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NEPAL: जहां मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को घर से निकाल दिया जाता है बाहर! जानें Period कैसे बन जाती है जानलेवा

Anjali Tyagi
8 Sept 2025 9:10 PM IST
NEPAL: जहां मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को घर से निकाल दिया जाता है बाहर! जानें Period कैसे बन जाती है जानलेवा
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नई दिल्ली। पीरियड्स हर महिला के साथ हर महीने होने वाला एक बायोलॉजिकल टर्म है। यह कोई बीमारी नहीं है और न कोई अछूती परंपरा है। लेकिन इसके बावजूद इसे कई देशों में आज भी अंधविश्वास, बुरी किस्मत टैबू माना जाता है। एक ऐसी ही परंपरा पड़ोसी देश नेपाल में भी देखने को मिलती है, जिसे चौपाड़ी प्रथा के नाम से जानते हैं।

क्या है चौपाड़ी प्रथा ?

चौपाड़ी (या छौपडी) प्रथा एक नेपाली सामाजिक प्रथा है जहां मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को अशुद्ध माना जाता है और उन्हें परिवार की सामान्य गतिविधियों में भाग लेने से रोका जाता है। उन्हें इस दौरान अलग-थलग रखा जाता है, और उन्हें घर से बाहर, आमतौर पर एक अस्थाई झोपड़ी में सोना पड़ता है। वहां उन्हें न तो पर्याप्त भोजन मिलता है और न ही सुरक्षा, जिसकी वजह से हर साल कई महिलाएं और लड़कियां बीमारियों, सांप-बिच्छू के काटने या ठंड के कारण अपनी जान गंवा बैठती हैं।

सरकार द्वारा बनाया गया था कानून

अब इस प्रथा को समाप्त करने के प्रयास किए जा रहे हैं, क्योंकि यह महिलाओं के स्वास्थ्य, गरिमा और अधिकारों का उल्लंघन करती है। नेपाल सरकार ने इस प्रथा को खत्म करने और महिलाओं के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए कई कानून बनाए हैं, लेकिन इसे पूरी तरह से समाप्त करने में अभी समय लगेगा। 2017 में नेपाल की संसद ने चौपाड़ी प्रथा को अपराध घोषित किया और 2018 से इसके उल्लंघन पर दंड का प्रावधान किया गया। इस कानून के मुताबिक, जो भी व्यक्ति महिलाओं को चौपड़ी झोपड़ियों में रहने पर मजबूर करता है, उसे तीन महीने की कैद और जुर्माने की सजा हो सकती है। इसके अलावा, सरकार और सामाजिक संस्थाएं लगातार इस प्रथा के खिलाफ जागरूकता अभियान भी चला रही हैं।

यह प्रथा क्यों मौजूद है?

चौपाड़ी प्रथा सदियों पुरानी है और सदियों से चली आ रही है। यह धार्मिक मान्यताओं और सामाजिक मानदंडों पर आधारित है, जिसमें महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान अशुद्ध माना जाता है और उन्हें घर से बाहर रहने की आवश्यकता होती है। नेपाल के कई पहाड़ी और ग्रामीण इलाकों में चौपाड़ी प्रथा आज भी जीवित है। खासतौर पर सुदूर पश्चिमी नेपाल के जिलों जैसे अछाम, बाजुरा और कंचनपुर में इस प्रथा की जड़ें गहराई से जमी हुई है।

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