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पत्नी से जबरन मोबाइल फोन या बैंक खातों की डिटेल मांगना अपराध की श्रेणी में, प्राथमिकी होगी दर्ज

Aryan
17 July 2025 7:02 PM IST
पत्नी से जबरन मोबाइल फोन या बैंक खातों की डिटेल मांगना अपराध की श्रेणी में, प्राथमिकी होगी दर्ज
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पति-पत्नी के रिश्ते का आधार विश्वास पर होना चाहिए। तभी संतुलित जीवन की कल्पना की जा सकती है

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के द्वारा हाल ही में फैसला आया था कि पति पत्नी अगर धोखे से एक दूसरे के फोन को रिकार्ड करके सबूत जुटाते हैं, तो इसको तलाक के मुकदमे में अहम साक्ष्य माना जाएगा। वहीं छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक फैसला सुनाया है कि पति अपनी पत्नी से जबरन उसके खातों और मोबाइल फोन के डिटेल मांगे तो पत्नी पति पर केस कर सकती है।

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा- जबरन कार्य करना गैरकानूनी

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा कि पति अपनी पत्नी को उसके मोबाइल फोन या बैंक खाते के पासवर्ड साझा करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। इससे उसकी निजता का उल्लंघन होगा। ऐसा करना घरेलू हिंसा मानी जायेगी। जस्टिस राकेश मोहन पांडे का कहना है कि वैवाहिक संबंधों में साथ जीवन जीना पड़ता है, लेकिन किसी की व्यक्तिगत निजता के अधिकारों का हनन नहीं। पति पत्नी को अपने मोबाइल फोन या बैंक खाते के पासवर्ड शेयर करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। पति-पत्नी के रिश्ते का आधार विश्वास पर होना चाहिए। तभी संतुलित जीवन की कल्पना की जा सकती है

पति द्वारा पत्नी की सीडीआर की मांग

मामले में पति याचिकाकर्ता है। जिसने क्रूरता को आधार बनाते हुए हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)A के तहत तलाक के लिए अपील किया है। लेकिन पत्नी ने आरोपों का खंडन करते हुए एक लिखित बयान दिया। जबकि कार्यवाही के दौरान पति ने दुर्ग के SSP से शिकायत करते हुए पत्नी के चरित्र पर संदेह जताते हुए उसके कॉल डिटेल रिकॉर्ड (सीडीआर) उपलब्ध कराने का अनुरोध किया। उसने फैमिली कोर्ट में भी एक आवेदन दायर कर पत्नी के कॉल रिकॉर्ड उपलब्ध कराने के लिए पुलिस को निर्देश देने की मांग की। जब फैमिली कोर्ट में उसकी याचिका खारिज कर दी गई, तब पति ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की।

हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की याद दिलाई

हाईकोर्ट ने केएस पुट्टस्वामी, पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज और मिस्टर एक्स बनाम हॉस्पिटल जेड में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसलों को दोहराते हुए इस बात की पुष्टि की, कि निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ये अधिकार भारत के सभी नागरिकों को समान रूप से दिया गया है। अब अगर इसमें कोई भी बाधा डाला जाएगा तो संविधान का उल्लंघन माना जाएगा।


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