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Sawan Special: क्यों की जाती है नंदी की पूजा भोलेनाथ से पहले, जानें कहां पर है यह खास परंपरा?

Anjali Tyagi
15 July 2025 8:00 AM IST
Sawan Special: क्यों की जाती है नंदी की पूजा भोलेनाथ से पहले, जानें कहां पर है यह खास परंपरा?
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नई दिल्ली। सावन का पावन महिना भगवान भोलेनाथ को समर्पित होता है। इस दिन ना सिर्फ भगवान शिव की पूजा की जाती है बल्कि उनकी सवारी नंदी की भी पूजा की जाती है। ऐसे में सावन के पहले सोमवार के दिन मान्यता है कि जब तक नंदी प्रसन्न नहीं होते, शिव तक भक्तों की प्रार्थना नहीं पहुंचती। इस दिन ग्रामीण लोग नंदी बैल को स्नान कराते हैं, हल्दी-चंदन लगाते हैं, उन्हें मीठा खिलाते हैं। इसके बाद ही लोग शिव मंदिर की ओर जल चढ़ाने के लिए प्रस्थान करते हैं कई जगहों पर तो नंदी की शोभायात्रा भी निकाली जाती है, जिसे ग्रामीण पूरे उत्साह और भक्ति से सजाते हैं।

क्यों की जाती है नंदी की पूजा पहले?

इन ग्रामीण क्षेत्रों में यह मान्यता है कि जब तक नंदी प्रसन्न नहीं होते, तब तक भक्तों की प्रार्थनाएं सीधे भगवान शिव तक नहीं पहुंचतीं। पौराणिक कथाओं में नंदी को शिव का सबसे प्रिय गण और उनके वाहन के रूप में वर्णित किया गया है। उन्हें ही वह माध्यम माना जाता है। जिनके द्वारा भक्तों की मनोकामनाएं और अरदास भोलेनाथ तक पहुंचती है। इसी विश्वास के कारण सावन के पवित्र महीने के पहले सोमवार को ग्रामीण पूरी श्रद्धा और उत्साह के साथ नंदी की पूजा में लीन हो जाते हैं।

कहां पर है यह खास परंपरा?

यह अनोखी परंपरा मुख्य रूप से उत्तर भारत के कुछ गांवों के साथ-साथ मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के कई हिस्सों में विशेष रूप से प्रचलित है। इन ग्रामीण क्षेत्रों में सावन के पहले सोमवार की सुबह से ही लोग नंदी बैल को विशेष सम्मान देना शुरू कर देते हैं।

कैसे होती है नंदी की पूजा?

सावन के पहले सोमवार के दिन ग्रामीण सुबह-सुबह नंदी बैल को बड़े ही विधि-विधान से स्नान कराते हैं। स्नान के बाद उन्हें हल्दी और चंदन का पवित्र लेप लगाया जाता है। जिसे शुभता और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। इसके बाद नंदी को मीठा भोजन कराया जाता है, जिसमें आमतौर पर गुड़, रोटी या अन्य पारंपरिक पकवान शामिल होते हैं। नंदी को भोग लगाने और उनकी पूजा करने के बाद ही ग्रामीण पास के शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव को जल अर्पित करते हैं और उनकी विधिवत पूजा करते हैं। कई जगहों पर तो इस दिन नंदी की शोभायात्रा भी निकाली जाती है, जिसे ग्रामीण पूरे उत्साह और भक्ति से सजाते हैं. यह दृश्य बेहद मनमोहक होता है।

परंपरा का महत्व

बता दें कि यह परंपरा न केवल ग्रामीणों की भगवान शिव के प्रति अटूट आस्था को दर्शाती है, बल्कि पशुधन के प्रति उनके सम्मान को भी उजागर करती है। नंदी को भारतीय संस्कृति में केवल एक वाहन नहीं, बल्कि एक पवित्र जीव और शिवगणों में प्रमुख स्थान प्राप्त है। उन्हें धर्म और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। इस विशिष्ट पूजा के माध्यम से ग्रामीण यह संदेश देते हैं कि प्रकृति और उसके सभी तत्वों का सम्मान करना भी आध्यात्मिक जीवन का एक अभिन्न अंग है।

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