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भारत-चीन तनाव पर पुतिन की दो टूक: यह द्विपक्षीय मामला, हस्तक्षेप की जरूरत नहीं

भारत और चीन के रिश्तों को लेकर लंबे समय से चल रहे तनाव पर अब रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने खुलकर अपनी राय रखी है। सीमा विवाद के कारण पिछले कुछ वर्षों में भारत और चीन के संबंधों में गंभीर खटास आई थी, जिसका असर सैन्य स्थिति से लेकर राजनयिक वार्ताओं तक दिखाई दिया। हालांकि हालिया दिनों में कुछ सकारात्मक संकेत अवश्य मिले हैं, लेकिन भू-राजनीतिक समीकरण अभी भी पूरी तरह सामान्य नहीं हो पाए हैं। इसी बीच रूस की ओर से आया यह बयान वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
इंडिया टुडे को दिए गए इंटरव्यू में पुतिन से भारत-चीन संबंधों के बारे में सवाल पूछा गया, जिस पर उन्होंने स्पष्ट कहा कि यह पूरी तरह से दोनों देशों के बीच का मामला है और रूस का इसमें हस्तक्षेप करने का कोई इरादा नहीं है। उन्होंने कहा, “भारत और चीन हमारे बहुत करीबी मित्र हैं। हमें नहीं लगता कि हमें उनके द्विपक्षीय मामलों में शामिल होना चाहिए। मैं जानता हूं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग किसी भी जटिल मुद्दे पर समाधान ढूंढने में सक्षम हैं। दोनों नेता इस मामले को लेकर चिंतित भी हैं और समाधान तक पहुंचने के प्रयास कर रहे हैं।”
पुतिन के इस बयान को दुनिया भर में एक ऐसे संदेश के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें रूस ने यह साफ कर दिया है कि वह भारत और चीन दोनों के साथ अपने रणनीतिक रिश्तों को संतुलित रखना चाहता है। यह कदम ऐसे समय में आया है जब भारत-चीन संबंध लद्दाख सीमा विवाद, गलवान घाटी की झड़प और कई दौर की सैन्य तथा राजनयिक बैठकों के बाद धीरे-धीरे सामान्य होने की दिशा में बढ़ रहे हैं।
आतंकवाद पर भी पुतिन का कड़ा संदेश
इंटरव्यू के दौरान पुतिन से आतंकवाद को लेकर भी सवाल पूछा गया। सवाल में अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान और हाल ही में हुए पहलगाम तथा दिल्ली आतंकी घटनाओं का उल्लेख था। इस पर रूसी राष्ट्रपति ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि आतंकवाद किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है। उन्होंने कहा, “आजादी के लिए लड़ना हो तो कानूनी तरीके से लड़ो। आतंकियों का समर्थन नहीं किया जा सकता। रूस भी आतंकवाद से पीड़ित रहा है, इसलिए इस लड़ाई में रूस भारत के साथ मजबूती से खड़ा है।”
पुतिन के इस बयान ने एक बार फिर भारत-रूस के ऐतिहासिक और मजबूत रिश्ते की पुष्टि कर दी है। रूस ने बिना किसी देश का नाम लिए यह संदेश स्पष्ट कर दिया कि वह भारत के सुरक्षा चिंताओं को समझता है। भारत-पाकिस्तान संबंध दशकों से तनावपूर्ण रहे हैं और पहलगाम हमले के बाद यह तनाव और गहराया, जिसके जवाब में भारत ने ऑपरेशन सिंदूर चलाया।
भारत-चीन रिश्तों में सुधार के संकेत
पूर्वी लद्दाख में 2020 से शुरू हुए विवाद के बाद भारत और चीन के संबंधों में गहरा अविश्वास पैदा हुआ था। गलवान घाटी की हिंसक झड़पों ने हालात को और खराब किया। कई दौर की सैन्य वार्ताओं और कूटनीतिक प्रयासों के बाद दोनों देशों में डिसएंगेजमेंट की प्रक्रिया शुरू हुई। अगस्त और सितंबर में चीन के तियानजिन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति को भी संबंधों में सुधार के संकेत के रूप में देखा गया।
रूस सहित वैश्विक समुदाय यह समझ चुका है कि भारत और चीन एशिया की दो सबसे बड़ी शक्तियां हैं, जिनकी स्थिरता क्षेत्रीय शांति के लिए आवश्यक है। पुतिन का ताजा बयान यही दर्शाता है कि रूस मध्यस्थता के बजाय विश्वास और संवाद की नीति को बढ़ावा देना चाहता है।
भारत-चीन संबंधों पर पुतिन का यह रुख न केवल कूटनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह संकेत भी देता है कि वैश्विक शक्ति संतुलन अब पुराने ढर्रे पर नहीं चल रहा। दुनिया आज ऐसे एशिया की ओर देख रही है, जहां भारत और चीन भविष्य की राजनीति, अर्थव्यवस्था और सुरक्षा रणनीतियों को नई दिशा देने वाले केंद्र बनते जा रहे हैं।




