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संतान की लंबी आयु के लिए रखें पुत्रदा एकादशी व्रत, जानें पूजा विधि और शुभ मुहूर्त का सही समय...

पुत्रदा एकादशी व्रत
पुत्रदा एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित है। यह व्रत संतान-सुख और परिवार की मंगलकामना के लिए किया जाता है। पौष पुत्रदा एकादशी व्रत संतान से संबंधित परेशानियों और बाधाओं को दूर करने का एक श्रेष्ठ उपाय है। आज एकादशी तिथि सुबह 7:50 बजे से प्रारंभ हो रही है। इस दिन दशमी तिथि भी रहेगी। एकादशी का यह व्रत 31 दिसंबर 2025 को सुबह 5 बजे समाप्त होगा। इसलिए कुछ लोग 31 को भी व्रत रख सकते हैं।
व्रत की तैयारी
दशमी तिथि की रात सात्विक भोजन करें।
मन, वाणी और कर्म से संयम रखें।
अगले दिन व्रत का संकल्प लें।
व्रत के दिन
प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें। व्रत का संकल्प लें (मन में या जल लेकर)।
पूजा विधि
घर के मंदिर में भगवान विष्णु या श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। गंगाजल से शुद्धि करें। दीप, धूप, तुलसी पत्र, फूल, फल अर्पित करें। विष्णु सहस्रनाम पढ़ें या ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करें।
व्रत नियम
निर्जला या फलाहार व्रत रखें अपनी क्षमता के अनुसार।
दिनभर भजन-कीर्तन, विष्णु कथा का श्रवण या पाठ करें।
क्रोध, असत्य, निंदा से बचें।
सायंकाल
पुनः दीप-धूप से आरती करें।
कथा/भजन करें।
पारण (द्वादशी)
द्वादशी तिथि में शुभ मुहूर्त पर व्रत खोलें।
पहले जल या फल लें, फिर सात्विक भोजन करें।
ब्राह्मण और जरूरतमंद को दान करें ।
विशेष बातें
तुलसी का विशेष महत्व है, इसे पूजा में अवश्य रखें।
पति-पत्नी साथ में व्रत करें तो फल अधिक पुण्यदायी माना जाता है।
व्रत का मुख्य भाव भक्ति, संयम और श्रद्धा है।
पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा
एक नगर में सुकेतुमान नाम के राजा रहते थे। उनकी पत्नी का नाम शैव्या था। राजा के कोई संतान नहीं थी, इसलिए वे दोनों बहुत दुखी रहते थे। राजा को चिंता रहती थी कि उनके बाद राज्य कौन संभालेगा और उनके जाने के बाद उनका अंतिम संस्कार और मोक्ष कैसे होगा। एक दिन राजा जंगल घूमने गए। वहां उन्होंने देखा कि पशु-पक्षी अपनी पत्नी और बच्चों के साथ खुशी से रह रहे हैं। यह देखकर राजा और भी दुखी हो गए और सोचने लगे कि इतने अच्छे कर्म करने के बाद भी उन्हें संतान क्यों नहीं मिली। कुछ समय बाद राजा को प्यास लगी। पानी की तलाश में वे नदी के किनारे बने ऋषियों के आश्रम पहुंचे। राजा ने सभी ऋषियों को प्रणाम किया। राजा की नम्रता से ऋषि बहुत प्रसन्न हुए और बोले कि वह कोई वर मांग सकते हैं। राजा ने कहा कि उनके पास सब कुछ है, लेकिन संतान नहीं है, इसी कारण वे दुखी हैं। तब ऋषियों ने उन्हें पुत्रदा एकादशी करने की सलाह दी।




