान से जुड़ा है, जहां रेको डिक खनिज परियोजना को लेकर एक बड़ा भू-राजनीतिक खेल सामने आया है। अमेरिकी निर्यात-आयात बैंक (EXIM) ने पाकिस्तान को रेको डिक परियोजना के विकास के लिए 1.25 अरब डॉलर की भारी-भरकम फाइनेंसिंग मंजूर की है, जिसके बाद यह सवाल तेजी से उठ रहे हैं कि क्या प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और पाक सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर ने बलूचिस्तान को अमेरिकी हितों के बदले गिरवी रख दिया है?
इस्लामाबाद में अमेरिकी दूतावास की कार्यवाहक प्रभारी नताली ए. बेकर ने एक्स पर एक वीडियो साझा करते हुए इस डील की जानकारी दी। उन्होंने इसे दोनों देशों के लिए विन-विन स्थिति करार दिया और दावा किया कि प्रोजेक्ट की मदद से अमेरिका के भीतर लगभग 6,000 नौकरियां और पाकिस्तान के बलूचिस्तान में 7,500 नौकरियां पैदा होंगी। बेकर ने यह भी कहा कि आने वाले वर्षों में EXIM बैंक इस परियोजना के लिए 2 अरब डॉलर तक की अतिरिक्त फंडिंग कर सकता है।
ट्रंप की नजर बलूचिस्तान की खनिज संपदा पर
विशेषज्ञों का मानना है कि पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की निगाह बलूचिस्तान की धरती के नीचे छिपे विशाल खनिज संसाधनों पर है। रेको डिक को दुनिया के सबसे बड़े सोना और तांबे के अंडरडेवलप्ड भंडारों में गिना जाता है। माना जा रहा है कि इस प्रोजेक्ट के शुरू होने के बाद पाकिस्तान पहले ही वर्ष में 2.8 अरब डॉलर का निर्यात करने की क्षमता हासिल कर सकता है। यही वजह है कि अमेरिका ने इतनी बड़ी रकम का निवेश करने में दिलचस्पी दिखाई है।
ट्रंप प्रशासन के दूसरे कार्यकाल में पाकिस्तान-अमेरिका संबंधों में काफी सुधार देखने को मिला है। ट्रंप ने इस परियोजना को अपनी एशिया नीति का अहम हिस्सा बना दिया है, जबकि भारत के साथ अमेरिका के संबंध दशकों के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए हैं। यह बदलाव संकेत देता है कि अमेरिका अब एशिया में शक्ति समीकरण बदलने के लिए पाकिस्तान का इस्तेमाल करना चाहता है।
स्थानीय राजनीति में भूचाल
रेको डिक परियोजना पाकिस्तान की सबसे बड़ी खनिज योजनाओं में से एक है। इस साल जून में विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय वित्त निगम (IFC) ने भी करीब 6000 करोड़ रुपये के ऋण को मंजूरी दी थी। परियोजना के पहले चरण का उत्पादन 2028 तक शुरू होने की उम्मीद है, जिसमें सालाना 45 मिलियन टन उत्पादन लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
लेकिन सबसे बड़ा विवाद इस फंडिंग के राजनीतिक मायनों को लेकर है। पाकिस्तान में कई विश्लेषक और राजनीतिक दल इसे बलूचिस्तान की संप्रभुता पर हमला बता रहे हैं। आरोप है कि अव्यवस्था और विद्रोह से जूझ रहे इस प्रांत को मुनीर-शरीफ सरकार ने अमेरिकी हस्तक्षेप के बदले बेच दिया है। विरोधियों का कहना है कि रेको डिक बहाना है, असली मकसद अमेरिका को क्षेत्रीय पकड़ मजबूत करने का मौका देना है – और यह आने वाले समय में पाकिस्तान के लिए गंभीर खतरा बन सकता है।




