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नवरात्र का छठां दिन मां कात्यायनी! महिषासुर का अंत करने के बाद कहलाई थी महिषासुर मर्दिनी, जानें कथा

नई दिल्ली। नवरात्रि के छठे दिन मां दुर्गा के छठे स्वरूप मांम की पूजा की जाती है। मां कात्यायनी शक्ति और साहस का प्रतीक हैं और इन्हें महिषासुर मर्दिनी के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि उन्होंने ही महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था।
मां कात्यायनी का स्वरूप
वाहन- मां कात्यायनी सिंह पर सवार हैं।
भुजाएं- उनकी चार भुजाएं हैं।
हाथों में- ऊपर का दाहिना हाथ अभय मुद्रा में और बायां हाथ वरद मुद्रा में होता है, जबकि बाकी हाथों में कमल का फूल और चंद्रहास नामक तलवार होती है।
आभा- उनका रंग चमकीला और सुनहरा होता है।
मां कात्यायनी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, जब महिषासुर नामक राक्षस का अत्याचार बढ़ गया, तो सभी देवता परेशान हो गए। तब ब्रह्मा, विष्णु और शिव ने अपनी-अपनी शक्तियों को मिलाकर देवी को उत्पन्न किया। महर्षि कात्यायन की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर, देवी ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया, जिसके कारण उनका नाम कात्यायनी पड़ा। महिषासुर का वध करने के बाद ही उन्हें महिषासुर मर्दिनी कहा गया। एक और कथा के अनुसार, ब्रज की गोपियों ने भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए मां कात्यायनी की पूजा की थी।
पूजा विधि और महत्व
पूजा का समय- गोधूलि वेला में पूजा करना शुभ माना जाता है।
पूजा सामग्री- कुमकुम, चंदन, पीले फूल (गेंदा, कमल या गुड़हल), फल, मिठाई, दीया और अगरबत्ती का उपयोग करें।
मंत्र
पूजा के दौरान इन मंत्रों का जाप कर सकते हैं-
"कात्यायनी महामाये, महायोगिन्यधीश्वरी। नन्दगोपसुतं देवी, पतिं मे कुरु ते नमः।।"
"ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥"
फायदे
- मां कात्यायनी की पूजा करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और जीवन से नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं।
- साधक को धन, सफलता, साहस और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है।
- विवाह में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और योग्य जीवनसाथी मिलता है।
भोग- मां कात्यायनी को पीले रंग का हलवा या पीले पेड़े का भोग लगाया जाता है।
शुभ रंग- छठे दिन का शुभ रंग गुलाबी माना जाता है, जो प्रेम और करुणा का प्रतीक है।