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कुरूक्षेत्र में बोले पीएम मोदी- हमारी सरकार को गुरु परंपराओं के पवित्र स्थलों को पहचान दिलाने का मिला मौका

कुरूक्षेत्र। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हरियाणा के कुरूक्षेत्र में आज श्री गुरु तेग बहादुर जी के 350वें शहीदी दिवस के पावन अवसर पर गुरु महाराज जी को श्रद्धासुमन अर्पित किया। इस दौरान मंच पर गुरबाणी आयोजित किया गया, जिसमें रागियों ने गुरु तेग बहादुर जी के जीवन, त्याग और बलिदान को कीर्तन के रुप में प्रस्तुत किया। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने गुरु तेग बहादुर जी के अद्वितीय बलिदान और मानवता की रक्षा के लिए दिए गए बलिदान को नमन किया। उन्होंने देशवासियों से कहा कि हमें भी गुरु तेग बहादुर जी के बताये मार्ग पर चलना चाहिए। इस दौरान पीएम ने स्मारक डाक टिकट भी जारी किया।
मैं स्वयं को गर्व के साथ गुरु परंपराओं का एक छोटा सा हिस्सा मानता हूं
पीएम मोदी ने अपने संबोधन के दौरान कहा कि हमारी सरकार को यह सौभाग्य प्राप्त हुआ। हमें सिख गुरु परंपरा से जुड़े पवित्र स्थलों को वैश्विक पहचान दिलाने अवसर मिल सका। मैं स्वयं को गर्व के साथ गुरु परंपराओं का एक छोटा सा हिस्सा मानता हूं।
देश-विदेश में गुरुओं के ऐतिहासिक तीर्थ स्थलों को आधुनिक भारत से जोड़ा
पीएम ने कहा कि जब अफगानिस्तान में संकट के समय मूल स्वरूप श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी को खतरा था, तब हमारी सरकार ने पूरे सम्मान और श्रद्धा के साथ उन्हें सुरक्षित रुप से भारत लाने का काम किया था। हमने देश-विदेश में गुरुओं के ऐतिहासिक तीर्थ स्थलों को आधुनिक भारत की मुख्यधारा से जोड़ने की दिशा में कार्य किया है।
करतारपुर साहिब कॉरिडोर की चर्चा की
पीएम ने करतारपुर साहिब कॉरिडोर की चर्चा करते हुए, हेमकुंट साहिब तक रोड-वे का निर्माण पर बात की। उन्होंने आगे कहा कि सुल्तानपुर लोधी का भव्य विकास हो या फिर गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रकाश पर्व पर बिहार में पटना साहिब और तख्त श्री हरमंदिर जी पटना साहिब को अंतरराष्ट्रीय स्तर का रूप देना, यह सब कार्य उसी श्रद्धा का प्रतीक है।
26 दिसंबर को पूरे देश में वीर बाल दिवस मनाया जाएगा
मुगल शासकों ने गुरु परिवार के साथ जो क्रूरता की, उसकी कोई मिसाल नहीं मिलती। चार साहिबजादे जैसे जोरावर सिंह और फतेह सिंह नन्हें बालकों को जीवित दीवार में चिनवा दिया गया था। यह मानवता पर कलंक था। इन वीर साहिबजादों की शहादत को याद रखने के लिए हमने 26 दिसंबर को पूरे देश में वीर बाल दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। साथ ही, इन महान बलिदानियों की गाथा को आने वाली पीढ़ियां कभी न भूलें, इसलिए हमने स्कूलों के पाठ्यक्रम में भी साहिबजादों के पराक्रम और त्याग की कहानी को शामिल किया है।




