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हाईकोर्ट का बड़ा आदेश! उत्तर प्रदेश में जाति आधारित रैलियों पर प्रतिबंध, पुलिस रिकॉर्ड में भी नहीं लिखी जाएगी कॉस्ट

लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदेश देते हुए यूपी सरकार के FIR, पुलिस रिकॉर्ड और सार्वजनिक स्थानों पर जाति का उल्लेख करने पर रोक लगा दी है। अब पुलिस दस्तावेजों में नाम के साथ जाति नहीं लिखी जाएगी, और आरोपी की पहचान के लिए माता-पिता दोनों का नाम शामिल करना अनिवार्य होगा। हाईकोर्ट का यह फैसला संवैधानिक नैतिकता को बनाए रखने के लिए लिया गया है।
दस्तावेजों में बदलाव
बता दें कि एफआईआर, गिरफ्तारी मेमो, चार्जशीट और अन्य पुलिस दस्तावेजों में अब नाम के साथ जाति नहीं लिखी जाएगी, और माता-पिता दोनों के नाम दर्ज करना अनिवार्य किया गया है।
जाति आधारित संकेत और नारे पूरी तरह बैन
हाई कोर्ट ने आदेश देते हुए कहा कि थानों के नोटिस बोर्ड, पुलिस वाहनों और सार्वजनिक साइनबोर्ड्स से जाति आधारित संकेत, जैसे 'यादव', 'जाट', 'गुर्जर' या अन्य समुदायों के नारे, तत्काल हटाए जाएंगे। इसके अलावा, जाति आधारित रैलियों और प्रदर्शनों पर पूरी तरह रोक लगाई गई है। सोशल मीडिया पर भी ऐसी सामग्री पर नजर रखी जाएगी, और उल्लंघन करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी। यह कदम उत्तर प्रदेश में सामाजिक एकता को बढ़ाने और जातिगत तनाव को कम करने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
किस लिए हुए बदलाव
हाई कोर्ट ने इसे 'संवैधानिक नैतिकता का उल्लंघन' और 'पहचान-आधारित प्रोफाइलिंग' बताते हुए कहा कि यह पूर्वाग्रह को बढ़ावा देता है। साथ ही अदालत ने जाति का महिमामंडन करने और समाज में भेदभाव बढ़ाने वाली चीजों को राष्ट्र-विरोधी बताया है, और 2047 तक विकसित राष्ट्र के लक्ष्य में जाति उन्मूलन को एक केंद्रीय एजेंडा बताया है।