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Dwarka: द्वारका के इस मंदिर में चावल दान करने से कई जन्मों तक नहीं होते गरीब, जानें कैसे पड़ा मंदिर का अनोखा नाम

Anjali Tyagi
14 Aug 2025 8:00 AM IST
Dwarka: द्वारका के इस मंदिर में चावल दान करने से कई जन्मों तक नहीं होते गरीब, जानें कैसे पड़ा मंदिर का अनोखा नाम
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नई दिल्ली। बेट द्वारका मंदिर, जिसे बेट द्वारकाधीश मंदिर भी कहा जाता है, गुजरात के द्वारका जिले में स्थित एक महत्वपूर्ण हिंदू मंदिर है। यह भगवान कृष्ण के निवास स्थान के रूप में माना जाता है और इसे भेंट द्वारका के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि माना जाता है कि यहीं पर भगवान कृष्ण अपने मित्र सुदामा से मिले थे।

श्री कृष्ण और सुदामा की हुई थी भेंट, ऐसे पड़ा नाम

'भेट' का अर्थ मुलाकात और उपहार दोनों होता है। मान्यता है कि इसी स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण और उनके प्रिय मित्र सुदामा का पुनर्मिलन हुआ था, इसलिए इसे भेंट द्वारका कहा गया गुजराती भाषा में इसे बेट द्वारका कहते हैं। यह स्थान गोमती द्वारका से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां स्थित मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की प्रतिमाओं की पूजा होती है। मान्यता है कि द्वारका यात्रा तभी पूर्ण होती है जब भक्त भेंट द्वारका के दर्शन करता है।

इसका इतिहास इस प्रकार है

1. पौराणिक मान्यताएं

- माना जाता है कि यह भगवान कृष्ण का मूल निवास स्थान था, जहां वे अपने परिवार के साथ रहते थे।

- यह वही स्थान है जहां भगवान कृष्ण की मुलाकात उनके बचपन के मित्र सुदामा से हुई थी। सुदामा ने उन्हें भेंट स्वरूप कुछ चावल दिए थे, जिसके कारण इस जगह का नाम 'भेंट' द्वारका पड़ा।

- महाभारत में इस स्थान को 'अंतर्द्वीप' के नाम से जाना जाता था, जहां यादव कुल के लोग नाव से यात्रा करते थे।

2. ऐतिहासिक और पुरातात्विक साक्ष्य

- समुद्र के नीचे किए गए पुरातात्विक उत्खनन में हड़प्पा सभ्यता और मौर्य काल के अवशेष मिले हैं।

- 1982 में, लगभग 1500 ईसा पूर्व की एक 580 मीटर लंबी सुरक्षा दीवार मिली थी, जिसके बारे में माना जाता है कि यह समुद्री तूफान में क्षतिग्रस्त और जलमग्न हो गई थी।

- उत्खनन में मिली कलाकृतियों में एक हड़प्पाकालीन मुहर, एक उत्कीर्ण जार और एक तांबे का मछली पकड़ने का कांटा शामिल है।

3. आधुनिक इतिहास

- बाद के वर्षों में, यह क्षेत्र बड़ौदा राज्य के गायकवाड़ शासन के अधीन था।

- 1857 के विद्रोह के दौरान, वाघेरों ने इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था, लेकिन दो साल बाद उन्हें वापस लौटना पड़ा।

- स्वतंत्रता के बाद, बेट द्वारका सौराष्ट्र राज्य का हिस्सा बना, जो बाद में गुजरात राज्य में शामिल हो गया।

भेंट द्वारका में है चावल दान की परंपरा

मान्‍यता है कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्‍ण का महल यहीं पर हुआ करता था। द्वारका के न्‍यायाधीश भगवान कृष्‍ण ही थे। माना जाता है कि आज भी द्वारका नगरी इन्‍हीं की कस्‍टडी में है। इसलिए भगवान कृष्‍ण को यहां भक्‍तजन द्वारकाधीश के नाम से पुकारते हैं। मान्‍यता है कि सुदामा जी जब अपने मित्र से भेंट करने यहां आए थे तो एक छोटी सी पोटली में चावल भी लाए थे। इन्‍हीं चावलों को खाकर भगवान कृष्‍ण ने अपने मित्र की दरिद्रता दूर कर दी थी। इसलिए यहां आज भी चावल दान करने की परंपरा है। ऐसी मान्‍यता है कि मंदिर में चावल दान देने से भक्‍त कई जन्मों तक गरीब नहीं होते।

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