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Pitru Paksh: कुरुक्षेत्र के इस मंदिर में पिंडदान करने से पितरों को मिलता है मोक्ष! जानें महाभारत काल से क्या है कनेक्शन

Anjali Tyagi
14 Sept 2025 8:00 AM IST
Pitru Paksh: कुरुक्षेत्र के इस मंदिर में पिंडदान करने से पितरों को मिलता है मोक्ष! जानें महाभारत काल से क्या है कनेक्शन
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पिहोवा। पिहोवा ( पृथूदक) एक पवित्र तीर्थस्थल है जहां आज भी महाभारत काल से जुड़ी हुई वंशावलियों के आधार पर श्राद्ध और पिंडदान किए जाते हैं, जिससे मृतात्माओं को मोक्ष प्राप्त होता है। यहां के पुरोहित वंशावलियों का उपयोग करके पीढ़ियों से श्राद्ध कर्म कराते आ रहे हैं, क्योंकि यह स्थान पवित्र सरस्वती नदी के तट पर स्थित है और पुराणों में इसका महत्व बताया गया है।

पिहोवा ( पृथूदक)

हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले में सरस्वती नदी के किनारे स्थित एक पवित्र हिंदू तीर्थस्थल है। यह पितृ तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान के लिए उत्तर भारत के सबसे महत्वपूर्ण स्थानों में से एक है, जहां माना जाता है कि पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष मिलता है।

पिहोवा की धार्मिक महत्ता

वंशावली पर आधारित श्राद्ध- पिहोवा के पुरोहितों के पास महाभारत काल से जुड़ी हुई वंशावलियां सुरक्षित हैं। इन वंशावलियों के आधार पर ही यहां पीढ़ियों से श्राद्ध कर्म करवाए जाते हैं, जिससे मृतक आत्माओं को शांति और मोक्ष मिलता है।

महाभारत से संबंध- महाभारत युद्ध के बाद, श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर के मार्गदर्शन में पिहोवा में एक दीपक प्रज्वलित किया था। आज भी वहां अकाल मृत्यु प्राप्त आत्माओं की शांति के लिए तेल चढ़ाने की परंपरा जारी है।

सरस्वती नदी का महत्व- पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, सरस्वती नदी का जल पीने से मोक्ष मिलता है, और पिहोवा में स्थित सरस्वती तीर्थ को पृथ्वी का सर्वोत्तम तीर्थ माना जाता है।

ब्रह्माजी ने की थी रचना

पुराणों के अनुसार, इस तीर्थ की रचना स्वयं प्रजापति ब्रह्मा ने सृष्टि के आरंभ में की थी। पृथुदक शब्द का संबंध महाराजा पृथु से जोड़ा जाता है, जिन्होंने अपने पिता का श्राद्ध यहीं किया था। महाभारत के अनुसार, ब्रह्माजी ने पिहोवा की आठ कोस भूमि पर बैठकर सृष्टि की रचना की थी। गंगा पुत्र भीष्म पितामह की सद्गति भी यहीं पृथुदक में हुई थी।

महाभारत से भी संबंध

महाभारत युद्ध के बाद युधिष्ठिर लाखों अकाल मृत्यु प्राप्त लोगों की आत्मा को लेकर चिंतित थे। उन्होंने जब यह चिंता श्रीकृष्ण को बताई, तब श्रीकृष्ण ने पिहोवा में सरस्वती तीर्थ पर दीपक जलाया। युधिष्ठिर ने उस दीपक में तेल अर्पित किया ताकि मृत आत्माओं की शांति हो सके। आज भी उस दीपक में तेल चढ़ाने की परंपरा जारी है और श्रद्धालु अकाल मृत्यु प्राप्त आत्माओं की मुक्ति के लिए तेल अर्पित करने आते हैं।

पिहोवा में श्राद्ध करने से लाभ

मोक्ष की प्राप्ति- धार्मिक मान्यता है कि पिहोवा में किए गए कर्मकांड से मृतात्माओं को मोक्ष मिलता है और वे जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाती हैं।

पितृ दोष का निवारण- यहां श्राद्ध और पिंडदान करने से प्रेतबाधा और अकाल मृत्यु से उत्पन्न दोषों का निवारण होता है और मृतक आत्मा को सद्गति प्राप्त होती है।

पुण्य की प्राप्ति- यह तीर्थस्थल पुण्य अर्जित करने और दिवंगत आत्माओं की आत्मा की शांति के लिए एक आदर्श स्थान माना जाता है।

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