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GST Update: अब 19 रुपए की सिगरेट 21.77 रुपए में, 1 की टॉफी 88 पैसे में , जानें पेमेंट के तरीके...

Aryan
23 Sept 2025 9:30 PM IST
GST Update: अब 19 रुपए की सिगरेट 21.77 रुपए में, 1 की टॉफी 88 पैसे में , जानें पेमेंट के तरीके...
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कंपनियों को डर है कि अगर वो दाम कम करने की जगह प्रोडक्ट का वजन बढ़ा देंगे, तो कहीं सरकार ये न कहे कि ग्राहकों तक फायदा नहीं पहुंचाया गया है।

नई दिल्ली। जीएसटी लागू होने के बाद लोगों को चीजें थोड़ी सस्ती मिल रही हैं। लेकिन कुछ वस्तुओं के दाम ऐसे हो गए हैं कि पेमेंट करने में परेशानी हो रही है। पहले क्लासिक की बड़ी सिगरेट खुदरे में 19 रुपए की मिलती थी, लेकिन अब वही 21.77 रुपए हो गया है। वहीं पारले जी बिस्किट, जो कि पहले 5 रुपए का था, अब 4.45 रुपए में मिल रहा है। 1 रुपए की टॉफी की कीमत 88 पैसे हो गई है। ऐसी कीमतों से दुकानदार और ग्राहक दोनों को परेशानी हो रही है। बता दें सरकार ने पहले ही 50 पैसे का सिक्का बंद कर दिया है, छुट्टा पैसे भी किसी के पास होते नहीं है। डिजिटल पेमेंट भी सभी नहीं करते हैं।

पारले कंपनी के वाइस प्रेसिडेंट मयंक शाह ने कहा

कंपनियों के अनुसार उन्होंने जीएसटी की दरों में कटौती का फायदा ग्राहकों को देना शुरू कर दिया है, लेकिन उन्हें यह समझ नहीं आ रहा कि सरकार इस फायदे को देने का सही तरीका क्या मानती है। इस मामले में पारले कंपनी के वाइस प्रेसिडेंट मयंक शाह ने कहा कि फिलहाल तो थोड़ी परेशानी होगी, लेकिन उम्मीद है कि लोग UPI से पूरा पेमेंट करेंगे या फिर बड़े पैक खरीदेंगे ताकि छुट्टे पैसे का झंझट नहीं हो। कंपनियों को डर है कि अगर वो दाम कम करने की जगह प्रोडक्ट का वजन बढ़ा देंगे, तो कहीं सरकार ये न कहे कि ग्राहकों तक फायदानहीं पहुंचाया गया है। इसलिए कंपनियां सरकार से साफ-साफ जवाब चाहती है।

छोटे पैक की मांग ज्यादा

भारत में छोटे पैक यानी रुपए 1, रुपए 2, रुपए 5 और रुपए 10 की चीजों की सबसे अधिक बिक्री होती है। अब समस्या ये है कि जिन वस्तुओं की कीमतें हमेशा राउंड फिगर में होती थीं, अब उनमें छुट्टे पैसे लग रहे हैं। इससे दुकानदारों को छुट्टा देने में दिक्कत हो रही है।

सरकार से मांगा रहे स्पष्टीकरण

2017 में जब जीएसटी पहली बार लागू हुआ था, तब भी कई कंपनियों पर जुर्माना लगाया गया था। क्योंकि उन्होंने टैक्स में कटौती के बाद भी दाम नहीं घटाए थे। अब कंपनियां दोबारा ऐसा नहीं करना चाहती हैं। इसलिए वे सरकार से वो पूछ रही हैं कि क्या दाम घटाने की बजाय अगर वो प्रोडक्ट का वजन बढ़ा दें, तो क्या उसे ग्राहकों को फायदा देना कहा जाएगा?


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