Begin typing your search above and press return to search.
मुख्य समाचार

राज्यपाल किसी बिल को अनिश्चितकाल तक रोके नहीं रख सकते: Supreme Court की टिप्पणी

Anjali Tyagi
20 Nov 2025 12:26 PM IST
राज्यपाल किसी बिल को अनिश्चितकाल तक रोके नहीं रख सकते: Supreme Court की टिप्पणी
x

नई दिल्ली। आज राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा भेजे गए 14 संवैधानिक सवालों पर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ फैसला सुना रही है। बता दें कि ये सवाल राज्यपाल और राष्ट्रपति की विधेयकों पर कार्रवाई की समय-सीमा और उनकी शक्तियों से जुड़े हैं। कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल और राष्ट्रपति को पारित बिलों पर तय अवधि में निर्णय लेना होगा, जिस पर राष्ट्रपति ने संवैधानिक सीमाओं के उल्लंघन की चिंता जताई थी। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला दिया है।

क्या बोला SC?

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में राज्यपाल के लिए समयसीमा तय करना संविधान की ओर से दी गई लचीलेपन की भावना के खिलाफ है। पीठ ने स्पष्ट किया कि राज्यपाल के पास केवल तीन संवैधानिक विकल्प हैं- बिल को मंजूरी देना, बिल को दोबारा विचार के लिए विधानसभा को लौटाना या उसे राष्ट्रपति के पास भेजना। राज्यपाल बिलों को अनिश्चितकाल तक रोककर विधायी प्रक्रिया को बाधित नहीं कर सकते। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि न्यायपालिका कानून बनाने की प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं कर सकती, लेकिन यह स्पष्ट किया कि- 'बिना वजह की अनिश्चित देरी न्यायिक जांच के दायरे में आ सकती है।'

राज्यपाल के पास मूल रूप से तीन ही विकल्प उपलब्ध हैं

सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति के रेफरेंस पर फैसला सुनाते हुए कहा कि अनुच्छेद 200 और 201 के तहत - बिल को मंजूरी देना, रोकना या राष्ट्रपति के लिए सुरक्षित रखना. अदालत ने स्पष्ट किया कि पहले प्रावधान को चौथा विकल्प नहीं माना जा सकता। अदालत ने कहा कि जब दो व्याख्याएं संभव हों, तो वह व्याख्या अपनाई जानी चाहिए जो संवैधानिक संस्थाओं के बीच संवाद और सहयोग को बढ़ावा दे कोर्ट ने टिप्पणी की कि भारतीय संघवाद की किसी भी परिभाषा में यह स्वीकार्य नहीं होगा कि राज्यपाल किसी बिल को बिना सदन को वापस भेजे अनिश्चितकाल तक रोके रखें। राष्ट्रपति के लिए बिल सुरक्षित रखना भी संस्थागत संवाद का हिस्सा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा सहयोग की भावना को अपनाना चाहिए।

राज्यपाल का बिलों को रोकना संघवाद का उल्लंघन

पीठ ने राज्यपाल के विवेकाधिकार की संवैधानिक सीमाओं को रेखांकित करते हुए कहा कि बिलों को एकतरफा तरीके से रोकना संघवाद का उल्लंघन होगा मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अगुआई वाली संविधान पीठ ने कहा, 'अगर राज्यपाल अनुच्छेद 200 में तय प्रक्रिया का पालन किए बिना विधानसभा की ओर से पारित बिलों को रोक लेते हैं, तो यह संघीय ढांचे के हितों के खिलाफ होगा।'

इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने किया रद्द ?

बता दें कि मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अगुआई वाली पीठ ने अपने पहले के उस फैसले को रद्द कर दिया जिसमें राज्यपाल और राष्ट्रपति को राज्य के बिलों पर तीन महीने के भीतर निर्णय लेने को बाध्य किया गया था। कोर्ट ने कहा कि संवैधानिक पदाधिकारियों पर कड़े समय-निर्धारण लागू करना न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। जानकारी के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल किसी बिल को मंजूरी देने के लिए उसे अनिश्चितकाल तक लंबित नहीं रख सकते, लेकिन साथ ही अदालत ने साफ किया कि उन पर समयसीमा तय करना शक्तियों के पृथक्करण (Separation of Powers) के सिद्धांत का उल्लंघन होगा।

Next Story