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बाबरी विध्वंस से राम मंदिर का निर्माण तक... 33 साल की वो पूरी कहानी जिसने बदला देश का इतिहास..

नई दिल्ली। 6 दिसंबर 1992 में आज के ही दिन अयोध्या में स्थित विवादित ढांचा (जिसे बाबरी मस्जिद कहा जाता था) कारसेवकों की भारी भीड़ द्वारा ढहा दिया गया था। यह घटना दशकों से चल रहे राम जन्मभूमि–बाबरी मस्जिद विवाद का विस्फोटक मोड़ थी, जिसके बाद पूरे देश में सांप्रदायिक तनाव और हिंसा फैल गई। विवादित ढांचे के विध्वंस को मुस्लिम समुदाय ने अपने धार्मिक स्थल के टूटने के रूप में देखा। इसलिए 1993 से लेकर 2019 तक, हर साल 6 दिसंबर को अधिकांश मुस्लिम संगठन इसे ‘काला दिवस’ के रूप में मनाते रहे.जबकि विजय के प्रतीक के तौर पर हिंदू संगढ़न शौर्य दिवस के रूप में मानते थे।
विध्वंस और उसके बाद (1992-2010)
6 दिसंबर 1992: 6 दिसंबर 1992 को, VHP द्वारा घोषित 'कार सेवा' के लिए अयोध्या में लाखों कारसेवक इकट्ठा हुए। सभा के दौरान, भीड़ अचानक अनियंत्रित हो गई और पुलिस घेरा तोड़कर मस्जिद के ढांचे पर चढ़ गई। भीड़ ने कुल्हाड़ियों, लोहे की छड़ों और रस्सियों का उपयोग करके कुछ ही घंटों में मस्जिद के तीनों गुंबदों को पूरी तरह से ढहा दिया। विध्वंस के बाद, कारसेवकों ने तुरंत उस स्थान पर एक अस्थायी मंदिर बना दिया। इस घटना के बाद पूरे भारत में व्यापक सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे, जिनमें 2,000 से अधिक लोगों की जान चली गई। इस घटना ने देश के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य पर गहरा और स्थायी प्रभाव डाला।
16 दिसंबर 1992: नरसिम्हा राव सरकार ने विध्वंस की परिस्थितियों की जांच के लिए लिब्रहान आयोग का गठन किया।
7 जनवरी 1993: केंद्र सरकार ने विवादित स्थल और आसपास के 67.7 एकड़ क्षेत्र के अधिग्रहण के लिए एक अध्यादेश जारी किया, जिसे बाद में 'अयोध्या में कुछ क्षेत्रों का अधिग्रहण अधिनियम' के रूप में पारित किया गया।
अप्रैल 2002: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने विवादित स्थल के मालिकाना हक पर सुनवाई शुरू की।
मार्च-अगस्त 2003: उच्च न्यायालय के निर्देश पर, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने स्थल की खुदाई की और दावा किया कि मस्जिद के नीचे 10वीं शताब्दी के एक मंदिर के अवशेष मिले हैं। हालांकि, इस रिपोर्ट पर विवाद हुआ।
30 सितंबर 2010: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए विवादित 2.77 एकड़ भूमि को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला विराजमान के बीच तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया।
मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का इस्तीफा
6 दिसंबर, 1992 को कारसेवकों की भीड़ द्वारा बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराए जाने के कुछ घंटों बाद, कल्याण सिंह ने घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उनकी सरकार को उसी शाम केंद्र सरकार द्वारा बर्खास्त कर दिया गया था।
कानूनी लड़ाई का अंतिम चरण (2011-2019)
9 मई 2011: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगा दी, जिससे यथास्थिति बनी रही।
जनवरी 2019: सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के लिए पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ का गठन किया।
6 अगस्त 2019: कोर्ट द्वारा नियुक्त मध्यस्थता पैनल किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले की रोजाना सुनवाई शुरू की।
9 नवंबर 2019: सुप्रीम कोर्ट ने एक सर्वसम्मत और ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने माना कि विवादित पूरी 2.77 एकड़ जमीन रामलला विराजमान को दी जाए। केंद्र सरकार को मंदिर निर्माण के लिए तीन महीने के भीतर एक ट्रस्ट बनाने का निर्देश दिया गया। सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद निर्माण के लिए अयोध्या में एक प्रमुख स्थान पर 5 एकड़ वैकल्पिक भूमि आवंटित करने का भी आदेश दिया गया।
मंदिर निर्माण और अभिषेक (2020-2024)
5 फरवरी 2020: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में मंदिर निर्माण के लिए 'श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र' ट्रस्ट के गठन की घोषणा की।
5 अगस्त 2020: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में राम मंदिर की नींव रखी और भूमि पूजन किया, जिसके साथ मंदिर निर्माण की औपचारिक शुरुआत हुई।
22 जनवरी 2024: मंदिर का निर्माण पूरा होने के बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में भव्य प्राण प्रतिष्ठा (अभिषेक) समारोह आयोजित किया गया। इस दिन 51 इंच की रामलला की मूर्ति को गर्भगृह में स्थापित किया गया। इन 33 वर्षों ने भारतीय राजनीति और समाज पर गहरा प्रभाव डाला और अंततः एक लंबी कानूनी व राजनीतिक गाथा का समापन हुआ




