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Sawan Special: बाबा बैद्यनाथ धाम... जहां लाखों कांवड़िये जंगल-झील-पहाड़ के रास्ते नंगे पांव 105 किमी की दूरी तय कर करते हैं जलाभिषेक

Anjali Tyagi
19 July 2025 8:00 AM IST
Sawan Special: बाबा बैद्यनाथ धाम... जहां लाखों कांवड़िये जंगल-झील-पहाड़ के रास्ते नंगे पांव 105 किमी की दूरी तय कर करते हैं जलाभिषेक
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शिव के वरदान के बाद भी बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को लंका नहीं ले जा पाया रावण

नई दिल्ली। बैद्यनाथ मंदिर, जिसे बाबा बैद्यनाथ धाम के नाम से भी जाना जाता है। झारखंड के देवघर में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। मंदिर का इतिहास पौराणिक कथाओं से जुड़ा है, जिसमें रावण और माता सती की कथाएं शामिल हैं। कहते हैं सावन के महीने में इन ज्योतिर्लिंग के स्मरण मात्र से कष्ट दूर हो जाते हैं। माना जाता है कि इन सभी स्थानों पर भगवान भोलेनाथ ने स्वयं प्रकट होकर भक्तों को दर्शन दिए थे।

भगवान शिव को लंका ले जाना चाहता था रावण

पौराणिक कथाओं के अनुसार लंकापति रावण भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए एक के बाद एक अपनी सर की बलि देकर शिवलिंग पर चढ़ा रहे थे, एक के बाद एक कर दशानन रावण ने भगवान के शिवलिंग पर 9 सिर काट कर चढ़ा दिए, जैसे ही दशानन दसवें सिर की बलि देने वाला था वैसे ही भगवान भोलेनाथ प्रकट हो गए। भगवान ने प्रसन्न होकर दशानन से वरदान मांगने को कहा, इसके बाद वरदान के रूप में रावण भगवान शिव को लंका चलने को कहते हैं। उनके शिवलिंग को लंका में ले जाकर स्थापित करने का वरदान मांगते हैं, भगवान रावण को वरदान देते हुए कहते हैं कि जिस भी स्थान पर शिवलिंग को तुम रख दोगे मैं वहीं पर स्थापित हो जाऊंगा।

भगवान विष्णु की लीला से हार जाता है रावण

पौराणिक कथाओं के अनुसार, शिवजी ने शिवलिंग का रूप धारण कर लिया और रावण उसे लेकर लंका जा रहा था। भगवान भोलेनाथ शिवलिंग को लंका ले कर जा रहे रावण को रोकने के लिए सभी देवों के आग्रह पर मां गंगा रावण के शरीर में प्रवेश कर जाती है। जिस कारण उन्हें रास्ते में जोर की लघुशंका लगती है, इसी बीच भगवान विष्णु वहां एक चरवाहे के रूप में प्रकट हो जाते हैं। तब रावण शिवलिंग को उस चरवाहे को दे देता है। साथ ही यह कहता है कि इसे उठाए रखना जब तक में लघु शंका कर वापस नहीं लौट आता।

जिसके बाद लंबे समय तक रावण लघुशंका करता रहता है। इसी बीच चरवाहे के रूप में मौजूद बच्चा भगवान भोलेनाथ की शिवलिंग का भार नहीं सहन कर पाता और वह उसे जमीन पर रख देता है। लघुशंका करने के उपरांत जब रावण अपने हाथ धोने के लिए पानी खोजने लगता है जब उसे कहीं जल नहीं मिलता है तो वह अपने अंगूठे से धरती के एक भाग को दबाकर पानी निकाल देता है। जिसे शिवगंगा के रूप में जाना जाता है। जब रावण धरती पर रखे गए शिवलिंग को उखाड़ कर अपने साथ लंका ले जाने की कोशिश करता है तो वो ऐसा करने में असमर्थ हो जाता है। इसके बाद आवेश में आकर वह शिवलिंग को धरती में दबा देता है जिस कारण बैधनाथ धाम स्थित भगवान शिव की स्थापित शिवलिंग का छोटा सा भाग ही धरती के ऊपर दिखता है, इसे रावणेश्वर बैधनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से भी जाना जाता है।

सावन के महीने में देवघर में लगता है श्रावणी मेला

मान्यताओं के अनुसार जो भी भक्त कांधे पर कांवर लेकर सुल्तानगंज से जल उठा कर पैदल भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग पर जलाभिषेक करता है। उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है, इसीलिए ऐसी मनोकामना लिंग के रूप में भी जाना जाता है. सावन के महीने में हर दिन लाखों श्रद्धालु की भीड़ सुल्तानगंज से जल उठा कर कांवर में जल भरकर पैदल 105 किलोमीटर की दूरी तय कर देवघर स्थित बैद्यनाथ धाम पहुंचकर जलाभिषेक करते हैं , सावन के महीने में देवघर में लगने वाली विश्व प्रसिद्ध श्रावणी मेला देश की सबसे लंबे दिनों तक चलने वाली धार्मिक आयोजनों में से एक है.

शक्तिपीठ

बैद्यनाथ धाम एक शक्तिपीठ भी है, जहाँ माता सती का हृदय गिरा था। इसलिए, इसे हृदयपीठ भी कहा जाता है। यहाँ शिव और शक्ति (पार्वती) एक साथ विराजमान हैं।

कामना लिंग

मंदिर के शिवलिंग को कामना लिंग भी कहा जाता है, क्योंकि माना जाता है कि यहाँ आने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

सावन मेला

हर साल सावन के महीने में यहाँ लाखों श्रद्धालु "बोल-बम" का जयकारा लगाते हुए जल चढ़ाने आते हैं।

मंदिर की विशेषताएं

- मंदिर परिसर में बाबा बैद्यनाथ के केंद्रीय मंदिर के साथ-साथ 21 अतिरिक्त मंदिर भी हैं।

- मंदिर में शिव और पार्वती के मंदिर एक लाल कपड़े से बंधे हुए हैं।

- मंदिर के शिखर पर पंचशूल लगा है, जिसे साल में एक बार महाशिवरात्रि के दिन नीचे उतारकर पूजा की जाती है।

बैद्यनाथ मंदिर का महत्व

- यह मंदिर शैव, शाक्त और नाथ संप्रदायों के लिए महत्वपूर्ण है।

- यहां आने वाले भक्तों को शिव और शक्ति दोनों का आशीर्वाद मिलता है।

- यह मंदिर भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो इसे हिंदुओं के लिए एक पवित्र स्थान बनाता है।

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