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पितृपक्ष में दो ग्रहण का 100 साल बाद लगना दुर्लभ संयोग... ज्योतिषीय हिसाब से शुभ-अशुभ फल होंगे अधिक प्रभावशाली

नई दिल्ली। पितरों के लिए श्राद्ध एवं तर्पण पितृपक्ष में किया जाता है, जो कि सात सितंबर से शुरू होने वाला है। खगोलीय घटनाओं एवं ज्योतिष विदों के मुताबिक 100 साल बाद ऐसा संयोग बनेगा, जब पितृपक्ष के समय चंद्रग्रहण तथा सूर्यग्रहण दोनों एक पक्ष में ही पड़ने वाले हैं।
बीएचयू के ज्योतिष विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. विनय पांडेय ने जानकारी दी
बीएचयू के ज्योतिष विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. विनय पांडेय ने जानकारी देते हुए कहा कि काशी के पंचांग के मुताबिक पितृपक्ष का आरंभ सात सितंबर से होगा। जबकि प्रतिपदा का श्राद्ध आठ सितंबर को होगा। इस बार नवमी तिथि का लोप हो रहा है। पंचमी एवं षष्ठी तिथि का श्राद्ध 12 सितंबर को किया जाएगा। आगे प्रो. विनय पांडेय ने कहा कि चंद्रग्रहण सात सितंबर की रात 9:57 बजे से लगेगा एवं इसका मोक्ष 1:27 बजे होगा। जबकि इसका सूतक काल नौ घंटे पहले ही शुरु हो जाएगा।
ग्रहण के दौरान श्राद्धकर्म बेहद खास
ग्रहण के दौरान श्राद्धकर्म बेहद खास मानी जा रही है। इस समय खास तौर पर पितरों की शांति, तर्पण और कर्मकांड किये जाते हैं। साढ़े तीन घंटे के चंद्रग्रहण का सूतक नौ घंटे पहले लग जाएगा। जबकि सूर्यग्रहण भारत में दृश्य नहीं होने से सूतक नहीं लगेगा। बता दें, ग्रहण के दौरान श्राद्धकर्म वर्जित नहीं होता है।
21 सितंबर को सूर्यग्रहण लगेगा
21 सितंबर को पितृ विसर्जन पर सूर्यग्रहण लग रहा है। सूर्यग्रहण 21 सितंबर की रात 11 बजे से शुरू हो जाएगा एवं 22 सितंबर को सुबह 3:24 बजे पर समाप्त होगा। हालांकि इस सूर्यग्रहण का भारत में असर नहीं होगा।
ज्योतिषाचार्य दैवज्ञ कृष्ण शास्त्री ने कहा
ज्योतिषाचार्य दैवज्ञ कृष्ण शास्त्री ने कहा कि इस ग्रहण का कन्या राशि एवं उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में लगने का ज्योतिषीय महत्व है। धार्मिक मान्यता के मुताबिक पितृपक्ष में ग्रहण का लगना शुभ-अशुभ फल को अधिक प्रभावी बनाता है। यह घटना पितरों की शांति और तर्पण कर्मकांड को विशेष महत्व देने वाली होगी।