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यूपी मदरसा शिक्षकों की वीआरएस और पेंशन पर संकट, नियमों के बिना दिए गए लाभ पर सरकार सख्त

उत्तर प्रदेश में मदरसों में कार्यरत शिक्षकों और शिक्षणेत्तर कर्मचारियों की स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) और पेंशन को लेकर बड़ा प्रशासनिक विवाद सामने आया है। नियमों में स्पष्ट प्रावधान न होने के बावजूद कई मामलों में वीआरएस का लाभ और पेंशन दिए जाने का खुलासा हुआ है। जैसे ही यह मामला सामने आया, अल्पसंख्यक कल्याण विभाग हरकत में आ गया है और पूरे प्रकरण का विस्तृत ब्योरा तलब किया गया है।
जानकारी के मुताबिक, उत्तर प्रदेश अशासकीय अरबी और फारसी मदरसा मान्यता प्रशासन एवं सेवा नियमावली-2016 में वीआरएस का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है। नियमों के अनुसार, कोई भी कर्मचारी केवल तीन महीने का नोटिस देकर त्यागपत्र दे सकता है। यदि कर्मचारी तीन माह पूर्व सूचना नहीं देता है तो उसे तीन महीने का वेतन सरकार के पास जमा करना होता है। इसके बाद नियुक्ति प्राधिकारी संबंधित कर्मचारी को पूरा अवसर सुनवाई का देता है और उसके बयान दर्ज कर अपनी संस्तुति के साथ इस्तीफे को 15 दिनों के भीतर मदरसा शिक्षा परिषद के निरीक्षक को भेजता है।
इसके बावजूद, प्रदेश के कई मदरसों में कार्यरत शिक्षकों और कर्मचारियों को वीआरएस का लाभ दिया गया और उन्हें पेंशन भी स्वीकृत कर दी गई। जब यह बात विभागीय स्तर पर सामने आई, तो निदेशक अल्पसंख्यक कल्याण ने रजिस्ट्रार और निरीक्षक उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद से सीधे सवाल पूछे हैं कि आखिर किस नियम के तहत यह लाभ दिया जा रहा है। साथ ही यह भी पूछा गया है कि अब तक कितने मामलों में पेंशन स्वीकृत की जा चुकी है।
निदेशक ने सभी जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि सेवा नियमावली का सख्ती से पालन सुनिश्चित किया जाए। जिलों से कहा गया है कि ऐसे सभी प्रकरणों की पूरी सूची तैयार कर रजिस्ट्रार को भेजी जाए, जबकि रजिस्ट्रार को निर्देश दिए गए हैं कि वे समस्त मामलों का विवरण निदेशालय को उपलब्ध कराएं। इससे यह स्पष्ट हो सकेगा कि प्रदेश में वास्तव में कितने शिक्षकों और कर्मचारियों को नियमों के विरुद्ध वीआरएस और पेंशन का लाभ दिया गया है।
विभागीय सूत्रों का कहना है कि यह मामला काफी गंभीर है। कई जगहों पर त्यागपत्र को ही वीआरएस मानकर मदरसा प्रबंधन और प्रधानाचार्य द्वारा अग्रसारित कर दिया गया, जिसके आधार पर विभागीय स्तर से स्वीकृति मिलती रही। सवाल यह उठ रहा है कि जब नियमों में वीआरएस का प्रावधान ही नहीं है, तो जिला स्तर के अधिकारी ऐसी स्वीकृति कैसे देते रहे।
अब विभाग के सामने दो रास्ते बताए जा रहे हैं। पहला, जिन लोगों को नियमों के खिलाफ लाभ दिया गया है, उनसे रिकवरी की जाए और जिम्मेदार अधिकारियों पर भी कार्रवाई हो। दूसरा विकल्प यह है कि मदरसा एक्ट में संशोधन कर वीआरएस का प्रावधान जोड़ा जाए, लेकिन ऐसा करने पर भी पुराने मामलों की वैधता पर सवाल बना रहेगा। ऐसे में आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर सरकार का रुख और सख्त होने की संभावना जताई जा रही है।




