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नवरात्र का आठवां दिन मां महागौरी! भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए की थी कठोर तपस्या, जानें कथा

नई दिल्ली। मां महागौरी देवी दुर्गा का आठवां स्वरूप हैं और इनकी पूजा नवरात्रि के आठवें दिन की जाती है, जिसे महाअष्टमी भी कहते हैं। इनका नाम 'महागौरी' दो शब्दों 'महा' (महान) और 'गौरी' (श्वेत) से मिलकर बना है, जो इनकी अत्यंत श्वेत और तेजस्वी काया को दर्शाता है। उन्हें पवित्रता, शांति और करुणा की देवी माना जाता है।
कठोर तपस्या का फल
पौराणिक कथा के अनुसार, देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। इस दौरान वे कई वर्षों तक घने जंगलों और गुफाओं में रहीं। तपस्या करते हुए धूल-मिट्टी के कारण उनका शरीर काला पड़ गया। उनकी इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया।
गौर वर्ण की प्राप्ति
शिवजी ने पार्वती के शरीर पर जमे हुए मैल को गंगाजल से धोकर साफ किया। गंगाजल के स्पर्श से देवी का शरीर विद्युत के समान अत्यंत कांतिमान और गौर वर्ण का हो गया। गौर वर्ण के कारण ही वे 'महागौरी' कहलाईं। उनका यह स्वरूप शुद्धता, पवित्रता और शांति का प्रतीक है।
स्वरूप और प्रतीक
गौर वर्ण- इनका रंग पूरी तरह से गोरा है, जिसकी तुलना शंख, चंद्रमा और कुंद के फूल से की जाती है।
वाहन- इनका वाहन वृषभ (बैल) है।
वस्त्र और आभूषण- इनके सभी वस्त्र और आभूषण श्वेत रंग के होते हैं।
भुजाएं
इनकी चार भुजाएं हैं-
- ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा है, जो आशीर्वाद का प्रतीक है।
- नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है।
- ऊपर के बाएं हाथ में डमरू है।
- नीचे के बाएं हाथ में वर-मुद्रा है, जो वरदान देने का प्रतीक है।
पूजा का महत्व
- मां महागौरी की पूजा से जीवन के दुख और संकट दूर होते हैं।
- उनकी आराधना से मन को शांति और परिवार में सुख-समृद्धि मिलती है।
- कहा जाता है कि उनकी पूजा से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
- अष्टमी के दिन महागौरी को गुलाबी रंग के वस्त्र और नारियल का भोग अर्पित किया जाता है।
मंत्र
मां महागौरी का मंत्र इस प्रकार है-
श्वेत वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचि:।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥