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बंगाली पहचान और रोहिंग्या मुद्दे पर आमने-सामने ममता बनर्जी और शुभेंदु अधिकारी

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी बुधवार को कोलकाता की बारिश से भीगी सड़कों पर अलग-अलग विरोध मार्च करते नजर आए। जहां एक ओर ममता बनर्जी ने बंगाली भाषियों के साथ कथित उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाई, वहीं दूसरी ओर शुभेंदु अधिकारी ने मतदाता सूची से रोहिंग्या घुसपैठियों को हटाने की मांग की।
यह विवाद आने वाले 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले राज्य की सियासत में बड़ा मुद्दा बनता दिख रहा है।
ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार पर बंगाली बोलने वालों को बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुस्लिम कहकर प्रताड़ित करने का आरोप लगाया। उन्होंने एक जनसभा में कहा कि केंद्र की नीतियां बंगालियों को जेल में डालने और उन्हें संदेह के आधार पर महीनों तक बिना सुनवाई के हिरासत में रखने की अनुमति देती हैं। उन्होंने इसे 'आपातकाल से भी गंभीर स्थिति' बताया।
तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ने यह भी आरोप लगाया कि केंद्र सरकार चुनाव आयोग को प्रभावित कर रही है ताकि भाजपा अपने राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ा सके। उन्होंने यह चेतावनी भी दी कि बंगाल में इस बार ‘खेला होबे’ का नया दौर शुरू होगा और भाजपा को कड़ी टक्कर दी जाएगी।
ममता बनर्जी ने बताया कि देशभर में लगभग 22 लाख बंगाल के प्रवासी श्रमिक काम कर रहे हैं, जिनके पास आधार और पैन कार्ड जैसे वैध दस्तावेज हैं। उन्होंने कहा कि भाजपा को इन्हें परेशान करने का कोई अधिकार नहीं है और बंगाल भारत का अभिन्न हिस्सा है।
दूसरी ओर, शुभेंदु अधिकारी ने मुख्यमंत्री के विरोध मार्च को रोहिंग्याओं को बचाने की कवायद बताया। उन्होंने चुनाव आयोग से मांग की कि राज्य की मतदाता सूची से रोहिंग्या घुसपैठियों को हटाया जाए और इसके लिए घर-घर जाकर सर्वे कराया जाए। उन्होंने यह भी कहा कि बिहार की तरह यहां भी वही मॉडल अपनाया जाना चाहिए।
अधिकारी ने यह आरोप भी लगाया कि ममता बनर्जी जनसंख्या संरचना में हो रहे बदलाव को लेकर चिंतित नहीं हैं, बल्कि उनकी चिंता सिर्फ मतदाता सूची को लेकर है। उन्होंने चुनाव कार्यों के लिए राज्य और केंद्र दोनों के कर्मचारियों को 50 प्रतिशत की संख्या में तैनात करने की मांग की।
उधर, कलकत्ता हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से दिल्ली हाईकोर्ट में लंबित ऐसे मामलों का ब्योरा मांगा है जिनमें कथित तौर पर अवैध रूप से रह रहे लोगों को देश से बाहर किया गया है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि वह यह जानना चाहती है कि क्या बंगाली भाषी लोगों से अन्य राज्यों में उनकी नागरिकता को लेकर सवाल किए जा रहे हैं।