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वकीलों के नकली नेकबैंड पर सुप्रीम कोर्ट जजों और नेताओं के फर्जी रिव्यू, सोशल मीडिया पर हुआ खुलासा

दिल्ली में ऑनलाइन मार्केट से जुड़ा एक अजीबोगरीब मामला सामने आया है, जिसमें एक ई-कॉमर्स वेबसाइट पर वकीलों के लिए नकली "प्रीमियम कॉटन नेकबैंड" बेचा जा रहा था। इसकी कीमत 499 रुपये रखी गई थी, लेकिन सबसे हैरान करने वाली बात यह थी कि इस प्रोडक्ट के रिव्यू में देश के सुप्रीम कोर्ट के जजों और यहां तक कि मुख्य न्यायाधीश (CJI) तक के नाम शामिल किए गए थे।
पुणे के वकील अंकुर जहांगीरदार ने इस धोखाधड़ी का खुलासा किया। उन्होंने अपने लिंक्डइन पोस्ट में लिखा कि वेबसाइट पर इस नेकबैंड के रिव्यू में ऐसे नाम शामिल हैं जो न्यायपालिका के शीर्ष पदों पर रह चुके हैं। रिव्यू में जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस रोहिन्टन नरीमन जैसे जजों के नाम दिख रहे थे।
अंकुर ने बताया कि 30 अक्टूबर को जब उन्होंने वेबसाइट देखी, तो रिव्यू में पूर्व सीजेआई यूयू ललित, एनवी रमन्ना, और वर्तमान सीजेआई बीआर गवई तक के नाम दर्ज थे। यही नहीं, जस्टिस दीपक गुप्ता, जस्टिस ऋषिकेश रॉय, और जस्टिस आरएफ नरीमन जैसे कई पूर्व न्यायाधीशों के नाम भी फर्जी रिव्यू में इस्तेमाल किए गए थे।
मामला सिर्फ न्यायपालिका तक ही सीमित नहीं रहा। रिव्यू में देश के कई राजनीतिक नेताओं के नाम भी झूठे तौर पर जोड़ दिए गए थे। इनमें संजय राउत, आदित्य ठाकरे, शरद पवार, अजीत पवार, सचिन पायलट, उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती, फारुख अब्दुल्ला, शशि थरूर, और गुलाम नबी आजाद जैसे नेताओं के नाम भी थे।
इस मामले के सामने आने के बाद कानूनी जगत में हलचल मच गई। खबरों में आने के बाद वेबसाइट ने सभी संदिग्ध रिव्यू हटा दिए। हालांकि, यह घटना इस बात की ओर इशारा करती है कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर फेक रिव्यू और झूठे दावे कितनी तेजी से फैल सकते हैं।
बार एंड बेंच से बात करते हुए एडवोकेट अंकुर जहांगीरदार ने कहा कि, “यह न केवल एक धोखाधड़ी है बल्कि न्यायपालिका के नामों का गलत इस्तेमाल कर लोगों को भ्रमित करने की कोशिश है। वेबसाइट पर दिवंगत वरिष्ठ वकील राम जेतमलानी के नाम से भी रिव्यू पोस्ट किया गया था। इससे स्पष्ट है कि यह पूरा मामला एक फर्जीवाड़ा था।”
उन्होंने कहा कि उन्होंने यह मामला इसलिए उजागर किया ताकि लोग ऑनलाइन खरीदारी करते समय सावधान रहें और किसी भी उत्पाद की सच्चाई की जांच जरूर करें।
यह मामला फिर से यह सवाल उठाता है कि ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स की विश्वसनीयता पर कितना भरोसा किया जा सकता है। नकली रिव्यू और झूठी प्रचार सामग्री पर रोक लगाने के लिए सरकार और संबंधित एजेंसियों को सख्त कदम उठाने की जरूरत है।




