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नवरात्र का चौथे दिन मां कूष्मांडा! जिन्होंने अपनी मंद मुस्कान से की थी पूरे ब्रह्मांड की उत्पत्ति, जानें क्या है कथा

Anjali Tyagi
26 Sept 2025 7:00 AM IST
नवरात्र का चौथे दिन मां कूष्मांडा! जिन्होंने अपनी मंद मुस्कान से की थी पूरे ब्रह्मांड की उत्पत्ति, जानें क्या है कथा
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नई दिल्ली। नवरात्रि के चौथे दिन दुर्गा के चौथे स्वरूप, माता कूष्मांडा की पूजा की जाती है। उन्हें सृष्टि की आदि-स्वरूपा और ब्रह्मांड की रचना करने वाली देवी माना जाता है, जिन्होंने अपनी मंद मुस्कान से पूरे ब्रह्मांड की उत्पत्ति की थी। उनकी पूजा से भक्तों को आरोग्य, आयु, यश और बल की प्राप्ति होती है।

माता का स्वरूप

नाम का अर्थ- "कूष्मांडा" नाम तीन शब्दों से बना है। 'कू' का अर्थ है 'छोटा', 'उष्मा' का अर्थ है 'गर्मी' या 'ऊर्जा' और 'अंडा' का अर्थ है 'ब्रह्मांडीय अंडा'। यानी वह देवी, जिन्होंने अपनी ऊर्जा से ब्रह्मांड की रचना की।

वाहन- उनका वाहन सिंह है, जो साहस और निर्भयता का प्रतीक है।

अष्टभुजा- माता कूष्मांडा की आठ भुजाएं हैं। उनके सात हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृत से भरा कलश, चक्र और गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है।

पूजा विधि

- सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ-सुथरे कपड़े पहनें।

- पूजा स्थल पर माता कूष्मांडा की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। फिर, धूप, दीप और प्रसाद अर्पित करें।

- देसी घी का दीपक जलाएँ।

- मां के मंत्रों का जाप करें। ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कुष्मांडाए नमः।

- दुर्गा चालीसा और दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।

- मां को मालपुआ का भोग लगाएं, क्योंकि उन्हें यह विशेष रूप से प्रिय है। आप पेठा, फल और खीर भी चढ़ा सकते हैं।

- पूजा के अंत में माता की आरती करें।

- इस दिन पीले रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है, जो सकारात्मकता और खुशी का प्रतीक है।

महत्व

- कूष्मांडा देवी की पूजा से भक्तों के सभी रोग और कष्ट दूर होते हैं।

- देवी पुराण के अनुसार, विद्यार्थियों को विशेष रूप से उनकी पूजा करनी चाहिए, क्योंकि इससे उनकी बुद्धि का विकास होता है।

- माता का तेज सूर्य के समान है और वह सूर्यमंडल के भीतर वास करती हैं। उन्हीं के तेज से चारों दिशाओं में प्रकाश फैलता है।

- ज्योतिष में माता कूष्मांडा का संबंध बुध ग्रह से माना जाता है, इसलिए इनकी पूजा से बुध ग्रह के दोष दूर होते हैं

माता कूष्मांडा की कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब सृष्टि नहीं थी और चारों ओर केवल अंधकार ही अंधकार था, तब देवी दुर्गा के कूष्मांडा स्वरूप ने अपनी मंद-मंद मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की। इसी कारण उन्हें सृष्टि की आदिशक्ति या आदिस्वरूपा कहा जाता है।

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