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Rahu-Ketu: लहसुन-प्याज का क्या है राहु-केतु से संबंध? जानें क्या है साधना में वर्जित होने का कारण?

Anjali Tyagi
4 Sept 2025 8:00 AM IST
Rahu-Ketu: लहसुन-प्याज का क्या है राहु-केतु से संबंध? जानें क्या है साधना में वर्जित होने का कारण?
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नई दिल्ली। क्या आपने कभी सोचा है कि आपकी थाली में रखे प्याज और लहसुन सिर्फ स्वाद बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थ नहीं हैं? ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इनका सीधा संबंध राहु और केतु जैसे रहस्यमयी ग्रहों से माना जाता है। पौराणिक कथा कहती है कि ये दोनों सब्जियां साधारण नहीं, बल्कि राहु-केतु की रक्त-ऊर्जा से उत्पन्न हुईं। यही कारण है कि इन्हें साधना और पूजा में वर्जित बताया जाता है।

पौराणिक कथा: अमृत की बूंद से जन्मे प्याज-लहसुन

समुद्र मंथन के समय जब देवताओं और दैत्यों को अमृत मिला, तो राहु और केतु ने छल से अमृत पी लिया। भगवान विष्णु ने तुरंत सुदर्शन चक्र से उनका सिर धड़ से अलग कर दिया। किंवदंती है कि उस समय राहु के रक्त से प्याज और केतु के रक्त से लहसुन उत्पन्न हुए। इसी कारण इन्हें 'राहु-केतु की संतान' कहा गया। इस मिथक ने इन्हें तामसिक आहार की श्रेणी में रखा और धार्मिक अनुष्ठानों में त्यागने की परंपरा शुरू हुई।

राहु-केतु से जुड़ा रहस्य

समुद्र मंथन की कथा- अमृत बांटते समय राहु और केतु ने छल से अमृत पी लिया था।

भगवान विष्णु का प्रहार- सूर्य और चंद्र द्वारा पहचान कराए जाने पर भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उनके सिर काट दिए।

अमृत से उत्पन्न- अमृत उनके गले से नीचे नहीं उतरा था, लेकिन सिर से कुछ बूंदें पृथ्वी पर गिर गईं, जिनसे प्याज और लहसुन उत्पन्न हुए।

साधना में वर्जित होने का कारण

तामसिक गुण- प्याज और लहसुन को तामसिक (राजसिक और तामसिक गुण) भोजन माना जाता है।

मन का भटकाव- इनका सेवन करने से मन चंचल होता है और वासना व उत्तेजना बढ़ती है।

एकाग्रता में बाधा- साधना और ध्यान के समय इन खाद्य पदार्थों का सेवन मन को एकाग्र नहीं होने देता।

अशुद्धता- राक्षसों के रक्त से उत्पन्न होने के कारण इन्हें अपवित्र माना जाता है और इसलिए भगवान के भोग में इनका इस्तेमाल नहीं किया जाता।

साधना और धर्म में क्यों वर्जित?

- नवरात्रि, एकादशी, सोमव्रत, गुरुवार व्रत जैसे पावन अवसरों पर प्याज-लहसुन (Garlic Onion) निषेध हैं।

- चन्द्रमा, गुरु और शुक्र की पूजा में इनका सेवन मन को चंचल कर देता है। यही कारण है कि मंदिरों के भोग और प्रसाद में इन्हें स्थान नहीं मिलता।

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