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हाथ-पैर में है सूजन तो ध्यान दीजिये, जरा सी लापरवाही ला सकती है तबाही

DeskNoida
1 July 2025 1:00 AM IST
हाथ-पैर में है सूजन तो ध्यान दीजिये, जरा सी लापरवाही ला सकती है तबाही
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वैज्ञानिकों ने इटली और सिंगापुर की औद्योगिक आबादी तथा बोलीवियाई अमेजन के त्सिमाने और मलेशिया के ओरंग अस्ली जैसे दो पारंपरिक समुदायों का अध्ययन किया।

एक हालिया अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि सूजन यानी इंफ्लेमेशन जरूरी नहीं कि उम्र बढ़ने से ही जुड़ी हो। यह औद्योगिक जीवनशैली का परिणाम भी हो सकती है। यह शोध ‘नेचर एजिंग’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

परंपरागत समुदायों में उम्र बढ़ने से सूजन नहीं बढ़ी

वैज्ञानिकों ने इटली और सिंगापुर की औद्योगिक आबादी तथा बोलीवियाई अमेजन के त्सिमाने और मलेशिया के ओरंग अस्ली जैसे दो पारंपरिक समुदायों का अध्ययन किया। शोध में देखा गया कि औद्योगिक देशों में उम्र बढ़ने के साथ सूजन का स्तर बढ़ा, जबकि परंपरागत समुदायों में सूजन अधिकतर संक्रमण की वजह से हुई, उम्र से नहीं।

औद्योगिक जीवनशैली में बढ़ती हैं पुरानी बीमारियां

शोधकर्ताओं ने बताया कि आधुनिक समाजों में सूजन बढ़ने से मधुमेह, हृदय रोग और अल्जाइमर जैसी बीमारियां आम हो जाती हैं। लेकिन जिन समुदायों में संक्रमण ज्यादा होता है, वहां सूजन उम्र बढ़ने की निशानी नहीं होती। वहां के लोगों में उम्र के साथ सूजन नहीं बढ़ती और न ही इससे पुरानी बीमारियां होती हैं।

संक्रमण के बीच बना अलग प्रतिरक्षा तंत्र

अध्ययन के अनुसार पारंपरिक आबादी का प्रतिरक्षा तंत्र लगातार संक्रमण और विशेष पर्यावरणीय परिस्थितियों के कारण विकसित हुआ है। इस वजह से उनके शरीर में उम्र बढ़ने के बावजूद सूजन के असर अलग दिखाई देते हैं।

वैज्ञानिकों ने उठाए सवाल

मुख्य शोधकर्ता एलन कोहेन ने कहा कि यह धारणा सही नहीं कि सूजन हमेशा नुकसानदायक होती है। सूजन का प्रभाव उस व्यक्ति के वातावरण और जीवनशैली पर निर्भर करता है। उन्होंने कहा कि यह समझना जरूरी है कि उम्र बढ़ने के कारणों को जानने के लिए संस्कृति, माहौल और रहन-सहन को एक साथ देखने की जरूरत है।

युवाओं में भी दिखे बुजुर्गों जैसे लक्षण

शोध में यह भी पाया गया कि परंपरागत समुदायों के युवाओं में संक्रमण के कारण कभी-कभी ऐसे लक्षण दिखते हैं, जो औद्योगिक देशों के बुजुर्गों में सूजन के समय देखे जाते हैं। लेकिन वहां यह पुरानी बीमारी में नहीं बदलते।

अध्ययन में 19 साइटोकाइन्स का विश्लेषण

वैज्ञानिकों ने 19 प्रकार के साइटोकाइन्स (प्रोटीन) का विश्लेषण किया। इटली और सिंगापुर की आबादी में इनमें उम्र से जुड़े पैटर्न मिले, जबकि त्सिमाने और ओरंग अस्ली में ऐसा नहीं दिखा।

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