Begin typing your search above and press return to search.
मुख्य समाचार

उत्तराखंड में तबाही: सामान्य से 25 गुना बारिश, 2100 आपदाएं और 260 मौतें

DeskNoida
18 Sept 2025 11:00 PM IST
उत्तराखंड में तबाही: सामान्य से 25 गुना बारिश, 2100 आपदाएं और 260 मौतें
x
भारतीय मौसम विभाग (IMD) के अनुसार, पिछले 24 घंटों में राज्य के 13 में से 8 जिलों में सामान्य से कई गुना अधिक बारिश दर्ज की गई।

उत्तराखंड इस साल भीषण प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रहा है। राज्य में सामान्य से कई गुना ज्यादा बारिश होने के कारण भूस्खलन, बाढ़ और नदियों का उफान हजारों लोगों पर कहर बनकर टूटा है।

रिकॉर्डतोड़ बारिश

भारतीय मौसम विभाग (IMD) के अनुसार, पिछले 24 घंटों में राज्य के 13 में से 8 जिलों में सामान्य से कई गुना अधिक बारिश दर्ज की गई। रुद्रप्रयाग में बारिश का स्तर 2,462% यानी सामान्य से 25 गुना ज्यादा रहा। बागेश्वर में 12.6 गुना, हरिद्वार में 10.8 गुना और देहरादून में 7 गुना अधिक बारिश हुई।

इसके विपरीत, दक्षिणी जिले जैसे उधम सिंह नगर (-93%), पौड़ी गढ़वाल (-80%) और चंपावत (-76%) में सामान्य से कम बारिश हुई।

नदियां खतरे के निशान पर

भारी बारिश से कई नदियां अपने सुरक्षित स्तर से ऊपर बह रही हैं। टिहरी गढ़वाल की अगलार नदी खतरे के निशान से ऊपर है। वहीं उत्तरकाशी में यमुना, देहरादून में सोंग नदी और हरिद्वार की सोलानी व बंगंगा नदियां चेतावनी स्तर पार कर चुकी हैं।

प्रशासन ने नदी किनारे रहने वाले लोगों को सतर्क रहने और सुरक्षित स्थानों पर जाने की सलाह दी है।

आपदाओं का बढ़ता ग्राफ

उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (USDMA) के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले 8 वर्षों में 26,700 से ज्यादा आपदाएं दर्ज की गई हैं। 2018 में सबसे ज्यादा यानी 5,000 से अधिक घटनाएं हुईं, जबकि 2023 में 4,990 घटनाएं दर्ज की गईं।

केवल 2025 में 17 सितंबर तक 2,100 आपदाएं सामने आ चुकी हैं। इनमें से अगस्त माह में सबसे ज्यादा 948 घटनाएं हुईं।

मानवीय कीमत

पिछले 8 वर्षों में इन आपदाओं में 3,600 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। 2018 सबसे भयावह साल रहा, जब 720 लोगों की मौत और 1,207 लोग घायल हुए।

साल 2025 में अब तक 260 से ज्यादा मौतें दर्ज की गई हैं। इनमें नैनीताल (47 मौतें) और टिहरी गढ़वाल (47 मौतें) सबसे प्रभावित जिले रहे, जबकि पिथौरागढ़ में 40 लोगों की जान गई।

लगातार हो रही भारी बारिश और आपदाओं ने राज्य के जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि यह प्रवृत्ति जारी रही तो उत्तराखंड को और भी गंभीर प्राकृतिक संकटों का सामना करना पड़ सकता है।

Next Story