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Sankashti Chaturthi 2025: गणेश जी को क्यों कहते हैं कृष्ण पिंगल ? जानें संतान की सुख-समृद्धि वाले इस व्रत के बारें में

नई दिल्ली। जून माह की संकष्टी चतुर्थी को कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी के रूप में मनाया जाएगा। इस दिन भगवान श्रीगणेश के साथ चंद्रदेव की विशेष पूजा की जाती है। यह व्रत विशेष रूप से माताएं अपनी संतान की सुख-समृद्धि, आरोग्य और दीर्घायु के लिए रखती हैं। श्रद्धापूर्वक किए गए इस व्रत से गणेश जी शीघ्र प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
इस दिन गणेश जी को मोदक का भोग क्यों लगाया जाता है
इस पावन अवसर पर गणेश जी को मोदक का भोग लगाया जाता है, जो उनका अत्यंत प्रिय मिष्ठान्न है। धार्मिक मान्यता है कि मोदक चढ़ाने से बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। मोदक गणेश जी की प्रसन्नता का प्रतीक है और इसे उनका प्रियतम नैवेद्य कहा गया है। मान्यता है कि मोदक अर्पित करने से जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं और कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। साथ ही यह भी विश्वास किया जाता है कि इससे बुद्धि, विवेक और ज्ञान में वृद्धि होती है, क्योंकि गणेश जी को 'बुद्धि और विद्या के देवता' भी कहा जाता है। विद्यार्थियों और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे लोगों को विशेष रूप से गणेश जी को मोदक अर्पित करने की सलाह दी जाती है।
पूजा विधि
- प्रातः स्नान के बाद स्वच्छ कपड़े पहनें।
- पूजा स्थल पर चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं और भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें।
- दीपक, घी, अक्षत, चन्दन, सिंदूर, फूल, दूर्वा, तिल–गुड़ आदि से भगवान की विधि विधान पूजा करें।
- संकष्टी चतुर्थी कथा का पाठ करें।
- चंद्रोदय के समय चंद्रमा को ताम्बे के कलश से जल अर्पित करें।
- आरती करें और प्रसाद सभी में बांट दें।
- चंद्रमा के दर्शन के बाद अपना व्रत खोल लें।
व्रत पारण कैसे करें (व्रत खोलना)
इस व्रत का पारण चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही करें। भगवान गणेश को चढ़ाए गए मोदक या लड्डू (विशेष रूप से तिल और गुड़ से बने) का प्रसाद ग्रहण करें। कुछ जगहों पर दूध और शकरकंद से पारण करने का भी विधान है। फलाहार या सात्विक भोजन से व्रत खोलें। जो चीजें व्रत में वर्जित थीं, उन्हें न खाएं। हल्का और सुपाच्य भोजन करें ताकि पेट पर जोर न पड़े।
इन बातों का रखें खास ध्यान
- महिलाएं व्रत के दौरान फल, दूध, दही, छाछ, पनीर, साबूदाना, कुट्टू का आटा, सिंघाड़े का आटा, शकरकंद, मूंगफली, नारियल, मेवे, सेंधा नमक का प्रयोग करें।
- अनाज (चावल, गेहूं, दालें), साधारण नमक, हल्दी, लाल मिर्च, गरम मसाला, प्याज, लहसुन, मांसाहार, अंडे, शराब, धूम्रपान, अधिक तला-भुना भोजन न करें। इस दिन काले वस्त्र धारण न करें।
- पीले या लाल वस्त्र पहनना शुभ होता है। भगवान गणेश को तुलसी का पत्ता अर्पित न करें। किसी से वाद-विवाद न करें और मन में नकारात्मक विचार न लाएं।
- अपनी सामर्थ्य अनुसार दान-पुण्य करें।
चंद्रोदय कब होगा
संकष्टी चतुर्थी व्रत (कृष्णपिंगल संकष्टी चतुर्थी) हर साल आषाढ़ माह के कष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है। इस साल पंचांग के अनुसार, चतुर्थी तिथि 14 जून दिन शनिवार को दोपहर 03 बजकर 46 मिनट से शुरू होगी और 15 जून दिन रविवार को दोपहर 03 बजकर 51 मिनट पर समाप्त होगी। इस व्रत में चंद्रमा की पूजा की जाती है। इसलिए चंद्रोदय के अनुसार, ये व्रत 14 जून को रखा जाएगा इसे दिन रात लगभग 10 बजकर 07 मिनट पर चंद्रोदय होगा।
किन मंत्रों का करें जाप
चंद्रोदय होने पर छत पर या खुले स्थान पर जाएं। एक साफ लोटे में शुद्ध जल, कच्चा दूध, अक्षत (चावल), और सफेद फूल डालकर चंद्रमा को अर्घ्य दें। चंद्रमा को प्रणाम करें और अपनी मनोकामना दोहराएं। चंद्र मंत्र: "ॐ चंद्राय नमः" या "ॐ सोमाय नमः" का जाप करें। माना जाता है कि चंद्रमा के दर्शन और अर्घ्य के बिना संकष्टी चतुर्थी का व्रत पूर्ण नहीं होता है।
गणेश जी को क्यों कहते हैं कृष्ण पिंगल ?
नारद मुनि ने गणपति जी को कृष्णपिंगाक्ष नाम दिया है। इसका अर्थ है बुरे काम पर हमेशा नजर रखने वाला। भगवान गणेश हमेशा पूरी दुनिया पर नजर रखते है, जिसके कारण इनका नाम 'कृष्ण पिंगाक्ष' रखा गया है।