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बिहार वोटर वेरिफिकेशन केस पर सुनवाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट हुआ ऱाजी, 10 जुलाई को दलीलें पेश की जाएंगी

पटना। बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) के तहत मतदाता सूची से लाखों नाम हटाए जाने की आशंका को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर किये गए हैं। Advocate कपिल सिब्बल ने इस मामले पर तत्काल सुनवाई की मांग की है। आपको बताते चलूं कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर सुनवाई को राजी हो गया है।
कपिल सिब्बल के साथ ही और भी मुख्य वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी, शादाब फरासत और गोपाल शंकरनारायणन ने सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे को उठाते हुए कहा है कि इस प्रकिया से लाखों लोग, खासकर महिलाओं और गरीब तबके के लोगों के नाम मतदाता सूची से हटाए जाने की आशंका है।
याचिकाकर्ताओं की मांग
याचिकाकर्ताओं की मांग है कि इस संशोधन प्रक्रिया पर तत्काल रोक लग पर तत्काल रोक लगाई जाए। उनके अनुसार मामले की सुनवाई त्वरित की जाए । क्योंकि चुनाव आयोग की ओर से निर्धारित समयसीमा बहुत कम है । राज्य भर में 25 जुलाई तक की समय-सीमा में बड़े पैमाने पर नाम हटाने की तैयारी है। याचिकाकर्ताओं में राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस, महुआ मोइत्रा, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR), पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज शामिल हैं इन्होंने इस प्रक्रिया को असंवैधानिक और जनता का अहित बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर किया है।
लाखों मतदातओं के अधिकार हो सकते हैं खत्म
एडीआर ने दाखिल याचिका में कहा है कि अगर चुनाव आयोग का यह आदेश रद्द नहीं किया जायेगा, इस प्रक्रिया के तहत मनमानी से लाखों मतदाताओं का मताधिकार वंचित किया जा सकता है। इससे देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कमजोर हो जाएगा। याचिका में यह भी कहा गया है कि इसमें जिस तरह उचित प्रक्रिया का पालन किये बगैर कम समय में जो दस्तावेज और चीजें मांगी जा रही हैं उससे लाखों वास्तविक मतदाता voter list से बाहर हो सकते हैं। वे मतदान के अधिकार से वंचित हो जाएंगें ।
नियमों का किया गया उल्लंघन
जानकारी के मुताबिक इस आदेश के जरिए चुनाव आयोग ने मतदाता सूची में शामिल होने की पात्रता साबित करने की जिम्मेदारी नागरिकों पर डाल दी है। आधार और राशन कार्ड जैसे सामान्य पहचान दस्तावेजों को बाहर करके यह प्रक्रिया हाशिए पर रख दिया गया जो गरीबों पर उल्टा असर डालती है। इस प्रक्रिया में मतदाताओं के लिए सिर्फ अपनी नागरिकता साबित करने की जरूरत नहीं बल्कि अपने माता-पिता की नागरिकता साबित करने के लिए भी दस्तावेज पेश करने की मांग है। बिहार गरीबी उच्च स्तर पर है, बहुतायात मात्रा में लोग हैं जिनके पास जन्म प्रमाणपत्र या अपने माता-पिता के रिकार्ड जैसे आवश्यक दस्तावेज नहीं हैं।