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Dwarkadhish Temple: मुस्लिम युवक ने लिए थे इतने पैसे, जानें भगवान द्वारकाधीश मंदिर के लिए कैसे खरीदी गई थी जमीन

मथुरा। मथुरा का द्वारकाधीश मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित एक प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर 1814 में सेठ गोकुल दास पारिख द्वारा बनवाया गया था। द्वारकाधीश मंदिर मथुरा के मध्य में यमुना नदी के किनारे स्थित एक प्रसिद्ध मंदिर है। इस ऐतिहासिक मंदिर में भगवान कृष्ण की द्वारकानाथ रूप में देवी राधा के साथ पूजा की जाती है। यह मथुरा के सबसे पुराने और सबसे बड़े मंदिरों में से एक है, जो विश्राम घाट और कंस किले के पास स्थित है। कई लोग मंदिर में दर्शन करने से पहले यमुना नदी के पवित्र जल में डुबकी लगाकर अपनी शुद्धि करते हैं।
नाम का अर्थ
द्वारकाधीश का अर्थ है "द्वारका के राजा", जो भगवान कृष्ण का ही एक नाम है।
विशेषताएं
- राजस्थानी वास्तुकला और विस्तृत नक्काशी।
- भगवान कृष्ण और राधा की मूर्तियाँ।
- त्योहारों, खासकर होली और जन्माष्टमी के दौरान विशेष रौनक।
ऐसे खरीदी गई थी मंदिर की जमीन
जहां आज 'जनाना दरवाजा' है, उस तरफ की जमीन 'शर्युद्धीन' नाम के एक मुस्लिम शख्स के पास थी। बातचीत और समझौते के बाद जमीन का सौदा चांदी के सिक्कों में हुआ था। इतना ही नहीं, जमीन की पूरी सतह को चांदी से ढक दिया गया था ताकि सौदा पक्का हो जाए।
मथुरा के चौबे जी ने फ्री में दी जमीन
मंदिर के लिए और भी जमीन की जरूरत थी, जो मथुरा के एक चौबे जी के पास थी। वह जमीन वहां मंदिर की रोकड़ का कोठा बनने वाली जगह थी। चौबे जी शुरू में जमीन बेचने को तैयार नहीं थे। बाद में उन्होंने पारिख जी से कहा कि अगर वे खुद आकर भिक्षा मांगें तो वह जमीन बिना किसी कीमत के दे देंगे। पारिख जी ने विश्राम घाट जाकर भिक्षा मांगी और चौबे जी ने खुशी-खुशी जमीन भेंट कर दी। भूमि मिलने के बाद कई सालों की मेहनत के बाद संवत 1871 में मंदिर का निर्माण पूरा हुआ।
महत्व
- भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल।
- भगवान कृष्ण की पूजा और आराधना का स्थान।
- धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व।